[धनञ्जय मंगल्मुखी द्वारा लिखा गया यह लेख गेलेक्सी मैगजीन को १४ अप्रैल २०१७ को प्राप्त हुआ। लेख में वर्णित घटनाक्रम और व्यक्त मत केवल लेखिका के हैं। गेलेक्सी मैगजीन का इनसे कोई सम्बन्ध नहीं है।]
पंजाब विश्वविद्यालय का घटनाक्रम – मेरी नज़र में (अप्रैल २०१७ में लिखित)
मैं धनञ्जय मंगलमुखी पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ की प्रथम ट्रांसजेंडर विद्यार्थी हूँ। मैं ४५ वर्ष तक अपनी असली पहचान के लिए संघर्ष करती रही। सारी दुनिया के लोग हैरान परेशान हैं कि ऐसे कैसे हो सकता है कि जो इंसान बहुत साल तक अपने आप को गे समझता रहा हो अचानक कैसे एक ट्रांसजेंडर हो सकता है? चूँकि मैं इसी शहर में जन्मी-पली-बढ़ी हूँ, मेरा सारा जीवन तक़रीबन पंजाब विश्वविद्यालय में बीता है। दरअसल मेरे पिताजी इसी विश्वविद्यालय में कर्मचारी थे। इस लिए मुझे यहाँ जानने वाले तकरीबन सभी लोग हैं, जिस कारण मुझे अपने जेंडर बदलने के बाद अपनी पहचान को स्थापित करने में काफी परेशानी आयी । ज्यादातर ट्रांसजेंडर एक शहर से दूसरे शहर में चले जाते हैं जहाँ उनको उनकी पिछली जिंदगी के बारे में जानने वाले कम होते हैं। लेकिन मैंने इस शहर को नहीं छोड़ा । लेकिन यह सत्य है की मैं अपने आप को हमेशा एक औरत ही मानती रही हूँ । चूँकि हमारे देश में अभी जेंडर, सेक्स और सेक्सुअलिटी पर खुल के बात नहीं होती, तो ऐसे में मेरा जेंडर भ्रमित होना निश्चित है। मुझे यह समझ नहीं आता था कि एक मर्द कैसे मर्द के शरीर में एक औरत हो सकता है? लेकिन काफी सालों तक खोजबीन और दुनिया भर के लोगों से बात करने के बाद पता चला कि जो अपने आप को औरत मानता हो और यह सोचता हो कि वह मर्द नहीं एक औरत है और एक गलतशरीर में जन्म ले लिया हो, वही तो ट्रांस औरत है।
जब मैंने पंजाब विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया तो मेरे साथ सबसे पहले यही परेशानी आयी कि लोग मुझे ट्रांसजेंडर मानने में आना कानी कर रहे थे। लेकिन मैंने बड़ी दृढ़ता से हर किसी को समझाया। मेरे ट्रांसजेंडर बनने के साथ ही मेरा घर-बार, यार-दोस्त सब छूट गए । फिर न कोई घर रहा, न परिवार। सिर्फ एक दरवाजा था, वो था किन्नर डेरा जहाँ मुझे पनाह और साथ मिला । मेरे गुरु काजल मंगलमुखी ने मेरा हर कदम पर साथ दिया। मुझे पढ़ने के लिए प्रोहत्साहित करती रही। चूँकि धन का अभाव सबसे बड़ा था तो मेरी कुछ फीस मेरी गुरु भरती रही । हाल ही के कुछ दिनों पहले पंजाब विश्वविद्यालय ने हर पाठ्यक्रम की फीस कई गुना बढ़ा दी। जिस से एक गरीब क्या एक मध्यम वर्ग घर से सम्बंधित विद्यार्थी को भी फीस देना बहुत मुश्किल होने वाला है। ऐसे में जब आम इंसान को मुश्किल आने वाली है तो ट्रांसजेंडर विद्यार्थी इस से कैसे अछूते रह सकते हैं? आम लोगों का तो कोई न कोई सहारा है चाहे वो एक गरीब बच्चा ही क्यों न हो। लेकिन एक ट्रांसजेंडर का कौन है? एकतरफ तो सरकार ट्रांसजेंडर्स को समाज की मुख्या धारा में जोड़ने की बात करती है पर दूसरी तरफ इस तरह के कार्य हैं जिस से ट्रांसजेंडर्स का पढ़ाई से ही रोका जा रहा है। जब कि पढ़ाई से ही एक किन्नर मुख्या धारा में आ सकता है। पहले तो सरकार ट्रांसजेंडर की कुल फीस ही माफ़ कर देनी चाहिए। उल्टा विश्वविद्यालय फीस कई गुना बढ़ा रही है, जिससे थोड़ा-बहुत ट्रांसजेंडर का मन पढ़ाई के लिए बनने लगा था। वह भी फीस के आभाव में कम होने लगा है। मेरे किन्नर डेरे के लोग भी कितना मदद करेंगे? क्यूंकि मैं उनके साथ टोली बधाई पर नहीं जा सकती क्यूंकि मुझे दिन में पढ़ाई करनी होती है। मैंने तो इस बार सोच लिया था कि अगर कोई भी चारा न बचा तो मैं देह व्यापार करुँगी। ताकि मैं अपनी पढ़ाई की फीस दे पाऊं।
