कहानी ‘पॉल एक गाथा की पिछली कड़ियाँ यहाँ पढ़ें:
प्रस्तुत है भाग ४:
उसने बताया कि पॉल सेकंड इयर का स्टूडेंट था। कॉलेज में ही स्थित होस्टल में रहता था। वह बहुत टैलेंटेड लड़का है, इधर फोरेन लैंग्वेज का स्टूडेंट है। बहुत ही अच्छी हिंदी बोलता लिखता है। म्यूजिक में भी वह वोईलेन का मास्टर है। वह समलैंगिक है। उसके कोलज के ही दूसरे लड़के – जिसका नाम राकेश था – के साथ शाररिक संबंध भी थे। पर राकेश की एक गर्ल फ्रेंड भी थी उसे राकेश पॉल के संबंधों पर संदेह था। अतः उसकी गर्ल फ्रेंड ने राकेश के कमरे में एक ख़ुफ़िया केमरा लगा कर, राकेश पॉल के अन्तरंग शारीरक सबंधों का एक टेप बना लिया। उसे प्रेयर हॉल में सभी सहपाठियों के सामने दिखा दिया। उस हॉल में राकेश भी था। वह उस वक्त तो वहाँ से निकल गया। बाद में उसने अपने कमरे में फांसी लगा ली।
जैसे ही पॉल को इसी बात की खबर पड़ी, वह भागा-भागा आया। राकेश की लाश से लिपट के बहुत रोया। उसके बाद वह डिप्रेसन का शिकार हो गया। उसने बात करना बंद कर दिया। वह बहुत दिनों तक अकेला अपने रूम में बंद रहता था। लेक्चर के लिए भी नहीं आता। एक दिन उसने स्विमिंग पूल में डूबकर खुदखुशी करने की कोशिश की। लेकिन लड़कों ने उसे बचा लिया। पर दुसरे दिन दोबारा उसने अपने रूम में फाँसी लगाने की कोशिश की। शुक्र है, उस समय पुनःश्च उसे लड़कों ने बचा लिया। उसके बाद वह मानसिक रूप से विक्षिप्त-सा हो गया। बार-बार आत्महत्या करने की कोशिश करने लगा। इसलिए कॉलेज प्रसाशन ने पुलिस को बुलाकर उसे पुलिस को सौंप दिया।
मैंने उसे पूछा, लेकिन उसे देखने के लिए न तो उसके कोई दोस्त न ही उसके परिवार का सदस्य अभी तक हॉस्पिटल आया है। उसने कहा कोलज प्रसाशन ने इस बारे में किसी भी तरह की बात करने अथवा पॉल से किसी से भी मिलने पर पाबन्दी लगा रखी है। उन्हें लगता है इससे महाविद्यालय की बहुत बदनामी होगी। उसके परिवार वालो को शायद उसकी हालत के बारे में पता ही नहीं हो। आखिर वे तो फ़्रांस में रहते हैं। मैंने उसे रिक्वेस्ट की कि अगर वह उसके परिवार वालो का कांटेक्ट नम्बर निकलवा सके तो वह मुझे दे दे। मैंने उसे बतया की पॉल की हालत बहुत ख़राब है। पुलिस वालो ने उसे बहुत मारा भी है। वह गहरे डिप्रेशन में है। बात भी नहीं कर पता है। उसने प्रॉमिस किया कि वह पॉल की फॅमिली का नंबर निकलवाने की जरुर कोशिश करेगा। मिलते ही मुझे देगा। मैंने उसे अपना मोबाइल नं दिया। कहा कि वह कोशिश करे; जितनी जल्दी हो सके मुझे पॉल के परिवारवालों से संपर्क करवाएँ।
