कहते हैं हम सबभारत स्वतंत्र हैपर क्या यह सत्य है ?
मुझे नहीं लगताभेदभावी स्वभाव के हैं सबसिर्फ भेदभाव और कुछ नहीं…ना जाने क्यों !
कहते हैं हम15 अगस्त को बहुत साल हो गए हैंअब तो सब आज़ाद हैंपर नहींआजादी अभी भी कैद है घुटनों मेंक्योंकि घुटनों में दिमाग हैकिसका ?
लगभग सबका..
मौन, चुप्पी और कनखियांऔर क्या !कुछ नहीं, भारत के लोग हैंतथाकथित शिक्षित !तथाकथित !!!कुछ नहीं, भेदभाव अभी भी जारी है
कभी मेरी, तो कभी तुम्हारी बारी हैकहें किससे ?किसी से नहींसब चुप हैं,मुंह पर अंगुलियां औरगालों पर पड़ते हाथ हैं उर्फ़ चांटे !कभी बाप का हाथतो कभी मां भी सवार
मेट्रो में बैठा मैंबगल में प्रेरणाशांत, हंसमुख, स्वतंत्र औरहौसला देने वालीखुद भले ही टूट जाएपर दूसरों को टूटने नहीं देगी
मेट्रो में 100 में से 99 घूर रहे हैंजैसे भारत से चांद पर चंद्रयान गया हैऔर वहां से एक एलियन आकरयहां मेट्रो में बैठा है
स्टेशनों, सीटों और सबसे बड़ी बातअपने ऊपर किसी का ध्यान नहींलेकिन सबका ध्यान बराबरएक जगह अड़ा हुआ है
सब घूर रहे हैं अब भीक्यों, क्योंकिमेरे बगल में एक ट्रांस जो बैठी है।