फीस पढ़ने की खबर से विश्वविद्यालय की छात्र-राजनीति भी ज़ोर पकड़ने लगी थी। पिछले दस-बारह दिन से विद्यार्थियों ने कई आंदोलन किये जो कि शांतिपूर्ण रहे, जिसमे मैं भी पूरी तरह से शामिल रही। अकेली ट्रांसजेंडर होने के नाते मेरे कन्धों पर पुरे ट्रांसजेंडर समाज का दायित्व था। और सब छात्र राजनितिक संगठन मुझे अपने में मिलाने की कोशिश में रहते हैं लेकिन मैं एक अलग रणनीति से काम करती हुई सब के साथ रह कर काम करती रहती हूँ।
मैं विश्वविद्यालय छात्र-राजनीति का एक केंद्र बिंदु बन गयी हूँ। मेरी भूमिका अहम् मानी जाने लगी है। क्यूंकि विश्वविद्यालय में मेरे फॉलोवर्स सैकड़ों में हैं जो कि राजनैतिक दलों को अच्छी तरह पता है। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का केंद्र बिंदु भी मैं हूँ।
लेकिन ११ अप्रैल तारीक की घटना से दिल दहल गया। सब लोग सुबह से ही उप-कुलपति के दफ्तर के बाहर जमा थे और नारेबाजी कर रहे थे। चप्पे-चप्पे पर पुलिस का पहरा था। विश्वविद्यालय के सारे गेट बंद थे। छात्र खूब नारेबाजी कर रहे थे। लेकिन अचानक पुलिस और छात्र के बीच झड़प हो गयी जो कि हिंसक रूप धारण कर गयी। मैं और मेरे साथ की २० -२५ छात्र और छात्राएं वहां से लाठी चार्ज से बच के अपने विभाग की तरफ निकल आये। क्यूंकि हम लोग मार-पीट के पक्ष में नहीं थे। उप-कुलपति के दफ्तर के साथ लगे बैरिकेट तोड़कर छात्र दफ्तर में घुस गए और तोड़-फोड़ शुरू हो गई। पुलिस छात्रों को खदेड़-खदेड़ के मार रही थी। पुलिस की तरफ से आंसू गैस, वाटर केनन और पानी की बौछार हो रही थी और छात्रों की तरफ से पत्थर की बौछारें हो रही थी। बहुत छात्र जख्मी हो रहे थे जिनको उनके साथी उठा-उठा के सुरक्षित जगह ले जा रहे थे। लेकिन पुलिस उनको पकड़ कर घसीटकर अपने साथ ले जा रही थी। पुलिस के जवान भी जख्मी हुए। यह भी सुनने में आया की एक महिला पुलिस जो की गर्भवती थी काफी जख्मी हुई और उसके गर्भ को क्षति पहुंची । मैं हैरान थी कि ऐसी हालत में पुलिस ने उसको ड्यूटी पर क्यों भेजा? कई जगह पुलिस प्रशासन नाकारा-निकम्मा नजर आ रहा था।
जख्मी छात्रों और पुलिस वालों को हस्पताल ले जाया जा रहा था । साथ ही छात्रों को दौड़ा-दौड़ा कर मारा जा रहा था। हम लोग अपने विभाग की ईमारत में छुप गए। जब मैं भगदड़ से बचने के लिए ईमारत में आ रही थी तो पुलिस मेरे आगे पीछे भागने वालों को मार रही थी। लेकिन मेरे ऊपर हाथ डालने में हिचका रहे थे। पुलिस वाले मुझे देख के हैरान थे कि ये क्या चीज है? औरत भी नहीं और न ही मर्द है। पहले तो उनको समझ ही नहीं आ रहा था कि ये भी विद्यार्थी होगी । मैंने सोचा कि अगर मैं भागूँगी तो यह मेरे साथ गलत भाषा का इस्तेमाल या मार पिटाई कर सकते हैं। हो सकता था कि मुझे भी गिरफ्तार कर लें… लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मैंने जान-बूझकर पुलिस वालों को बोला कि मुझे भी पकड़ो। वो बोले कि तुम यहाँ से निकल लो, नहीं तो तुमपर गोली या आंसूं गैस गिर सकती है। फिर मैं ईमारत में छुप गयी। दो घंटों के बाद मैं और मेरी साथी वहाँ से निकले