मैं आदित्य से अभिन्न हूं। हम दो शरीर एक जान हैं।
पढ़िए कहानी की पहली कड़ी यहाँ।
यह सुन कर सभी हंसने लगे, आदित्य के चेहरे को मैने देखा वह भी हंस रहा था लेकिन उसकी हंसी मुझे झूठी जान पडी जैसे सिर्फ वह हंसने का दिखावा कर रहा हो, उसके चेहरे पर उसकी आंखों में अजीब सी पीडा के भाव थे। उसने एक बार मुझे देखा जैसे वह मुझ से नाराज है और फिर उठ कर चुपचाप अपने घर चला गया। उसके बाद वह एक सप्ताह तक हमारे घर नहीं आया। उसके न आने से मुझे कोई फर्क नहीं पडा लेकिन अजीब लगा कि जो इंसान एक दिन में २-३ बार मेरे घर आता था, एक हफ्ते से मेरे घर में एक बार भी नहीं आया।
एक दिन आदित्य के पापा सुबह सुबह ही मेरे घर आ गए और मेरे पापा से बोले शर्मा जी, गांव से फोन आया था, आदित्य की चाची की लडकी की शादी है और यहाँ पर आदित्य के पेपर शुरु हो गए है। थर्ड इयर के फायनल एग्जाम है, इसलिए आदित्य नहीं जा पाएगा। वह २१ साल का हो गया है लेकिन बहुत मासूम है। अकेले में डर न लगे इसलिए वह बोला कि जय को बोल दो कि रात को हमारे घर में आकर सो जाया करेंगे। पापा ने कहा ठीक है आप निश्चिन्त होकर जाइए और जब तक आप लोग वापस नहीं आएगें आदित्य हमारे घर पर ही खाना खा लिया करेगा और अपने घर पर सो जाया करेगा। और जय को करना ही क्या है वह रोज आप के घर पर जाकर सो जाया करेगा। वैसे भी वह यहाँ भी पढता और सोता ही है, वहाँ भी रात में जाकर सोना और पढना ही रहेगा और आदित्य को भी कम्पनी मिल जायेगी और अकेले घर में डर भी नहीं लगेगा। उस दिन दोपहर की ट्रेन पकड कर आदित्य के मम्मी पापा और छोटी बहन गाँव चले गए। शाम को आदित्य ने हमारे घर पर ही खाना खाया। मैं तो अपने घर पर ही सोना चाहता था लेकिन पापा और मम्मी ने जिद की कि मैं आदित्य के घर जाकर सोऊँ। मम्मी बोली बेटा तुम्हारे पापा ने वादा किया है यादव जी से कि तुम उनके घर जाकर सोओगे, अब अगर तुम नहीं जाते तो फिर तुम्हारे पापा की बतकटी होगी। मैंने जोर देते हुए कहा विजय को भेज दो न, वो तो आदित्य का दोस्त भी है। मम्मी बोली बेटा वह तो कब का खाना खा कर सो गया, चल आज चला जा कल से विजय ही चला जायेगा। तुझे करना ही क्या है वहाँ बैड और बिस्तर तो है ही जाकर चुपचाप सो जाना। मैंने न चाहते हुए भी आदित्य के घर जाना स्वीकार किया क्योंकि शायद किस्मत यही चाहती थी क्योंकि यह वही रात थी जो मेरी जिन्दगी में तूफान लाने वाली थी और मैं आने वाले तूफान से बेखबर था। मैंने आदित्य के घर का दरवाजा खटखटाया उसने दरवाजा खोला और बोला आप आ गये, मुझे लगा आप नहीं आयेंगे इसलिए मैं लेट गया था। मैंने हँसते हुए कहा अरे, जब तुमने कहा है तो फिर मुझे तो आना ही था और फिर कौन सा भारी काम करना है सिर्फ सोना ही तो है। मैं सामने बिछे हुए बिस्तर पर जाकर लेट गया। आदित्य कुछ समय तक दूर कुर्सी पर बैठा रहा और टी वी देखता रहा। मुझे नींद आ रही थी इसलिए मैं सो गया रात को २ बजे अचानक मेरी नींद खुली तो देखा आदित्य मेरी बगल में ही सो रहा था और मेरे सीने पर अपना सिर रखे हुआ था। मुझे अजीब सा लगा लेकिन साथ ही साथ अच्छा भी लगा, एक संतुष्ठी सी मेरे मन को मिली, मैंने ध्यान से आदित्य के चेहरे को देखा कितना मासुमियत भरा चेहरा था और चेहरे पर ऐसी शान्ति थी जैसे एक इंसान को संसार की सभी खुशियाँ मिल जायें तो उसके चेहरे पर संतुष्ठी के जो भाव आयेंगे वही भाव आदित्य के चेहरे पर भी सोते समय स्पष्ठ रूप से झलक रहे थे। कुछ देर बाद मैं फिर से नींद की बांहों में समा गया। मैं अपने घर पर कपडे उतार कर ही सोता था लेकिन आदित्य के घर पर मैं शर्ट और पैन्ट पहन कर ही सोया। सवेरे ६ बजे जब मैं अर्धनिद्रा में था यानि मैं सो रहा था लेकिन मेरी आसपास होने वाली सभी आवाजों को सुन रहा था। एक आवाज बहुत ही साफ-साफ सुनाई पङ रही थी। यह आवाज किसी परिचित की ही लग रही थी। जो कुछ कहा गया वह इस प्रकार था “आप समझते क्यों नहीं हैं, हम आप से प्यार करते हैं, आप हमारे हैं। प्लीज हमें अपना बना लीजिए हम आपके बिना नहीं रह सकते। आई लव यू………”
