ये बातें उस दौर की हैं जिसे गुज़रे ज्यादा समय नहीं बीता है। पर इतना कुछ बदल चुका है, कि ये बातें किसी और ही सदी की लगती हैं, जो लोगों की आँखों से बच कर निकल गयी हैं। जिसे जाननेवाला, पहचाननेवाला, कोई बचा नहीं है। यह स्वगत कथन, कहानी उन लोगों की है, जिन्हें सुननेवाला कोई नहीं है, जिन्हें सुनानेवाला कोई नहीं है। वे लोग जो कुछ बिखरे हुए थे, जो कुछ टूटे हुए थे, शर्म से सने थे; पर बिना किसी ओट के, बिना किसी परदे के मुझसे मिले थे और उन्होंने कहा था ,”…………”।
१
(उस मुछो वाले थके हुए आदमी ने रात के दो बजे)
“कण्डोम को फ्लश किया है कभी? उसको फ्लश करोगे तो वह घूमता ही रहेगा कमोड में। आधा हवा से , और आधा तुम्हारे वीर्य से फुला हुआ वो कण्डोम, कितना भी फ्लश कर लो, जायेगा नहीं, चिपका रहेगा, वही घूमता रहेगा।
जब तक की तुम उसमे गाँठ नहीं मारोगे।
तुम लोगो के साथ भी साला यही है।”
२
(उस अभी-अभी प्रौढ़ हुए घुंघरारे बाल वाले छोटे-से आदमी ने )
“मुझे लगता नहीं था मुझे कभी अपना प्यार मिलेगा, पर मुझे मिला। कितना अजीब था ये, कि मुझे उसे दूर धकेलना भी पड़ा। छिटककर दूर जाते हुए उसने कुछ कहा था, लिपटकर, फुसफुसाते हुए, जो मुझे आज याद नहीं। उस दौर की हर बात की तरह, जो मुझे पता है थी, पर अब याद नहीं।”
३
(चमकीले दांत वाले आदमी ने , छोटे से शहर के स्टेशन के पास ,छोटे से होटल में )
“जानते हो, मैं भी दो साल पहले मुंबई में था, क्या था मैं यार!
( बहुत सारी बकवास और तीन पैक के बाद )
मेरी वापसी का टिकट हो चुका था, आखरी कुछ दिन बचे थे, तब मैं उससे मिला था। एक्टिविस्ट था, मेरा पहला, आखरी, एकलौता, आउट, ओपन, एक्टिविस्ट। उसने एक दुनिया देख ली थी, दुनिया बदलने का सपना देखने वाले बॉयफ्रेंड, एक-एक करके शादी करते हुए बॉयफ्रेंड । हज़ारो हज़ार राहुलों को आते हुए, राहुलों को जाते हुए। एड्स महामारी, लोगों के अपने होने की लड़ाई लड़ते हुए, और हार कर अमेरिका जाते हुए, छोटी-छोटी आशाएँ और बड़ी बड़ी सच्चाइयाँ। उसने सब देखा था, पर उसकी आँखों के नीचे गद्दे नहीं थे। अजीब था, सब कुछ अलग था, पहली बार कोई पिघल नहीं रहा था, झूंझ नहीं रहा था, डर नहीं रहा था। कह नहीं रहा था: “अरे निशान पड जायेगा”; “संभल के “; “काटना मत “।
सोचो तो…. मैं हज़ारो हज़ार लोगो से मिला, पर मेरे ‘मैं’ होने का कहीं कोई निशान बाकि बचा होगा तो वह उसके शारीर पर होगा । हा हा ह हा।
मेरा नाम ?
