सभी दोस्तों को मेरा सलाम। आज मैं यहाँ पर जो कुछ भी लिख रहा हूँ वह सब मैं अपने बारे में लिख रहा हूँ। अपने अस्तित्व की कहानी लिख रहा हूँ।
नमस्ते दोस्तों, मेरा नाम आकाश है। मेरा जन्म भारत के महाराष्ट्र में नागपुर शहर में चौबीस जुलाई १९९१ में एक छोटे परिवार में हुआ। जहाँ पर मेरा जन्म हुआ वहाँ के लोगों की मानसिकता एक पिछड़े वर्ग की सोच से मेल खाती थी। आम इंसान की तरह मेरी भी परवरिश अच्छी हुई। वह भी जब तक कि मुझे समझ ना आए तब तक, मुझे दूसरे लड़कों लड़की की तरह दो हाथ दो पाव हैं।
कहने का मतलब यह था कि जब मैं पाँच साल का हुआ तो मुझे मेरी दीदी के कपड़े पहन कर नाचना और लड़कियों की तरह रहना बहुत पसंद था। समय बढ़ता गया। मैं आठ साल का हुआ और मेरे हाव-भाव मेरे परिवार और समाज के लोगों को समझ आने लगे। मुझे लड़कियों के साथ खेलना-कूदना बहुत पसंद था। मैं भी गुड्डे-गुड़ियों के साथ खेलता था। मुझे क्रिकेट पसंद नहीं था। मेरा जिस तरीके का व्यवहार था उस व्यवहार, उस जीवन को लेकर समाज स्कूल परिवार में मुझे और मुझ से जुड़ी हुई चीजों को लेकर चर्चा होने लगी। उनकी भाषा में मुझे ‘मामू’, ‘बायल्या’, ‘छक्का’ यह सब बोलने लगे।
यह सारी चीजें मेरी समझ से परे थी। कारण मैं अपने बचपन के जीवन को जी रहा था। मुझे नहीं पता था कि मैं क्या हूँ। परंतु मेरे परिवारवाले मुझे मेरे व्यवहार को लेकर बहुत डाँटते थे। स्कूल में मेरे से कोई भी बात नहीं करता था। सब मुझे ‘बायल्या’ नाम से चिढ़ाते थे। और मेरे एरिया में भी मुझे लड़के परेशान करते थे।
एक तो मेरी छोटी उमर। उस में मेरे कोई दोस्त नहीं। ऊपर से मुझ पर होने वाले अभद्र व्यवहार। परंतु मैं वहां रुका नहीं। आगे बढ़ा। समय बढ़ता गया। मैं चौदह साल का हुआ। कक्षा आठवीं, स्कूल न्यू इंग्लिश हाई स्कूल। वहां पर भी मुझे जब भी स्कूल की प्रार्थना होती थी तो मैं अकेला अपनी कक्षा से जाता था। मेरे साथ कभी भी कोई नहीं आता था। सब दोस्त अपने ग्रुप के साथ जाते थे। मैं अपने बेंच पर भी अकेला बैठा था। टिफिन भी अकेला खाता था। कारण मुझे कोई भी पसंद नहीं करता था। परंतु कुछ लड़के थे जो मुझे परेशान करते थे। मुझे इधर-उधर हाथ लगाते थे। मुझे दबा देते थे और उसमें मुझे कई बार चोटें भी आयीं।
पर मैंने कभी शिकायत नहीं की। क्योंकि वह मुझे डराते थे कि अगर तूने किसी को बताया तो हम स्कूल के सभी बड़े लड़कों को तेरे बारे में बता देंगे। और तद्पश्चात वे भी तुझे परेशान करेंगे। इस डर से मैं चुपचाप रहता था। एक बार स्कूल के कुछ लड़के स्कूल की बालकनी में खड़े थे। वह स्कूल की छात्राओं को देखकर गंदी-गंदी बातें कर रहे थे। उनके शब्दों में वो उन्हें ‘माल’ और ‘क्या फिगर है’ यह कहते थे। और ‘यह मुझे मिल जाएगी’ शब्दों में बोलते हैं।
परंतु मैं सोच में पड़ जाता था कि मुझे क्यों लड़कियों के लिए कोई जसबात नहीं आते? मुझे कुछ महसूस क्यों नहीं होता? और उल्टा मुझे वही लड़के क्यों पसंद आते हैं? मैं लड़कों की खूबसूरती की तरफ अपना झुकाव क्यों महसूस करता हूँ?
