खामोश रहा हूँ मैं
चुप चाप मैंने जिया है
गुमनाम रह कर मैंने
आँसुओं को पिया है।
सतरंगी रंगों से दूर ही रहा हूँ मैं
की डर के साये में मैंने यूँ जिया है
पर अब ये ज़माना मुझे बेरंग न कर सकेगा
की अब ये रंगों का कारवाँ आजीवन चलेगा।
क्यूँकि और झूठ अब मैं इस दुनिया से न बोल सकूँगा
जो दूसरों से छुप भी गया तो खुदसे कैसे छुपूँगा
जब कोई गलती की नहीं मैंने तो छुपना छुपाना कैसा?
बस प्यार किया है मैंने ‘नार्मल’ लोगों जैसा।
मेरे प्यार को तुम नफरत से यूँ न देखो
जो देखोगे प्यार से तुम
तो ये प्यार दिखेगा तुम्हारे ही प्यार जैसा।।
यह कविता Rhyme and Reason प्रतियोगिता के अंतर्गत चुनी जाने वाली 13 कविताओं में से है
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