मैं आदित्य से अभिन्न हूं। हम दो शरीर एक जान हैं।
पढ़िए कहानी कीपहली,दूसरी,तीसरीऔरचौथीकड़ी।पेश है पाँचवी और आखरी कड़ी:
फिर दोनो आँखों से आँसू निकलने लगे, मुझे लगा उसकी आँखें मुझसे पूछ रहीं थीं कि कितनी देर से आये, मुझे तुम्हारा ही इन्तजार था। मैंने पानी की पट्टी को पानी में भिगो कर आदित्य के हाथों पर, सीने पर और पैरों पर मला ताकि कुछ ठंडक का अहसास हो। फिर पट्टी को माथे पर रख दिया। तभी आंटी ब्रेड और चाय लेकर आ गईं तो मैंने आदित्य से कहा कुछ खा लो, उसने इशारों में सिर हिलाकर मना किया। मैंने कहा मेरी खातिर थोडा सा ही खा लो। मैंने उसे सहारा देकर बैठाया। उसने बस दो ब्रैड और थोडी सी चाय ही पी। इसके बाद उसने मेरे हाथ के ऊपर हाथ रखते हुए कहा अब आप जाइये। अब मैं आपके घर आपसे मिलने आऊँगा क्योंकि अब मैं ठीक हूँ।
आदित्य की ये बातें सुनकर न जाने क्यों मेरी आँखों मे आँसू भर आये। मैं न जाने क्यों उदास था। अपने घर आ गया, मेरा मन मुझे बार-बार आदित्य की तरफ खींच रहा था। जैसे कह रहा हो कि आदित्य को मत छोडो उसके पास चल कर बैठो। उसे तुम्हारी जरूरत है। उस रात मुझसे खाना नहीं खाया गया। वह २० जून की रात थी। मुझे नींद नहीं आ रही थी, बहुत कोशिश करने के बाद रात को एक या दो बजे मेरी आँख लगी। सोते हुए नींद में मुझे सपना दिखाई दिया। सपने में मैंने आदित्य को देखा – वह बिल्कुल स्वस्थ लग रहा था, उसके चेहरे की आभा इतनी दमक रही थी, कि आंखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गईं। मुझे आदित्य के चेहरे पर वही शान्ति और खुशी दिखाई दी जो हमेशा उसके चेहरे पर दिखाई देती थी।
सबसे पहले आदित्य ने मेरे माथे पर प्यार से चूमा और सिर पर, बालों पर प्यार से हाथ चलाते हुए बोला “देखो मैंने कहा था न कि मैं अब ठीक हूँ और अब मैं तुम्हारे घर तुम से मिलने आऊँगा। लो मैंने अपना वादा पूरा कर दिया। फिर से शायद ही हम दुबारा मिल पायें क्योंकि मुझे बहुत जरूरी काम से दूसरे देश जाना पड रहा है और शायद ही कभी वापस आ पाऊँ। मेरे पापा मम्मी का ध्यान रखना, मेरी छोटी बहन को भी बहन समान ही समझते हुए हमेशा खुश रखना और एक बात अपना ध्यान जरूर रखना, हमेशा खुश रहना क्योंकि तुम दुखी होगे तो मैं खुश कैसे रह सकता हूँ? इसीलिए मुझे कभी याद करोगे तब भी खुश ही होना, दुखी नहीं। उसने कुछ गंभीर होते हुए कहा देखो अगर तुम सच में ही कभी भी दिल से मुझे चाहते रहे हो या चाहते हो तो हमेशा अपना ध्यान रखना। दुनिया में किसी के आने से या चले जाने से कभी भी जिन्दगी की सरिता बहना नहीं बन्द करती। जो बात अब तक नहीं कही वह अब कहता हूँ। आई लव यू जय ।
भगवान से एक ही प्रार्थना है कि अगले जन्म में मुझे और तुम्हें जरूर मिलायें। इस जन्म में तो जिस्म बहुत बडा बंधन था लेकिन तब न उम्र का बन्धन हो और न जिस्म का बन्धन हो। ‘अच्छा अब अनुमति दो, बहुत प्रार्थना करने पर मालिक ने तुमसे मिलने की अनुमति दी है’- मैं मदहोश-सा आदित्य की ये बातें सुन रहा था और देखते ही देखते आदित्य रोशनी मे से अन्धेरे में कहीं विलीन हो गया। मेरी नींद खुल गई, मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे किसी ने मेरे माथे पर चूमा हो और मेरे हाथ से अपना हाथ छुडा कर अलग हुआ हो। मैं अभी अपनी सुस्ती को दूर ही कर रहा था कि मुझे कुछ शोर सुनाई दिया, किसी अनहोनी घटना के घटित होने के अनुमान ने मुझे बेचैन कर दिया।
तभी विजय रोता हुआ मेरे पास आया और रोते हुए बोला “भईया- आदित्य, आदित्य नहीं रहा। मुझे तो जैसे सांप सूंघ गया हो, काटो तो खून नहीं। हे भगवान, ये क्या हो गया? मैंने जल्दी जल्दी में उल्टे-सीधे कपडे पहने और आदित्य के घर की तरफ भागा। उसके घर पहुँचा और आदित्य के कमरे में घुसते ही आदित्य के बेजान शरीर पर नजर गई जो आदित्य के बैड पर पडा हुआ था। मैंने आदित्य के शरीर पर नजर डाली तो उसके चेहरे पर अभी भी संतोष के भाव ही दिखाई दिये, वही संतोष के भाव जो मैंने उस समय देखे थे जब उसने अपना लिखा हुआ पत्र मुझे दिया था और मेरा लिखा हुआ पत्र पढ था।
