‘कल रात’ (एक कविता) May 8, 2016 वह थी हकीक़त या ख़्वाब जो देखा था कल रात को सुबह उठकर न भूली मैं तो उस बीती बात को सदियों से जैसे बिछड़े वैसे हम दोनों मिले थे और गुज़ारे चाँद लम्हें जैसे वह... Read More... Hindi 1