Site iconGaylaxy Magazine

“उन्होंने कुछ नहीं कहा” – स्वगत कथन

'उन्होंने कुछ नहीं कहा' - एक कविता | तस्वीर: सेंतिल वासन | सौजन्य: क्यूग्राफी |

'उन्होंने कुछ नहीं कहा' - एक कविता | तस्वीर: सेंतिल वासन | सौजन्य: क्यूग्राफी |

प्रस्तुत है इस स्वगत-कथन की उत्तर-कृति:

वह चुपचाप होने वाली बातें जो होकर रह गयी हैं: वक़्त के तले में अब भी चिपकी हुई हैं। वो कुछ न कह सके हम कुछ न कह सके; कभी हिम्मत न थी: कभी कहने को मौका न था; कभी कहने को कुछ बचा न था।

वह पूरे रस्ते चिपककर बैठा था मुझसे; उस छोटे स्टेशन पर बिना पलटे उतर गया।

उसके सरकर पास आते हाथों ने किसी की याद दिला दी; फ्लाईओवर के नीचे खड़ी उस कार में ख़ामोश हम थे; ख़ामोश ही रहे।

उस एटीएम की लाइन में वही था। मुझे याद था – उसकी खोपड़ी पर टटोलने पर एक गड्डा-सा दिखता था; उसके कन्धों पर चाकू का लम्बा निशान; बगलों मे चलनेवाली गुदगुदियाँ; उसका आधा-टूटा दांत; तना हुआ जनेऊ … पर मुझे याद न है कि उन दिनों मेरा नाम क्या हुआ करता था।

पानी बरसते जा रहा हैं; बादल तब भी घिर आये थे जब वह अपने घर से नहाकर निकला था। गरजने लगे थे, जब पेंट उतारने के चक्कर में मोबाइल फिसल कर गिर पड़ा था। अब बरस रहे हैं बादल, और वह मेहमान की तरह बैठक में बैठा है, कभी खिड़की की तरफ, कभी मेरी तरफ, कभी मोबाइल की तरफ देख रहा हैं।

'उन्होंने कुछ नहीं कहा' - एक कविता | तस्वीर: अविजीत चक्रवर्ती | सौजन्य: क्यूग्राफी |

‘उन्होंने कुछ नहीं कहा’ – एक कविता | तस्वीर: अविजीत चक्रवर्ती | सौजन्य: क्यूग्राफी |

उसे कुछ बताना था: मेरे सपने, मैं अब भी रातों को सकपका कर जग जाता हूँ, अजीब सपनो से। बरसात रुक चुकी है और वह बाहर गीली सड़क पर हैं।

मोबाइल पर पड़ी दरारों को वह ऐसे सहलाता हैं जैसे कंधे पर बचपन का कोई लम्बा निशान हैं जो कभी-कभी यादों को खुजलाता हैं।

उस लम्बे सफ़र में बहुत बातें की उस अजनबी से, किसी उम्मीद में। कॉलेज के बिछड़े दोस्त की तरह पर अब चुप्पी है। क्योंकि उसे पता हैं कि ‘मैं हूँ’। और मुझे पता हैं कि ‘वह नहीं है’।

Latest posts by कपिल कुमार (Kapil Kumar) (see all)
Exit mobile version