तभी मुझे न जाने कहाँ से यह विचार आया कि अब आदित्य मुझसे कभी नहीं मिलेगा। उस समय मुझे केवल रोते हुए चेहरे ही दिखाई दे रहे थे। मुझे कुछ सुनाई नहीं पड रहा था। मुझे केवल आदित्य के ये वाक्य कि “ अब मुझे दूसरे देश जाना है और शायद ही कभी वापस आ पाऊँ” बार-बार सुनाई पड रहा था। मुझे रोना आ रहा था कि अब मैं कभी भी प्रेम की मूर्ति से नहीं मिल पाऊँगा जो मुझे सबसे ज्याद प्यार करती थी। उसे याद करके बरबस ही मेरी दोनो आँखों में आँसू भर आये थे। उससे पहले मैंने जो कुछ किया था वह आदित्य की भावनाओं को सम्मान देने के लिए किया था लेकिन आज वह मेरी आँखों में, मेरे दिल में सच में ही रचा बसा हुआ था।
मेरे दिल में उसके लिए अथाह सम्मान और प्रेम जागृत हो गया था। उसके इस संसार को छोड कर जाने के बाद मैंने निश्चय किया था कि मैं कभी शादी नहीं करूँगा क्योंकि आदित्य जैसा प्यार मुझे कोई दे नहीं पायेगा और वह प्यार जो आदित्य के लिए मेरे दिल में है, मैं किसी को दे नहीं पाऊँगा। तेरहवीं वाले दिन रात को सपने में आदित्य फिर से मेरे पास आया। मैंने उसे देखते ही सीने से लगा लिया, मैंने उससे कहा तुम मुझे अकेला छोड कर क्यों चले गये, मैं तुम्हारे बिना कैसे रह पाऊँगा। अब मेरे लिए मन्दिर से प्रसाद कौन लेकर आयेगा, मै किसकी गोद में सिर रखकर सोऊँगा।
आदित्य ने बस इतना ही कहा जो कुछ हुआ वो सब एक नाटक था और ईश्वर के लिखे नाटक में मेरा पार्ट बस इतना ही था। इस नाटक मे अभी तुम्हारा पार्ट बाकी है, जब तुम्हारा पार्ट भी पूरा हो जायेगा तो तुम भी यहाँ मेरे पास आ जाओगे और देखो तुम दुखी मत हुआ करो क्योंकि तुम्हारे दुख से मैं भी दुखी होता हूँ। तुम्हें मेरे शब्द याद हैं हम दोनो अलग-अलग होकर भी एक है तो फिर तुम दुखी और उदास होगे तो मैं खुश कैसे हो सकता हूँ? तुम अपने आस-पास प्रकृति को देखो, कितनी सुन्दर है, अपने जीवन की गाडी को आगे बढाओ। तुम्हारे पापा मम्मी जिससे भी कहें या जो तुम्हें अच्छा लगे उससे शादी कर लो। इसी में मेरी खुशी है।
उस सपने के बाद मैंने हमेशा खुश रहने की कोशिश की, आफिस की ही एक लडकी रश्मी की मुस्कुराहट में मुझे आदित्य की हँसी नजर आती, मैंने उसे प्रपोज किया उसने मेरे प्रस्ताव को स्वीकार किया और वह स्वीकारोक्ति धीरे-धीरे प्यार में और प्यार शादी में बदल गया। मैं रश्मी को बहुत प्यार करता हूँ लेकिन दिल में आदित्य नाम की जो मूरत बसी हुई थी उसकी जगह कभी भर नहीं पाई और अभी भी जब मैं इन पंक्तियों को लिख रहा हूँ आदित्य का चेहरा आँखों में बसा हुआ हैरश्मी शायद इसीलिए आदित्य के जाने के बाद मुझे कभी उसकी किसी तस्वीर को देखने की जरूरत नहीं पडी। आदित्य भी फिर कभी मुझे दोबारा सपने में मिलने नहीं आया। मैं आशा करता हूँ कि वो जहाँ कहीं भी होगा मुझे जरूर देखा करता होगा और मेरी खुशी में खुश होता होगा।
यही तो है सच्चा प्यार जहाँ जिस्म से भी बढकर भावनाओं ने एक दूसरे को जोडे रखा, इस संसार से विदा होने के बाद भी। हालांकि मैं उम्र में उससे बडा हूँ लेकिन प्रेम के मामले में उससे छोटा हो गया। उसका प्रेम सदैव मेरे लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा क्योंकि मेरे जीवन में जो भी खुशियाँ है सब उसी की ही देन है। वह अब भी मेरे दिलके झरोखे में बैठा हुआ मुस्कुराता है और मुझे जब भी चाह होती है उसे देखने की तो आँखें बंद करके दिल के झरोखे को अन्तर्मन से देखता हूँ। भले ही आज वह सशरीर मेरे आस-पास नहीं है, लेकिन वह है, कहीं मेरे आस-पास ही, कहीं मुझ में ही समाया हुआ है। उसके साथ बिताये हुए सभी पल मेरे जीवन के अनमोल मोती है। हे मेरे प्यारे आदित्य, तुम जहाँ भी हो अपने इस प्यार का हार्दिक प्रेम स्वीकार और प्रणाम स्वीकार करो।
- शृंखलाबद्ध कहानी ‘आदित्य’ भाग ५/५ - May 7, 2014
- शृंखलाबद्ध कहानी ‘आदित्य’ भाग ४/५ - April 1, 2014
- शृंखलाबद्ध कहानी ‘आदित्य’ भाग ३ - March 1, 2014