राहुल।”
(मेरे बड़ी आँखों वाले क्रांतिकारी बॉयफ्रेंड ने, हॉस्टल की छत पर )
“अपनी असलियत को बिस्तर के नीचे मत छुपाओ; आने दो बाहर सच को; तुम मत छुपो उससे जो तुमसे डरता हो, उसे और डराओ, इतना डराओ की वो खुद ही छुप जाये।”
४
(मेरे बड़ी आँखों वाले क्रान्तिकारी बॉयफ्रेंड ने , हमारी पहचान होने के बाद और पहले कई बार )
“तुम बात करते हो या कविता पढ़ते हो ? …. गुलज़ार।”
५
(मैं अपने आप से कई बार )
“वो क्रांतिकारी था शायद इसलिए हमें अलग होना पड़ा। मेरी ज़िदगी आगे बढ़ गयी। पीछे कुछ छूटा नहीं, क्योकि कुछ बचा नहीं । कच्ची मिटटी की दुनिया पहली बारिश में बह गयी।
लम्बी चुप्पी के बाद मैं उठा, कुछ बोल पाने की असफल कोशिश की और चल पड़ा। मैं पीछे मुड़कर नहीं देख पाया कि वह रो रहा है, या सिर नीचे किये बैठा है ,या वो भी उठ कर चल दिया है क्योकि मैं डरता था कि वह कहीं मेरी ओर अब भी अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से ताक नहीं रहा हो।
सो मैंने कभी जानने की कोशिश नहीं की कि उसके साथ क्या हुआ ? ……… क्या उसने आत्महत्या कर ली? (जैसा वह अक्सर बोलता था।) क्या वह अब भी जिन्दा है और उसने शादी कर ली? क्या वह दो बच्चियों का बाप है या वह यू.एस. चला गया ?? या वह अब भी क्रांतिकारी है? मुझे नहीं पता।”
६
(उस शराबी ने आखरी बार के बाद , एक बार फिर आखरी बार मिलते हुए)
“एक खालीपन है, जो चुभता है। वही कुछ कम करने की कोशिश करता हूँ हर बार। या यह एक बहाना है , मेरे वो होने का, जो मैं हूँ।”
७
(बिना कपड़ो के इनकम टैक्स अफसर ने , शादी के जोड़े में अपनी बेटी की, अपने दामाद के साथ दीवार पर टकी आदम कद तस्वीर के सामने)
जो तुम चाहते हो वो मेरे पास नहीं है । मुझे नहीं पता प्यार क्या होता है ? कैसे होता है ? कैसे किया जाता है ? मैं पचास का हुँ , किसी ने आज तक मुझे प्यार नहीं किया ,ना आने वाले पचास सालो में कोई करेगा।
८
(उस भूरी ढाढ़ी वाले बिल्कुल सफ़ेद महाराष्ट्रियन ने)
“आई वाज रेप्ड …. या मेरे मौसा ने ….. भालू जैसे बाल थे उनके शरीर पर …. एक ही रात में कई बार। दर्द से चिल्ला रहा था में, ना जाने क्यों कोई सुनने वाला नहीं था। हरामज़ादे ने पता है खत्म होने के बाद क्या कहा था? “आशुतोष, अगली बार से इतना दर्द नहीं होगा। “
दिमाग का क्या अजीब खेल है कि सालों बाद उस रात की पूरी याद ही बदल गयी। समटाइमस आई इवन मास्टरबेट रिमेंबरिंग देट नाईट।
या…. मैं उनसे मिला भी एक बार। सालो बाद, बूढ़ा गया था वह। बिना दांतों वाला भालू। लोग कह रहे थे बीमार है, उम्र हो गयी है, कुछ याद बाकी नहीं बची है। वह अपनी इकलौती बेटी को नहीं पहचान पा रहा था। किसी ने उसके कान में चिल्लाकर कहा।
“देखो कौन आया है …. ललिता का छोटा बेटा ….. फुटबॉल खेलने आया करता था जो।”
वह मेरी आँखों में नहीं देख पाया, रोने लगा मादरचोद।”
९
(मेरे जैसे किसी ने , बरसात से लड़ती दोपहरी में)
“इस खाली फ्लैट में कुछ इस्तेमाल में आता है, तो वो है मेरा बिस्तर। गैस कबकी खत्म हो चुकी है, फ्रीज़ खाली है , टीवी है पर केबल नहीं है। मैंने अपने घर पर कभी किसी को नहीं बुलाया जिन्हे मैं जानता हूँ। कभी कोई कहता है, “भूल गए थे क्या ?” तो याद आता है कि मुलाकात पहले भी हो चुकी है, किसी दोपहरी में, या शाम ढले, इसी तरह, वही तम्बाखू-भरी साँसें, वही खट्टा-सा स्वाद, वही अधूरापन।”
१०
(मेरे जैसे लम्बे बालों वाले आदमी ने उसी बरसात के मौसम में)
डर लगता है, कई रातों को । लगता है कोई अजनबी जो मेरे घर पर आया था, जो मेरे बिस्तर पर लेटा था (बिना कपड़ो के), लौटा नहीं है। वही कही ओट में छिपकर बैठा है, पलंग के नीचे, दरवाज़े के पीछे। दबोच लेगा मुझे, एक चीख नहीं निकलने देगा। सालो तक लोगो को मालूम ही नहीं चलेगा, संभव है शायद कभी मालूम न चले । मेरे न होने का, या कभी मेरे होने का।
११
(मैं , सालो बाद ,मेरे बड़ी आँखों वालेक्रांतिकारी बॉयफ्रेंडसे, टूटकर रोने की चाहत लिए हुए, पर उसे बिना छुए हुए, सपाट धीमी आवाज़ में।)
तुम कुछ कहा करते थे न “असलियत” को लेकर… .. कुछ अच्छा सा था .. क्या था ???
– वारुण, मुझे रुकना चाहिए था……।
थक गया हूँ मैं, उनींदी लाल आँखे अब जलने लगी हैं। सपने उन चेहरों से भरे है, जिनका नाम मैं पूछना भूल गया था। बचपन में छुपाए कंचो की तरह मैं अपनी असलियत कही छुपा कर भूल गया हूँ , जो अब ढूंढे नहीं मिलेगी।
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