मुझे आज भी याद है वो दिन… जब मैं लड़कों के साथ स्कूल में बैठने के लिए तरसता रहता था।रोना आ जाता था लड़किओं के संग बिठाते थे तो। कुछ समझ नहीं पाया था वो पहला पीरियड का दाग जो पैंट पर लगा था।बहुत गुस्सा आता था जब कोई मुझे लड़की कह कर बुलाता था। और मेरे भाई ने आज तक मुझे कभी नाम से नहीं पुकारा, बल्कि ये लड़की बोलकर बात करता है।
ऐसा ही एक दिन था स्कूल का। मैं रोज़ की तरह स्कूल में गया।वहीँ चपरासी ने मेरा नाम लेकर कहा की प्रिंसिपल सर ने बुलाया है। मेरी धड़कनें तेज़ हो रही थी।तभी केबिन की तरफ बढ़ते हुए मेरे कदमों को दोस्त ने रोक लिया और बोला, “तेरा जेंडर चेक करने के लिए प्रिंसिपल ने लेडी पुलिस बोलाई है।” मेरी आँखों से पानी रुकने का नाम नहीं ले रहा था।मैंने स्कूल की खिड़की से छलाँग लगायी और जिस तरफ रास्ता मिला, उस तरफ भाग गया। अब एक ही विकल्प था मेरे पास – आत्महत्या करने का। सब पागलों की तरह मेरे पीछे पड़े थे ढूंढ़ने के लिए, मेरे घरवाले, पुलिस, स्कूल स्टाफ।
मैं रात ११ बजे तक घर नहीं गया। घर गया तो अपना कटा हुआ हाथ ले कर। घर जाने के बाद जो हुआ वह समझ के बहार है। मेरी माँ रो रही थी, मेरा बाप लकड़ी ले कर बैठा था। पहले हॉस्पिटल के जाया गया। फिर मुझे उस दिन से लड़की बनाने की कोशिश चालू हुई, जो मैं कभी था ही नहीं, और ना ही कभी बन पाउँगा…
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