ये सारे सवाल मुझे और परेशान करते थे। मैं घर के सारे काम कर लेता था। बर्तन, कपड़े, पूजा-पाठ, खाना पकाना इन सबने में माहिर था। तो मेरी आई खुश हो जाती थी। परंतु परिवार के लोग उसे बोलते थे कि तेरा लड़का ऐसा है। लड़की की तरह बात करता है, चलता है। दूसरे लड़कों के साथ नहीं खेलता। यह सब सुनकर मेरी माँ मुझ पर बहुत गुस्सा होती थी। मुझे घर-घुसा, बाईला, बोलती थी। मेरे पापा, मामा,चाची, चाचा सब मुझे कुछ न कुछ बोलते थे। और मैं हमेशा अकेले बैठ कर रोता था। क्योंकि मुझे लगता था कि मैं अकेला इस दुनिया में ऐसा हूँ। और मैं हमेशा डरा-सा रहता था। किसी से बात नहीं करता था। लोग भी मुझसे बात करना पसंद नहीं करते थे।
मैं और बड़ा हुआ। मैं सोलह-सतारह साल का हुआ तब कक्षा दसवीं में था। ‘हैपी न्यू यर’ करीब था। उस समय कक्षा के लड़कों ने पार्टी की प्लानिंग की, उन्होंने मुझे भी बोला कि तू सौ रूपए दे। और तू भी आजा। मैं बहुत खुश हो गया। मेरे जीवन में पहली बार ऐसा मौका आया था कि मुझे जो लोग नजर अंदाज करते थे आज वह अपनी खुशी में शामिल कर रहे थे। मैंने यह बात अपनी आई को बताई। उसने मुझे पैसे दिए और परवानगी यानि अनुमति भी दी। और बोला, ‘तू रात भर बाहर रहने वाला है तो संभल कर रहना।’
मैं अपनी साइकिल लेकर रात के आठ बजे घर से निकला। मानेवाड़ा रोड, जो नागपुर शहर में है, वहाँ अपने दोस्त के घर में पहुंचा। पार्टी की तैयारियाँ शुरु हो चुकी थी। सब नाचने लगे। पर कुछ लड़के मेरे साथ बहुत अजीब तरीके से नाच रहे थे। मुझे धक्का मार रहे थे। मुझे अलग-अलग तरीके से हाथ लगा रहे थे। मैं उनका नाचना समझ नहीं पाया। मुझे लगा यह भी कोई नाचने का तरीका होगा। पर मैं वहाँ पर अकेला पड़ गया और मुझे उनका तरीका पसंद नहीं आया।
मैंने खाना खाया और रात के एक बजे एक रूम में जाकर सो गया। परंतु वहाँ पर मेरे से बड़े बारह लड़के रूम में आ गये। और मेरे आस-पास सो गए। एक लड़का मुझे हाथ लगा रहा था। उसका छूना मुझे बहुत अच्छा लगा। परंतु थोड़ी देर में सारे लडके मुझ पर आ गए। मेरे साथ सेक्स करने की कोशिश करने लगे। सब मेरे ऊपर आ गए। मैं नीचे दब गया। मुझे सास लेनी नहीं हो रही थी। परंतु मैंने खुद को कैसे भी करके आजाद किया। और अँधेरी रात प्रातः चार बजे अपनी साइकिल लेकर भाग गया। उस दिन से मैं बहुत डरा-डरा रहता था। और खुद को मारने के बारे में सोचता था।
मैं थोड़ा और बड़ा हुआ। उन्नीस साल की उम्र में बी.सी.ए. के फर्स्ट ईयर में कमला नेहरू कॉलेज में एडमिशन ली। मेरे व्यवहार की वजह से जो मैंने अपने बीते हुए कल में परेशानी झेली थी, वो उस वजह से मैं अपने आज में खेलना नहीं चाहता था। इसलिए मैंने अपने व्यवहार जीवन में बदलाव लाया। दूसरे लड़कों की तरह चलना बोलना सीखा। लड़कियां पसंद नहीं थी तो भी उनको देखता था। इसके पीछे का कारण यह था कि मेरे इस जीवन की वजह से मुझे और मेरे परिवार को जो परेशानियां हो रही थी वह ना हो। इसलिए मैं बनावटी जीवन जी रहा था।
