‘हँसी’ – एक कहानी

कपिल कुमार।

वो उनकी बातो से बच कर निकल जाना चाहता था। वो आज हसना नहीं चाहता था।
“चल तू ऐसे किसी से पूछ ही नहीं सकता”, प्रेरित बोल रहा था। ऑफिस की केन्टीन खाली थी, वो चार लोग ही थे । प्रेरित और रे लड़ रहे थे ।
 हँसी - एक कहानी. तस्वीर: सचिन जैन

हँसी – एक कहानी. तस्वीर: सचिन जैन

“क्या हुआ ?” सारस थोड़ा लेट आया था। “प्रेरित और रे का नया रूम पार्टनर गे है।” आवेश ने बिना लग लपट कर बोला।
“नहीं वो नहीं है।” प्रेरित
“एक मिनिट। … वो है या नहीं है तुम्हे कैसे पता।”
“रे ने उससे पूछा।”
“और उसने हाँ कहा ??”
“नहीं उसने ब्लश किया।” रे अब अपनी हसी नहीं रोक पाया।
“प्रेरित तू तो लूट गया रे।” आवेश
“नहीं। ऐसे कोई किसी से नहीं पूछ सकता।”
“तुझे तकलीफ उसके गे होने से नहीं रे, उससे पूछने से है। प्रेरित, गे राइट एक्टिविस्ट।”
पता नहीं क्यों अब प्रेरित को झेप होने लगी थी, लगा रहा था जैसे प्रेरित अपने आप को बचा रहा है।
“यार वो गे हो सकता है हमारा गे उससे पूछ भी नहीं सकता।”
“हमारा गे ???”
“नहीं …रे… हमारा रे।”
“हा हा हा हा “
“पर नहीं पूछ सकता।”प्रेरित अटकते हुए बोला।
“मैंने तो पूछा , और मैंने ये भी कहा की इस बगल वाले बेड पर एक क्यूट सा लड़का सोता है।’
सारस को कोई जरुरी या गैर-जरुरी काम याद आता है। वो जाने की कोशिश करता है ,पर वही अटक कर रह जाता है।
“वो ज्यादा करेगा तो मैं दे दूंगा।”
“उसे तो मजा आ जायेगा।”
“बांस दे दूंगा।”
“अपने घर में कोई बांस नहीं है।”
“तो रिमोट से दूंगा, चमच दे दूंगा, झाड़ू दे दूंगा झंडू।” प्रेरित की सांसे उखड़ने लगी थी।
आवेश हँसने लगा।
“क्या क्या। साले तू तो चुप ही रह। तेरी जॉइनिंग से पहले ये तेरी भी मर्दानगी पर सवाल उठाते थे।”
“यार ये हाई कैसे करता था … हाईईई…..”
“हरामियो मैं पोलाइट बन रहा था।” कुछ था जो आवेश की अतड़ियो में अटक गया था।
वो अब भी हँस रहे थे पर बातचीत के कगार पर आ पहुंचे थे । पर बाते अब भी चल रही थी। जैसे रे कलिफ़ोर्निया कब जा रहा है; सारस की इंगेजमेंट कब है, प्रेरित की सरकारी नौकरी की कोशिशे, और आवेश के बारे में कुछ….। प्रेरित कह रहा था गर्मी बढ़ गयी है , आवेश बस सर हिला रहा था, रे बैचेनी में अंगुलियों में अंगुठिया घुमा रहा था, सारस को जरुरी या गैर जरुरी काम से जाना था , पर वो हिल नहीं रहा था।
उनमे से आज किसी के होठ हँसते-हँसते दुखने लगे थे।
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उनका नया रूम पार्टनर गे नहीं था ना ही रे ने उससे कभी ये पूछा था। रे कभी कलिफ़ोर्निया नहीं जा पाया, पर उसने अगले महीने ये नौकरी छोड़ दी। उसी साल सारस की शादी हो गयी । आवेश लम्बे समय तक उसी कंपनी में बना रहा और प्रेरित के चाचा ने उसे सरकारी ऑफिस में लगा ही दिया।
सालों बाद वो चारों कभी मिले या ना भी मिले हों; उन्होंने एक दूसरे की खोज-खबर ली या न भी ली हो, पर उन्हें पता था उनकी जिंदगियाँ कहाँ आकर ठहरी होगी – शादियाँ और बच्चे । सब खुश-से होंगे । सिवाए उसके जो उस दिन हँसना नहीं चाहता था पर फिर भी जिसके होठ हँसते-हँसते दुखने लगे थे।
कपिल कुमार (Kapil Kumar)
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