‘जीने दो आजाद’ (कविता)
ढाला गया हूँ उसी सेजिस मिट्टी से वजूद है तुम्हारालाल खून हमाराऔर लाल ही तुम्हारा
चाहता हूँ प्यार पानातुम भी तो चाहते होहै जीने की ख्वाहिशदोनों में यकसाँफिर क्यों अंधेरा ?फिर क्यों अंधेरा ? सदियां गुजर चुकी हैं तारीकियों में रहकर अब न पंख मेरे काटो... Read More...















