गे कविता

कविता: रिश्ते

जो समाज कि नज़र से न डरते थे कभी, वो "लोग क्या कहेंगे" सोच के झिजकते भी हैं

कविता: एक ऐसी दुनिया

मुझे हँसी आती है इस बात पर कि कैसे कुछ लोग आज भी दो पुरुषों के प्रेम को पाप समझते हैं
crying eye

कविता : दद्दा

मैं ढूँढता रहता हूँ ख़ुद को, शराब की ख़ाली बोतलों में. लुढ़के हुए गिलासों, जूठी तश्तरियों में
Krishna

कविता: सारथी

हर प्रेमकहानी में राधा कृष्ण नहीं होते।कुछ प्रेमकहानियों मेंं कृष्ण और अजुर्न भी होते हैं...मेरा तात्पर्य किसी समलैंगिक रिश्ते से नही है... मेरा सिर्फ इतना ... Read More...
Masked Man at Pride

कविता : मुझको मुझसे मिलने दो

एक अरसा हुआ अब तो मुझको मुझसे मिल लेने दोइस समाज और इस सोच से अब तो कुछ पल चैन की मुझको भी जी लेने दो। कैसे समझाऊँ कि कितना तड़प रहा हूँ? इस झूठी पहचान को ख... Read More...

कविता : इक गे की अधूरी कहानी…

दुपट्टा मम्मी का लेकर , कभी साड़ी पहनता थाकभी बहनो के संग में वो, घर घर खेल लेता थाअगर खेलेगा ये, तो मैं नहीं खेलूंगा दोस्तोंबड़े भाई की ईग्नोरेनंस, वो अक्सर झ... Read More...