उसके कुछ देर बाद जब पूरी तरह से नींद खुल गई तो देखा आदित्य नहा धोकर तैयार हो चुका था। मैं बिस्तर पर से उठा और उठ कर अपने घर चला गया। नहा धोकर जब मैं पढने बैठा तो अचानक ही मेरा ध्यान सवेरे वाली बातों कि तरफ गया, हल्की हल्की बातें भी याद आ रही थीं, मैंने सोचा कमरे में तो हम दोनो ही थे तो आदित्य, आई लव यू किससे कह रहा था। फिर मैंने सोचा शायद वह आइने के सामने खङा होकर जैनी को औफर देने की प्रैक्टिस कर रहा होगा। फिर भी मेरा ध्यान उसी बात की तरफ ही लगा रहा क्योंकि मुझे लग रहा था कि आदित्य किसी ऐसे इंसान से वह सब बातें बोल रहा था जो उसके सामने हो। लेकिन वह है कौन? घर में तो हम दोनो ही थे, मुझ से तो वह यह कहेगा ही नहीं क्योंकि एक लङ्का दूसरे लङके से यह बात क्यों कहेगा? फिर वह आई लव यू, कह किस से रहा था? ये बातें मैं पूरे दिन सोचता रहा कि आखिर घर में हम दो के अलावा तीसरा कौन था?
उस दिन रात को मैं आदित्य के घर जाना चाह्ता था यह पूछने के लिए कि सवेरे घर में तीसरा कौन था? लेकिन विजय सोने के लिए चला गया इसलिए मैं, आदित्य के घर नहीं जा पाया। उस दिन के चौथे दिने विजय को जुकाम के कारण हल्का-हल्का बुखार था इसलिए वह घर पर ही सोया और मुझे आदित्य के घर जाने का मौका मिला। मैं रात का खाना खा कर आदित्य के साथ ही उसके घर सोने के लिए चला गया क्योंकि आदित्य हमारे घर पर ही खाना खा रहा था। आदित्य के घर पर मैं और आदित्य एक ही बैड पर लेटे हुए थे और लेटे-लेटे ही हम बातें कर रहे थे। मैंने आदित्य से पूछा, आदित्य सच सच बताओ क्या तुमने कभी किसी से प्यार किया है? कभी किसी को चाहा है? उसने हाँ में उत्तर दिया। मैंने पूछा, तो बताओ ना कौन है वह? आदित्य ने कहा कभी बताऊँगा आपको, लेकिन अभी नहीं बताऊँगा। आप बताइए आप की जिन्दगी में कोई है क्या? मैंने कहा, नहिं यार मैं तुम्हारी तरह खुशकिस्मत कहाँ जो मुझे किसी का प्यार मिले? अच्छा एक बात बताओ ४ दिन पहले जब मैं तुम्हारे घर पर सोया था तो मुझे लग रहा था कि हम दोनों के अलावा कोई तीसरा भी था, इस घर में जिससे तुम बातें कर रहे थे। कौन था वो? तुम किससे आई लव यू बोल रहे थे? मेरी बातें सुन कर आदित्य कुछ सकुचा सा गया और बोला कोई तो नहीं था और फिर मैं किसी से आई लव यू क्यों कहूँगा। मैंने कहा देखो झूठ मत बोलो, सच सच बताओ कौन था वो, जिससे तुम आई लव यू बोल रहे थे। उसने कहा मैं आपको कल सुबह बताऊँगा कि कौन है वो, जिसे मैंने अपने दिल की बात कहने की कोशिश की। मैंने पूछा अभी क्यों नही, उसने कहा नहीं मैं आपको कल सवेरे ही उसका नाम बताऊँगा। उसके बाद बातें करते-करते ही न जाने कब मैं सो गया।
उस रात सोते समय मेरी नींद हल्की सी खुली तो मुझे महसूस हुआ दो कोमल से हाथ मेरे शरीर को प्रेम पूर्ण स्पर्श प्रदान कर रहे थे, मेरी नींद धीरे-धीरे दूर होती गई मेरी चेतना वापस आ गई पर उस स्पर्श ने मेरे शरीर में कामोन्माद जागृत कर दिया था और उस समय मैं वासना से पूर्ण एक खिलाङी या कहें तो हैवान बन चुका था, मुझे नियमों, सामाजिक मर्यादाओं में से किसी का ध्यान नहीं था। उन हाथों का स्पर्श मेरे शरीर में सिहरन को उत्पन्न कर रहा था। कभी वो हाथ मेरे गालों को, कभी गले को, कभी सीने को