'सन्नाटा' - एक कविता; छाया: कार्तिक शर्मा

Hindi

सन्नाटा – एक कविता

By Vrushankh Raghatate

December 04, 2015

सन्नाटा

दिल के तख़्त पर महफूज़ रखा था

मेरी हर नन्हीं सी ख्वाहिश को

मेरे छोटे से इन हाथों में

दिया तुमने जग यह सारा

हर क़दम चला तेरे साए में

तेरे आँचल में मैं सोया भी

जाने कैसे छूटी वह डोर

कैसे तुझको मैं हारा

कोशिश अब रोज़ यह है मेरी

तेरे जग में मैं भी रंग भरूँ

जितनीं यादें हैं दी तुम्हें,

उनसे ज्यादा मुसकान भरूँ

शायद कुछ ख्व़ाब न हों पूरे

बस माफ़ मुझे यूँ कर देना

मेरे वजूद के सन्नाटे को

हँसी से तुम बस भर देना

– वृषांख रघटाटे