पर्दाफ़ाश
जाने क्या दफ़न है
खिले हुए चमन में
कसकर बंद कफ़न है
सच्चाई के दमन में
पर्दाफाश करने के लिए
क़फ़न उखाड़ना पड़ता है
चमन उजाड़ना पड़ता है।
नफरत पर चढ़ाई मुस्कान
या वाकई खिलखिलाहट है?
तन मिठाई की दुकान
या ज़हरीली मिलावट है?
पर्दाफाश करने के लिए
ज़ख्म सीना पड़ता है
ज़हर पीना पड़ता है।
बातें जो करती गुमराह
अनकही, अनसुनी-सी
मन में दबी निराली चाह
रेशम से बुनी-सी
पर्दाफाश करने के लिए
राह चुननी पड़ती है
बात सुननी पड़ती है।
आँखों की अदा दिलकश
देती है सदा
दिल में हो रही कश्मकश
औरों से जुदा
पर्दाफाश करने के लिए
आँखें खोलनी पड़ती हैं
बातें बोलनी पड़ती हैं।
[यह कविता पीयूष और सचिन के रचनात्मक सहयोग का नतीजा है। पीयूष की कविता को सचिन ने रूपांतरित किया। पीयूष शर्मा आई.आई.टी. मुम्बई में एम.एस.सी. (रसायन शास्त्र) के अंतिम वर्ष के छात्र हैं।]