सन्नाटा
दिल के तख़्त पर महफूज़ रखा था
मेरी हर नन्हीं सी ख्वाहिश को
मेरे छोटे से इन हाथों में
दिया तुमने जग यह सारा
हर क़दम चला तेरे साए में
तेरे आँचल में मैं सोया भी
जाने कैसे छूटी वह डोर
कैसे तुझको मैं हारा
कोशिश अब रोज़ यह है मेरी
तेरे जग में मैं भी रंग भरूँ
जितनीं यादें हैं दी तुम्हें,
उनसे ज्यादा मुसकान भरूँ
शायद कुछ ख्व़ाब न हों पूरे
बस माफ़ मुझे यूँ कर देना
मेरे वजूद के सन्नाटे को
हँसी से तुम बस भर देना
– वृषांख रघटाटे