विश्व में रहते हुए हमने न जाने कितनी जातियाँ, धर्म, लिंग, आदि देखे और पढ़े। मगर हम यह भूल जाते हैं कि सब एक जैसे ही होते हैं, सभी को शुद्ब वातावरण चाहिए होता है, जीवन को जीने के लिए खाना चाहिए होता है, सब कुछ स्वभाविक होता है, मगर कहीं न कहीं कुछ अलग होता है, चाहे उनका धर्म हो या यौन आकर्षण,। आज मैं फिर कुछ एक विशेष समुदाय की चर्चा करना चाहूंगा। जो अभी तक समाज में पूर्णतया खुल कर सामने नहीं आई है। हम सब जानते हैं आजकल LGBTQA इसमें जो आख़िरी वर्ण है ‘A’ इसका क्या मतलब होता है? बविश्व में रहते हुए हमने न जाने कितनी जातियाँ, धर्म, लिंग, आदि देखे और पढ़े। मगर हम यह भूल जाते हैं कि सब एक जैसे ही होते हैं, सभी को शुद्ब वातावरण चाहिए होता है, जीवन को जीने के लिए खाना चाहिए होता है, सब कुछ स्वभाविक होता है, मगर कहीं न कहीं कुछ अलग होता है, चाहे उनका धर्म हो या यौन आकर्षण। आज मैं एक विशेष समुदाय की चर्चा करना चाहूँगा, जो अभी तक समाज में पूर्णतया खुल कर सामने नहीं आई है। हम सब जानते हैं LGBTQA, पर इसमें जो आख़िरी वर्ण है ‘A’ इसका क्या मतलब होता है? बहुत से लोगों को नहीं पता इस A का मतलब होता है असेक्सयूएल और हिंदी में इसको बोलते हैं अलैंगिकता। अलैंगिक कोई भी हो सकता है, किसी भी धर्म का या जाति का। इस बात को लेकर न जाने कितनी अफवाहें और व्यर्थ की बातों में कई सालों से लोग उलझे हुए हैं, जिसका कोई मतलब नहीं निकलता।
असेक्सयूएलिटी (अलैंगिकता) क्या है?
स्पष्टता से देखें तो एसेक्सुअलिटी एक यौन अभिविन्यास है जहाँ किसी भी लिंग के प्रति यौन आकर्षण का लगातार अभाव है। इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं होता कि ऐसे लोगों में भावनायें नहीं होती, या संवेदनाएँ नहीं होती। इस विषय में बस इतना कहना सार्थक होगा के अलैंगिकता में यौन आकर्षण बहुत कम होता है, न तो वह पुरुष की ओर आकर्षित होते हैं और न ही स्त्री की तरफ।
अलैंगिक लोग अक्सर हमारी संस्कृति में गलतफहमी महसूस कर सकते हैं जो लोग सेक्स पर ध्यान केंद्रित करते हैं। लोग सोच सकते हैं कि यदि आप सेक्स में रुचि नहीं रखते हैं तो आप भावनात्मक रूप से कमज़ोर या कामुक नहीं हैं, आपके अंदर सेक्सुअलिटी की कमी है।
अलैंगिकता के बारे में दो सामान्य गलत धारणाएँ हैं:
अलैंगिकता कोई विकल्प नहीं है। जो लोग अपनी अलैंगिक के रूप में पहचान करते हैं वे एक रोमांटिक साथी के साथ रोमांटिक होना चुन सकते हैं चाहे वो समलैंगिक हो या विषमलैंगिक। यह चुनाव करना यौन इच्छा पर आधारित नहीं है – यह दूसरे व्यक्ति की यौन जरूरतों का ध्यान रखने की इच्छा से है।
- यदि आप अलैंगिक हैं, तो आप कभी भी यौन उत्तेजना महसूस नहीं करते हैं – अलैंगिकता का मतलब यह नहीं है कि आपके पास यौन भावनायें नहीं हैं – यह एक शारीरिक स्थिति या चिकित्सा समस्या नहीं है। किसी व्यक्ति को कितना कामोत्तेजक अनुभव होता है, यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न होता है। जब अलैंगिक लोग महसूस करते हैं, तो ये भावनायें किसी के साथ यौन संबंध बनाने की इच्छा से जुड़ी नहीं हैं।
- अलैंगिकता यौन आघात या अवसाद से जुड़ी हुई है –कुछ ऐसा नहीं होता है जो आपको “अलौकिक” बना दे। आघात, चिकित्सा की स्थिति, उदास महसूस करना या कम आत्मसम्मान होना, यह सब आपकी कामुकता की अभिव्यक्ति को प्रभावित कर सकता है – जो भी आपका यौन अभिविन्यास है। लेकिन यह आपकी कामुकता को परिभाषित नहीं करता है।
असेक्सयूएलिटी के लिए कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
1. कई अलैंगिक लोग प्रेम के बंधन में बंध जाते हैं, और भावनात्मक तौर पर अपने पार्टनर से जुड़ जाते हैं, मगर ज़रूरी नहीं वह शारीरिक तौर पर उनसे जुड़ें।
2. कुछ अलैंगिक हस्तमैथुन करते हैं, लेकिन ज्यादातर मामलों में यह विशुद्ध रूप से कल्पना का एक भौतिक अनुभव है। उन्हें ऐसा करने से सुख का अनुभव प्राप्त होता है, ज़रूरी नहीं वो किसी की कल्पना कर के ऐसा करते हों।
3. वह किसी की भी तरफ आकर्षित हो सकते हैं, मगर वह आकर्षण शारीरिक न होकर भावनात्मक होता है
4. गले मिलना और चुंबन करने से भी ऐसे लोग सुख का अनुभव प्राप्त करते हैं।
5. कुछ अलैंगिक सेक्सुअल पार्टनर को खुश करने के लिए यौन क्रिया में संलग्न होते हैं।
6. कुछ अलैंगिक लोगों में यौन भावनायें बिल्कुल नहीं होती हैं। इन व्यक्तियों को अक्सर गैर-कामेच्छावादियों के रूप में जाना जाता है।
अलैंगिकता कोई बीमारी नहीं, न कोई ऐसा विकार जो हमको विरासत में मिला हो। यह एक सामान्य बात है, और हर किसी की अलग अलग प्राथमिकता होती है जीवन की, किसी को सेक्स करना अत्यंत अच्छा लगता है किसी को नहीं। कोई समलैंगिक होता है तो कोई उभयलिंगी। यहाँ बस बात है, बात को समझने की। समाज न जाने कितनी ऐसी बातों को उलझाए हुए है। अब समय ऐसा है कि लोगों को लोगों के लिए समझाया जाए, मेरी नज़र में कोई भी सेक्सुअलिटी, धर्म, या जाति गलत नहीं होती, बस बात इतनी होती है कि हम अपनी समझ के दायरे से ऐसी बातों को दूर कर देते हैं, और ध्यान नहीं देते। मगर अब इंटरनेट की दुनिया में हमको ऐसा मौका ढूंढना होगा जिससे हम लोगों को संबोधित कर सकें, उनको समझाने का प्रयास कर सकें। शायद किसी एक लेख से किसी एक कि भी सोच सुधर जाएगी, तो आपका एक उद्देश्य तो पूरा होगा।