और अपना स्कूटर लेके विश्वविद्यालय से निकलने लगे। लेकिन विश्वविद्यालय के सारे गेट सील थे। हम बाहर न जा सके और हम फिर से अपने विभाग में वापिस आ गए और गेट खुलने का इंतज़ार करने लगे। छात्रों को खोजा जा रहा था। कुछ छात्र यूनिवर्सिटी के गुरूद्वारे में छुप गए। पुलिस गुरूद्वारे के चारों तरफ नाकेबंदी करके खड़ी रही। अंत में छात्रों को आत्मसमर्पण करना पड़ा। शाम तक सब कुछ शांत हो गया और सारे गेट और दुकाने खोल दी गयी। यूनिवर्सिटी के अधिकारी लोगों ने चैन की साँस ली।
पुरे घटनाक्रम में कई छात्र और पुलिस वाले गंभीर रूप से जख्मी हुये और तकरीबन ६०-७० छात्र गिरफ्तार हुए। देर रात तक पुलिस काफी छात्रों पर देशद्रोह के साथ-साथ तमाम सख्त धाराएं लगवा रही थी। लेकिन यूनिवर्सिटी प्रशाशन और कुछ कारणों से देशद्रोह जैसे गंभीर धाराएं हटा दी गयी जिनको लगाने का कोई कारण भी नहीं था। देशद्रोह का कोई मामला बनता भी नहीं था। यह तो एक हक़ की लड़ाई थी। जो कि हिंसा का रूप धारण कर गयी। लेकिन इसमें कोई देशद्रोह जैसी बात ही नहीं थी। अभी ६०-७० छात्र पुलिस रिमांड पर हैं उनमे से कई छात्रों का हॉस्पिटल में इलाज़ चल रहा है।
मेरे पूरे जीवनकाल में इस तरह का हुजूम और भारी हिंसा मैंने कभी नहीं देखी। मेरे हिसाब से हिंसा तो किसी तरफ से भी जायज नहीं थी। मैं हिंसा के बिलकुल पक्ष में नहीं थी। इसलिए मैंने उस विरोध से अपने आप को निकाल लिया था। विरोध हम शांतिपूर्ण तरीके से भी कर सकते थे। हम धरना देते, हम गवर्नर से मिलते, हम राज्य के मुख्यमंत्री से मिलते, हम कुलपतिसे मिलते, हम प्रधान मंत्री से मिलते लेकिन यह सब नहीं हुआ। पहले तो फीस कम होने की कुछ आस भी थी, लेकिन अब हिंसा के बाद शायद ही फीस कम हो। इस हिंसा में पता नहीं किस किस राजनितिक दल ने अपनी राजनितिक रोटियां सेंकी होंगी। लेकिन इस से हम जैसे गरीब और बेसहारा लोगों का बहुत नुक्सान हुआ। यह खूनी जंग पंजाब विश्वविद्यालय के इतिहास में पहली बार हुई। यह विश्वविद्यालय अपने सुस्तपन और परंपरागत पढ़ाई के नाम से जाना जाता था। लेकिन अब यहाँ पर भी हिंसक राजनीती की गर्माहट नजर आने लगी है, जो कि न जाने आने वाले समय पर क्या क्या रंग लाएगी। इस तमाम घटनाक्रम के बाद केंद्र सरकार और न्यायालय द्वारा विश्वविद्यालय प्रशाशन से विस्तृत रिपोर्ट तलब की गयी है। अभी देखते हैं कि क्या होता है। तमाम तरह की जांच कमेटियां बिठा दी जाएँगी लेकिन मासूम निर्दोष विद्यार्थियों का क्या कसूर जो इस हिंसा में बिना किसी कसूर के जख्मी हो गए और जो बिना कसूर के गिरफ्तार भी कर लिए गए। पुलिस ने जो बच्चे डर के मारे भाग रहे थे, उनको भी गिरफ्तार कर लिया ।
ट्रांसजेंडर्स बड़ी मुश्किल से पढ़ने के लिए आगे आने की कोशिश कर रहे थे लेकिन ऐसी घटनाओं से मन में गहरा असर पड़ता है । सोचने पर मजबूर होना पड़ता है की हम ट्रांसजेंडर्स का इन शैक्षणिक संस्थाओं में क्या भविष्य होगा जहाँ हिंसा अपनी जड़ें बनाने में लगी हुई हों। मीडिया मेरे साथ पूरी तरह जुडी हुई है। वह जानने की कोशिश कर रहे हैं की हम ट्रांसजेंडर्स की क्या सोच है। लेकिन मेरी सभी ट्रांसजेंडर लोगों से अपील है की वह इन घटनाओं से विचलित न हों । पढ़ना फिर भी जरूरी है हम जैसे दबे कुचले लोगों का पढ़ना बहुत जरूरी है। शायद हम लोग ही इस देश को बचा सकते हैं।
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