आज पॉल से मिले तीसरा दिन था। आज वह थोडा बेहतर लग रहा था। आज उसने उठने की कोशिश भी की थी। मैंने उसे सहारा देते हुए खड़ा किया। उसके पैर काँप रहे थे। लेकिन उसने जैसे-तैसे अपना पहला कदम उठाया। कदम-कदम बढ़ाते हुए थोडा सा चला। मैंने उसे वापिस बेड पर ला कर बिठा दिया। न जाने क्यों आज मुझे बहुत अच्छा लगा कि आज कम से कम उसने कुछ कदम उठाने की कोशिश तो की। वह अभी भी सो रहा था। मैं अपनी टेबल पर बेठा उसे ही देख रहा था। मै भी एक समलैंगिक हूँ। मैं पॉल की हालत समझ सकता था। इस तरह से अपने पार्टनर से बिछड़ जाना – जिसे आप दिलो जान से प्यार करते हो – उससे इस तरह हमेशा के लिए बिछड़ जाना – किसी को भी इस दयनीय अवथा तक उतार सकता था। लेकिन इसमें पॉल का क्या कसूर था? प्यार किसी से सोचकर तो नहीं होता। आज वह जिस हालत में था उसमें उसका तो कोई कसूर नहीं था। ११ बजने को थे। डॉक्टर के राउंड का टाइम हो गया था। मैंने वार्ड का एक राउंड लिया। सब कुछ व्यस्थित कर ही रहा था तभी देखा तो दो पुलिस वाले जिसमे एक इंस्पेक्टर था, मेरे पास आये।
पुलिसवालों ने पूछा, “डॉक्टर खुराना कब आएंगे?” मैंने कहा, “आनेवाले होंगे। कहिये क्या काम था?” उसने कहा, “इसके मामले (उसने पॉल की तरफ ऊँगली करते हुए कहा) में डॉक्टर साहब ने बुलया है।“ मैंने उनसे कहा, “आप थोडा इंतजार कीजिये। डॉक्टर आने वाले होंगे।” तभी उसने अपने साथ आये सहकर्मी पुलिसवाले से कहा, “साले इन जैसो के कारण क्या झेलना पड़ता है!’। न जाने क्यों मुझे यह सुनकर गुस्सा आ गया। मैंने गुस्से से इंस्पेक्टर से पूछा, “क्या मतलब इन जैसो से? आप लोग क्या करते हो। बिचारा जो बीमार है बात नहीं कर सकता उसे आप इस तरह मारते हो कि ६ दिनों बाद भी उसके शरीर पर निशान हैं। वह कोई चोर या खूनी तो नहीं है जो आप लोगों ने उसे इतनी बेदर्दी से मारा है। आप पुलिसवाले अपने आप को समझते क्या हो?
अभी मैं गुस्से में इंस्पेक्टर को बोले जा रहा था। तभी डॉक्टर भी आ गए। उन्होंने आते ही इंस्पेक्टर की क्लास लेनी चालू कर दी। उन्होंने इंस्पेक्टर को झाड़ते हुए कहा कि ऐसा व्यवहार तो कोई जानवरों के साथ भी नहीं करता है। इस्पेक्टर कुछ देर तक तो सुनता रहा। फिर उसने डॉक्टर साहब को पलटकर जवाब दिया: “हम पुलिस वाले ऐसे ही काम करते है।“ यह सुन कर डॉक्टर सहाब को गुस्सा आ गया। उन्होंने मुझसे कहा, “पॉल के शरीर पर पड़े निशानों के फोटो लेकर एक रिपोर्ट बना दो। मैं देखता हूँ इन जैसे पुलिसवालो को। ये अपने आप को क्या समझते हैं?”
पढ़िए कहानी ‘पॉल के गाथा’ की पाँचवी किश्त, गेलेक्सी हिंदी में ७ मई को।
- “पॉल – एक गाथा” – श्रृंखलाबद्ध कहानी (भाग ८/८) - May 28, 2017
- “पॉल – एक गाथा” – श्रृंखलाबद्ध कहानी (भाग ७/८) - May 21, 2017
- “पॉल – एक गाथा” – श्रृंखलाबद्ध कहानी (भाग ६/८) - May 14, 2017