तो कभी पीठ को स्पर्श करते, उस समय यह सब क्यों हो रहा था मैं कुछ नहीं जानता पर मुझे एक ही बात याद थी कि मुझे अपनी कामाग्नि को शान्त करना है, इन्ही स्पर्शों के सहारे मेरे और आदित्य के बीच सामाजिक मर्यादा की सीमा को तोङ कर शारीरिक सम्बन्ध स्थापित हो गये। जब यह कामाग्नि शान्त हुई तो बहुत देर हो चुकी थी क्योंकि सभी मर्यादायें, सामाजिक संबंध टूट चुके थे। मुझे जब यह सब ध्यान आया तो स्वयं से बहुत ही ग्लानि हुई। मैंने अपने आपको आदित्य से अलग करते हुए, गुस्से के साथ जमीन पर बिछी हुई चटाई पर लेटने का निश्चय किया। लाईट जला कर घङी देखी तो समय रात के 2:45 हो रहे थे फिर मैंने बिस्तर पर चद्दर से मुंह ढके हुए आदित्य को गुस्से से घूरकर देखा। मैंने गुस्से में चटाई पर चद्दर बिछाई और लेट गया लेकिन मुझे नींद नहीं आई। आंखे बन्द थी लेकिन मन तरह तरह की बातें सोच रहा था। आदित्य कितना गन्दा है, कुछ गन्दे विचार आदित्य के बारे में मेरे मन में और भी आये। देखने मे कितना मासूम और आचरण से कैसा। छी-छी आज के बाद दुबारा इसके घर आना तो दूर इससे बात भी नहीं करूँगा। छी खुद तो कितना गन्दा काम किया साथ ही मुझे भी अपने साथ गन्दा बना दिया। फिर मन मे सोचा जब इसके बारे में आदित्य के घर वालों को पता चलेगा तो वो बेचारे क्या महसूस करेंगे। मैं इस बात को किसे बताऊँ। यह सब बातें सोचते-सोचते सवेरे के पाँच बज गये । मैं चुपचाप उठा आदित्य की तरफ देखा अभी भी वह पूरे शरीर को चद्दर से ढके हुए लेटा हुआ था। मैंने धीरे धीरे दरवाजा बन्द किया और अपने घर आ गया।अगले दिन मैं बेचैन सा रहा लेकिन स्वयं को सामान्य और सहज ही बनाये रखा। उस दिन रात में आदित्य हमारे घर खाना खाने नहीं आया, मम्मी ने विजय को भेजा तो पता चला कि आदित्य ने बाहर किसी के घर खाना खा लिया था। उस रात मैं विजय को भी आदित्य के घर सोने नही जाने नहीं देना चाहता था लेकिन न चाहते हुए भी मैं उसे नहीं रोक पाया। मन मे कई तरह के सवाल उठ रहे थे तरह-तरह के संदेह भी उठ रहे थे। विजय आदित्य के बारे में यह सब जानता है या नहीं, अगर जानता है तो क्या दोनो के बीच समलैंगिक संबंध तो नहीं है और अगर है तो, हे भगवान कितना बङा गलत काम हो रहा है। कल को अगर किसी को इस सब के बारे मे पता लगा तो हमारे परिवार की क्या इज्जत रह जाएगी समाज में। आदि- आदि बातें मुझे परेशान करती रहीं। अगले दिन रात में विजय जबरदस्ती आदित्य को रात का खाना खाने के लिए बुला कर लाया। हम सभी जमींन पर बैठ कर खाना खाते थे, जब सभी लोग बैठे, मैं हाथ पैर धो रहा था। लौट कर आया तो देखा आदित्य पंक्ति में ठीक मेरे सामने की तरफ मुंह कर के बैठा है हालांकि हमारे बीच काफी दूरी थी फिर भी नजरें एक दूसरे को सीधे-सीधे देख सकती थी। मैंने आदित्य की तरफ देखा तो उसका सिर और आँखें दोनो ही जमीन की तरफ थे। मैंने खाना खाते हुए विजय से पूछा पेपर कब से है? वि्जय ने कहा १६ मई से, मैंने फिर पूछा पढाई-वढाई ठीक से कर रहा है य फेल होने का इरादा है। घूमना बन्द करो और पढाई करो। खाना खाते-खाते विजय ने कुछ ऐसी बात कही कि हम सभी हँस पङे लेकिन आदित्य नहीं हँसा मुझे लगा वह मुस्कुराया जरुर था लेकिन क्योंकि उसका सिर नीचे की तरफ था इसलिए मैं नहीं जानता कि वह मुस्कुराया या नहीं।
उस रात के हादसे के बाद आदित्य और जय के सम्बन्ध कैसे होंगे? क्या जय अपनी ग्लानि की भावना पर क़ाबू पाएंगे?पढ़िए“आदित्य”कीअगलीकड़ी,अगलेअंकमें।
- शृंखलाबद्ध कहानी ‘आदित्य’ भाग ५/५ - May 7, 2014
- शृंखलाबद्ध कहानी ‘आदित्य’ भाग ४/५ - April 1, 2014
- शृंखलाबद्ध कहानी ‘आदित्य’ भाग ३ - March 1, 2014