विश्व-प्रसिद्द 'ऍपल' कंपनी के सी.ई.ओ. श्री टिम कुक

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एक अनुकरणीय आदर्श

By Sachin Jain

October 31, 2014

विश्व-प्रसिद्द ‘ऍपल’ कंपनी के सी.ई.ओ. श्री टिम कुक ने कल प्रकटीकरण किया और समलैंगिक होने की बात बताई। किसी अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनी के लीडर का “मैं समलैंगिक हूँ” यह बात खुले-आम कहना, भारतीय समलैंगिकों के लिए महत्त्वपूर्ण क्यों है?

आज भारत का एल.जी.बी.टी. समुदाय अपने उच्चतम न्यायलय द्वारा किए गए पुनरपराधिकरण से निराश है। अपने ही मुल्क में वह बराबर का शहरी नहीं है। इस भावना से वह वंचित है कि इस देश को उसकी भी ज़रूरत है। अपने मूल्य पर वह मूलभूत सवाल पूछ रहा है। ऐसे में दुनिया की सबसे सफल कंपनियों में से एक के मुख्य कार्यपालक अधिकारी से यह सुनना कि “मुझे समलैंगिक होने पर अभिमान है” – इतना ही नहीं, यह भी सुनना कि “समलैंगिक होना यह भगवान से मिली हुई सबसे बड़ी देन है” – यह बात आश्चर्यचकित करने वाली है। लेकिन टिम कुक ऐसा क्यों समझते हैं? क्या उत्पीड़न और भेदभाव कभी वरदान हो सकते हैं भला?

इस बात का खुलासा वे इस प्रकार करते हैं: “बतौर समलैंगिक, मैं समाज में अल्पसंख्यक की अवस्था कैसी होती है इसका अनुभव कर चूका हूँ। मुझे अन्य अल्पसंख्यक गटों की उन मुश्किलों का ज्ञान हुआ है, जिनका वे रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में सामना करते हैं। ‘दूसरों के साथ हमदर्दी रखो’ इस सीख ने मेरे जीवन को और भी परिपूर्ण किया है। परिस्थिति कभी-कभी कठिन और विचलित करने वाली रही है। लेकिन इन समस्याओं से झूँझने में मुझे आत्मविश्वास मिला है। विश्वास अपना रास्ता खुद चुनने और बनाने का, विपत्ति और कट्टरता से ऊपर उठनेका। इन अनुभवों से गुज़रकर मैंने जैसे ‘गेंडे की चमड़ी’ पाई है, यानि मुश्किलें टक्कर मारकर भी अब मुझे गिरा नहीं सकती।”

अपनी समलैंगिकता को दुर्बलता मानकर हाथ पर हाथ धरे रहने के बजाय वे मार्ग दिखाते हैं दृढ़ता का, ऐसी दृढ़ता जिसमें सहिष्णुता की मिठास हो। जब हमारे देश की न्यायव्यवस्था ने हमारे मूलभूत अधिकारों का संरक्षण नहीं किया, और लड़ाई आगे कैसे बढ़ाएँ, इस जटिल प्रश्न से हम त्रस्त हैं, ऐसे में टिम के शब्द मूलयवान हैं: ‘जीवन का कभी न शांत होने वाला महत्त्वपूर्ण प्रश्न है: आप दूसरों के लिए क्या कर रहे हैं?’ क्या इस सवाल का उत्तर परोपकार में है? अन्य अल्पसंख्यकों, पीड़ितों, संविधान के दायरे के बाहर फेंके गए लोगों के संघर्षों को समझकर उनका आदर करने में क्या हमारे संघर्ष का भविष्य है?

टिम की तरह भारत के यशस्वी समलैंगिक भी अगर अपने समुदाय, और आगे की नस्लों के बारे में सोचकर अपना प्रकटीकरण करें, और दर्शाए के समलैंगिक होने के बावजूद वे व्यावसायिक उपलब्धि हासिल कर सकते हैं, तो कितना फ़र्क़ पड़ेगा! जब आमिर खान जैसे विषमलैंगिक अपने कार्यक्रम ‘सत्यमेव जयते’ द्वारा इस अल्पसंख्यक समुदाय की लिए आवाज़ उठा सकते हैं, तो हमारे देश के यशस्वी एल.जी.बी.टी. व्यक्ति, जैसे बड़े फिल्म निर्देशक, उद्योगपति और राजनेता क्यों नहीं प्रकटीकरण कर सकते?

हमारे यहाँ सामाजिक शर्म का बड़ा किरदार है। टिम कुक ने इसका भी उल्लेख किया है। एकांत और निजी ज़िन्दगी की गुप्तता उनके लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। लेकिन उन्हें ज्ञात हुआ कि निजी जीवन निजी रखने की इच्छा उन्हें बहुत बड़े बदलाव लाने के अवसर से दूर रख रही है। इसलिए आज वे समलैंगिक होने का सार्वजनिक खुलासा कर रहे हैं। वैसे उनकी कंपनी ‘ऍपल’ के बहुत सारे लोग उनकी समलैंगिकता के बारे में जानते थे, और किसी ने भी उनके साथ बुरा व्यवहार नहीं किया। इसकी वजह ‘ऍपल’की रचनात्मक, वैविध्यपूर्ण और अभिनवता को प्राधान्य देने वाली संस्कृति। हर किसी को यह सौभाग्य प्राप्त नहीं होता। बहुत से समलैंगिक अपने आप को ऐसे माहौल में पाते हैं जहाँ उन्हें आए दिन ज़िल्लत-भरे व्यवहार और गुनहगार होने की भावना का अनुभव करना पड़ता है।

बहुत से लोग हैं जो सोचते हैं “मैं क्यों अपने-आप को जोखिम में डालूँ? यह लड़ाई किसी और को लड़ने दो। जीत के फल जब आएंगे तब हम उनकी मिठास चखेंगे, तब तक छुपकर रहेंगे और इंतज़ार करेंगे के कोई और क़दम उठाए”। टिम कुक को अहसास है, कि भले ही वे गे समानाधिकारों के लिए कार्यरत नहीं हैं, एल.जी.बी.टी. कार्यकर्ताओं के बलिदान से उन्हें बहुत कुछ हासिल हुआ है। ‘अगर मेरे प्रकटीकरण से किसी और के अपने आप को स्वीकार करने में मदद हो, उस व्यक्ति को बल मिले जो अकेला महसूस कर रही हो, या फिर कुछ लोगों को समान अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा मिले, तो मेरे गँवाए हुए निजी एकांत की दी गई बलि व्यर्थ नहीं होगी’।

उनके लेख का आखरी हिस्सा बहुत सुन्दर है। वे कहते हैं, ‘इन्साफ और सत्यता की तरफ का रास्ता एक-एक ईंट डालकर बनता है। आज मैंने अपनी ईंट दाल दी है।” न्याय का मार्ग सुदृढ़ करने के लिए क्या हम भी अपनी क्षमता के अनुसार ईंट डाल रहे हैं?