एलजीबीटी कम्युनिटी भारतीय समाज का एक बहुत ही बहुचर्चित विषय है। हालाकि भारतीय समाज आज भी एलजीबीटी कम्युनिटी को स्वीकार करने में असफल है। भारत में आए दिन ऐसी घटनाएं सुनने को मिलती हैं जहाँ पर किन्नर होने की वजह से उनका परिवार उनको अपनाने से मना कर देता है, हालाँकि ऐसे कुछ ही मामले दर्ज किए गए हैं। राष्ट्रीय मानवधिकर आयोग की ओर से केरला डेवलपमेंट सोसायटी के द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार यह पाया गया की लगभग 53% किन्नर समाज गुरु चेला प्रणाली के अन्तर्गत रहते हैं। गुरु चेला एक प्रणाली है जिसमें गुरु किन्नरों को रहने के लिए स्थान देते हैं और बदले में उनकी पगार से पैसे काट लेते हैं।
कानपुर की रहने वाली किरण काजल जो कि एक किन्नर है, उनको भी उनके परिवार ने सिर्फ थर्ड जेंडर होने की वजह से छोड़ दिया था। लेकिन उनके परिवार को तभी शायद ही पता होगा कि एक दिन किरण के पास पैसे से लेकर नाम, शोहरत और सम्मान सबकुछ होगा ।
गैलक्सी मैग्जीन किरण काजल के ऑफिस में जाकर उनसे मिलने में कामयाब रहा और उनके बचपन की ज़िंदगी से लेकर 30 रुपए की मज़दूरी तक और फिर उनके कानपुर के चुनाव में जीत हासिल करने तक के सफर के बारे में उनसे जाना ।
प्रारंभिक जीवन
44 वर्षीय लालमन उर्फ किरण काजल का जन्म कानपुर में हुआ था। वह क्षण उनके माता पिता और परिवार के लिए सबसे खुशी के पलों में से एक होना चाहिए था, लेकिन जैसे ही उनके परिवार को किरण के किन्नर होने की बात पता चली उन्होंने किरण को किसी और के पास ले जाकर छोड़ दिया जो की उसका खयाल रखने के लिए तैयार था । किरण ने यह दावा किया कि उनका जन्म आईएएस और पीसीएस जैसे बड़े अफसरों के परिवार में हुआ था।
किरण का दाखिला कानपुर के एक सरकारी स्कूल में करवाया गया था परन्तु परिवार (जिन्होंने गोद लिया) के तरफ से आर्थिक मदद ना मिलने की वजह से उन्हें आठवीं कक्षा के बाद बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। अब उनके पास रोड पर घूमने और जीविका के लिए कुछ पैसे कमाने के लिए इधर उधर भटकने के अलावा तबतक कोई चारा नहीं था जबतक की वह 12 साल की नहीं हो गई और 1 किन्नर गुरु द्दवारा गोद नहीं ले ली गई।
किरण को कभी भी किन्नर होने की वजह से भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा क्योंकि उनकी स्त्री जैसी आवाज़ की वजह से कोई पता ही नहीं लगा पाता था कि वो किन्नर है। “मैं काम के लिए इधर से उधर भटकती रहती थी। दिन के 30 रुपए के लिए सारा दिन सिर पर मिट्टी से भरा पतीला ढोती थी। वह समय मेरे जीवन का सबसे कठिन पल था। मै ज़िंदा रहने के लिए बहुत कठिन परिश्रम कर रही थी,” किरण ने कहा । फिर जाकर वो कमला नामक किन्नर गुरु से मिली जिसने किरण को गोद ले लिया।