परंतु यह जीवन मुझे एक बोझ की तरह लग रहा था। ऐसा लग रहा था कि मैं घुट-घुट कर जी रहा हूँ। फिर तीन महीने के बाद मैं जैसा था वैसा ही बन गया। मुझे समझ में आ गया था कि यह कोई व्यवहार नहीं यह मेरा जीवन है। और वह ऐसा ही है परंतु कॉलेज में भी पढ़ रहा था। वहाँ वही ताने सुनने पड़ रहे थे। इसी वजह से मैं परेशान हो जाता था। साथ ही, कॉलेज में हर किसी के, बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड होते थे। पर मुझे लड़के पसंद थे। इस वजह से मुझे किसी का प्यार मिलना मुश्किल था। लड़के मेरे क़रीब आते थे पर सेक्स के लिए। लेकिन मुझे प्यार की जरूरत थी।
इन सारी सोच की वजह से मेरा ध्यान पढ़ाई से हट गया। मैं फेल हो गया। घर पर बहुत डांट पड़ी। साथ ही, मेरी लैंगिकता को लेकर बहुत कुछ बोला गया। समाज, परिवार, कॉलेज के ताने सुनकर मुझे खुद से नफरत होने लगी। मैंने निर्णय लिया कि मुझे अब मर जाना चाहिए। मैं टॉयलेट में गया। वहाँ जाकर जहर पी लिया और वहीं पर बेहोश हो गया था। मुझे देख कर घरवाले घबरा गये। डॉक्टर के पास ले कर गए। डॉक्टर ने बोला पुलिस केस है, एडमिट नहीं कर सकते। पर मेरे घरवालों ने हिम्मत नहीं हारी और मुझे कमाल चोक पर भटनागर डॉक्टर के पास ले गए। उसने मुझे एडमिट कर लिया। दो दिन बाद मुझे खुद को जिंदा देखकर मैं कुछ भी नहीं सोच पाया।
जब मैं घर आया तो मैंने एक चीज जरुर महसूस की। मैं जैसा भी हूँ मेरे परिवार वाले मुझे बहुत प्यार करते हैं। उस दिन से मैंने ठान लिया कि आज के बाद अपने आई-बाबा के लिए जीऊँगा। समाज से अपने समलैंगिकता के लिए लडूँगा। और अपने जैसे लोगों के लिए भी लडूँगा। और मेरे जैसे लोगों के लिए समाज में एक स्थान बनाऊँगा। कारण मैंने जो परेशानियाँ झेली वही परेशानियाँ मेरी कम्युनिटी ना झेल पाये, यह सोच रख कर यह हिम्मत रखता।
मैं आगे बढ़ा परंतु समाज का मुझे देखने का नजरिया कभी नहीं बदला। मेरा रहन-सहन इन सबको लेकर समाज के कुछ लड़के मुझे हमेशा वासना का शिकार बनाने की कोशिश करते थे। परंतु मैं हमेशा खुद को बचाने की कोशिश करते रहता था। इसी कारण दो बार मेरा शारीरिक शोषण भी हुआ। मैंने सदर पुलिस स्टेशन में पुलिस कंप्लेंट भी दर्ज कराई। पर कोई फायदा नहीं हुआ। मेरी आवाज वही दब गई और मैं कुछ नहीं कर पाया। परंतु आज मुझमें इतनी शक्ति है कि अब मैं खुद की रक्षा भी कर सकता हूं। और अपने जैसों की भी बस अभी यह परेशानी सता रही है कि घरवाले बोल रहे हैं कि अब मेरी शादी की उम्र हो चुकी है।
परंतु मैं किसी लड़की को धोखा देकर झूठे समाज की शान के लिए और परिवार की शान के लिए और खुद को आदमी साबित करने के लिए किसी लड़की की जिंदगी बर्बाद नहीं करूंगा। और समय आने पर अपने परिवार को भी अपने समलैंगिकता के बारे में जरुर बताऊंगा। और जब तक जीऊंगा तब तक समाज में अपने जैसे भाई-बहन के लिए लडूंगा रहूंगा। धन्यवाद!
- “इस रात की सुबह है”: आकाश की कहानी - January 18, 2017