बचपन में देखा था पहली बार। मानो पुरुष ने किया नारी सा श्रृंगार।। पूछा मैंने माँ से ,यह कौन खड़े हैं द्वारे? माँ बोली पूर्व जन्म के पापों से, किन्नर है यह सारे। हर जन्म पे जो बधाई बजाते, क्यों माँ हम उन्हें नहीं अपनाते?
जब ईश्वर पूर्ण सदा कहलाए। तो उसकी रचना अधूरी क्यों मानी जाए? सुन समाज कहता डंके की चोट पर, हाँ सत्य सत्य है मेरा हर एक अक्षर।। यदि पूर्ण है तेरा जगदीश्वर। तो पूर्ण हैं यह अर्धनारीश्वर।।
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