किरण ने विभिन्न आयोजनों में नृत्य करना शुरू कर दिया। इसके साथ ही किरण ने पारम्परिक बधाई या आशीर्वाद का नृत्य भी करना शुरू कर दिया जो की किन्नर समाज शादियों जन्मों या त्योहारों में पैसे जमा करने के लिए करता है। यह आय के लिए उनका प्राथमिक स्रोत होता है। “मैं 12 वर्ष की बहुत कम उम्र में ही आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो गई थी,” किरण आगे बताती हैं।
राजनीतिक सफर
आयोजनों और उद्घाटनों में पैसे जमा करने के दौरान एक दिन उनकी मुलाकात समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह जी से हुई। वहाँ से उनकी अच्छी दोस्ती हो गई और फिर 1989 में किरण राजनीतिक पार्टी में शामिल हो गईं और समाज के लिए काम करना शुरू कर दिया – जैसे जरूरतमंदो को खाना और बाकी सहायता पहुँचाना। वह बहुत जल्दी पार्टी की सबसे सक्रिय सदस्य बन गई।
किरण पार्टी में इतनी ज्यादा सक्रिय हो गईं की उन्हे पार्टी की महिला आयोग की अध्यक्ष बना दिया गया। उनके काम को इतना सराहा और गौर किया गया कि जब उन्होंने पशुपति नगर, नौबस्ता से नगर निगम के चुनाव में भाग लिया तो भारी मत के साथ वो विजय हुई और फिर 2006 में वो कॉरपोरेटर बन गईं।
अपने लिए इतना समर्थन और इतनी प्रशंसा जो उन्हें मिल रही थी उसको देखते हुए 1 बार फिर 2012 में उन्होने महाराजपुर विधान सभा चुनाव क्षेत्र से विधान सभा का चुनाव लड़ा। हालांकि इसमें उन्हें जीत तो हासिल नहीं हुई लेकिन फिर भी उन्होंने आगे समाज के भले के लिए काम जारी रखा और अपनी कम्युनिटी के लोगो की मदद करती रहीं।
“हालांकि मैं विधानसभा का चुनाव नहीं जीत पाई पर मैंने कभी अपनी समाज सेवा बंद नहीं की। मैं लोगो को आर्थिक रूप से मदद करती हूं, खाना पहुँचाती हूं और अन्य चीजों में भी सहायता करती हूं। मैंने कई लोगो को गोद लिया और उनके पढ़ाई से लेकर हर ज़रूरी चीजों का खयाल रखा है। अब वो लोग सफलतापूर्वक अपनी ज़िन्दगी जी रहे हैं,” किरण ने बताया।
6 दिन में ग्र ाम प्रधान
उत्तर प्रदेश के 2021 पंचायत चुनाव से पहले किरण कानपुर के एक गाँव सेंपश्चिम पारा, बिधनू ब्लॉक पहुँची और पहुँचकर पाया कि उस गाँव में बहुत सारी कठिनायों से लोग गुज़र रहे है और वहाँ पर बहुत सी सुविधाओं की भी कमी है।
“लोगों को उनकी आवास योजना नहीं मिल रही है ( प्रधानमंत्री आवास योजना – गरीबों के लिए आवास योजना) साफ सफाई की व्यवस्था (स्वच्छ भारत अभियान के अन्तर्गत गरीबों के लिए शौचालय का निर्माण) नही मिल रही है जबकि वे लोग पात्रता मापदंड के लिए योग्य है। वर्षों से सड़के खराब पड़ी हैं। नहरें टूटी पड़ी हैं। सब मिलाकर गाँव में कुछ भी विकास नहीं है,” किरण ने बताया। यह गाँव उनके पूर्वजों का भी पैतृक स्थान हुआ करता था।
किरण ने सोचा कि बिना किसी अधिकार के वो उस गाँव के लिए कुछ नहीं कर सकती इसलिए उन्होंने पंचायत चुनाव में लड़ने का फैसला किया । इस चुनाव में गाँव के बहुत मशहूर और शक्तिशाली लोग भी हिस्सा ले रहे थे । ये लोग गाँव के लोगों को पैसा और शराब की रिश्वत दे रहे थे। वे लोग किरण के किन्नर होने पर उनको ताना भी मारते थे लेकिन आखिर में वो लोग हार ही गए।
“मैंने सिर्फ 6 दिनों में चुनाव जीत लिया। मुझे कुछ भी नहीं करना पड़ा था। गाँव के लोग मुझसे और मेरे काम से अच्छी तरह से परिचित थे, इसीलिए उन्होंने सरपंच के रूप में मुझे चुना। बाकी नेता जो मेरे विपक्ष में थे वो लोगों को मेरे किन्नर होने पर भ्रमित करते थें और लोगों को मुझे ना वोट करने के लिए अपील करते थे। वे लोग गाँव वासियों से कहते कि किरण एक किन्नर है और वो गाँव के लिए कुछ भी प्रगति का काम करने में असक्षम है। लेकिन वे और उनकी गंदी राजनीति दोनों असफल हो गए,” किरण ने आगे बताया।
यह पूछने पर की लोगों ने किरण की जीत को किस तरह से मनाया, किरण ने बताया कि चुनाव जीतने के बाद लोगों ने उन्हें 5 क्विंटल की माला 1 दिन में पहना दी थी।
अब किरण अपनी ज़िन्दगी के 5 साल गाँव की सरपंच के रूप में गाँव की प्रगति में देना चाहती है और गाँव का नक्शा बदलना चाहती है। गाँव में लगभग 10,000 से ज्यादा लोगों की संख्या में लोग रहते हैं जिनमें से 4000 वोटर्स हैं, किरण ने बताया।
किन्नर समाज पर
किरण पिछले 25 वर्षों से किन्नर समाज ( मंगलमुखी किन्नर समाज ) की राष्ट्रीय महासचिव हैं। वह कानपुर और उत्तर प्रदेश के अन्य जगहों से ही इस कम्युनिटी के लिए समाज सेवा करती आ रही हैं। वो मानती हैं कि समाज आज भी किन्नर समाज को उस तरीके से नहीं स्वीकारता है जैसे स्वीकारना चाहिए लेकिन सरकार के तरफ से किन्नरों के लिए बहुत सारी सुविधाएं और फायदे दिए गए हैं।
“उनके (किन्नरों) पास नौकरी करने के लिए सुविधा है, चुनाव लड़ने का अधिकार है, शिक्षा लेने का अधिकार है और समाज के लिए कुछ करने का अधिकार है और खुद की ज़िन्दगी जीने का अधिकार है। हमारे पास वो सारे अधिकार है जो 1 सामान्य व्यक्ति के पास होता है लेकिन फिर भी हमारी कम्युनिटी के लोग उन्हें पाने में असफल हो जाते हैं। वे लोग उस लाभ को पाने का कोई प्रयत्न नहीं करते क्योंकि उन्हें हमेशा से पारंपरिक बधाई नृत्य, सेक्स वर्क और ट्रैफिक सिग्नल और सार्वजनिक परिवाहनों पर पैसे मांगकर ही जीना सिखाया गया है और उसी में खुश रहने के लिए कहा जाता है।”
हालाँकि सरकार ने किन्नर समाज को कई सारे अधिकार दिए हैं लेकिन समाज आज भी उनको पूरे दिल से स्वीकारना नहीं चाहता। एनएचआरसी के अध्ययन के अनुसार यह पाया गया है कि 96% किन्नर बधाई नृत्य, भीख मांगना, सेक्स वर्क जैसे कामों की तरफ जाते हैं क्यूंकि योग्यता होने के बावजूद उन्हें सम्मान जनक नौकरी नहीं मिल पाती।
एक समय था जब किरण के पास कुछ भी नहीं था और उन्होंने 30 रुपए कि मज़दूरी की थी ज़िंदा रहने के लिए पर आज उनके पास फॉर्च्यूनर जैसी 4 महंगी गाड़ियां हैं, 4 बंगला है, 22 प्लॉट है और लगभग 10 एक्र की कृषि ज़मीन है।
“मेरे पास बहुत प्रॉपर्टी और बाकी धातु की चीजें हैं लेकिन मुझे पैसे की इतनी परवाह नहीं है। मै गरीबों की मदद के लिए और समाज की प्रगति के लिए जी जान से मेहनत करती हूं और यही काम मै अपनी आखिरी साँस तक करती रहूँगी,” किरण ने बताया।