Hindi

LGBT pride, gay pride, delhi, india

कविता : लड़का हूँ और लड़के से प्यार करता हूँ

ये कहानी नहीं एक हकीकत हैं ये कहानी नहीं एक हकीकत हैं कागज़ पेन से नहीं, दिल से बयां करता हूँ।लड़का हूँ और लड़के से प्यार करता हूँ।। समलैंगिक हूँ कोई अभिशाप नहींसमलैंगिक हूँ कोई अभिशाप नहींअपनी पहचान पर अभिमान करता हूँ।लड़का हूँ और लड़के से प्यार कर... Read More...

जेंडर के ढाँचे से जूझता मेरा बचपन

मैं बचपन से ही बहुत ही नटखट, चुलबुला और थोड़ा अलग बच्चा था| मेरी माँ फिल्मों और गानों की बहुत शौक़ीन थी| माँ के दुपट्टे की साड़ी पहनना, नाचना-गाना, मेरे बचपन के खेल थे| कभी मेरे दादा तो कभी कोई पड़ोस की दीदी इस खेल में मेरा पूरा साथ देतीं, जो भी फिल... Read More...

लघुकथा : यादें

यादें अजीब चीज़ है| हम पाँच  साल तक साथ थे- हर वीकेंड पर जब मेरे पास स्थान होता था और मेरे रूम पार्टनर बाहर गए होते थे; और उसकी पत्नी यहाँ वहां होती थी| उन लम्बे सालों में वो कुछ वीकेंड्स की हर एक चीज़ याद है, सिवाय उसके चेहरे के; मुझे उसके मुँ... Read More...

कविता : सुलगते जिस्मों को हवा ना दो

सुलगते जिस्मों को हवा ना दो खाख़ हो जायेगीं कोशिशें न वो हमें देखते हैं, न हम उन्हें नज़र वो अपनी थामे हैं, हम इन्हें कुछ कहने की चाहत न उन्हें हैं, न हमें वो बहाने ढूढ़तें हैं नज़दीक रहने के हम दूर जाने से कतराते हैं नज़र बचाकर जो दे... Read More...

#BreakTheSilence : टीवी देखने के लिए अक्सर ये करना पड़ता

जी!! बचपन की बात है जब मैं क्लास 4th या 5th में था, तो मै अपने नाना के साथ रहता था| नाना एक टीचर थे और रूम लेकर रहते थे| वँहा हमारे पास टीवी नही थी, तो अक्सर मै बगल वाले पडोसी के यंहा टीवी में शक्तिमान देखने जाता था| वँहा जिसके घर जाते थे तो उसका लड़... Read More...
'संगिनी' - एक कहानी (भाग ५/५) | छाया: भावेश कतीरा | सौजन्य: क्यूग्राफ़ी |

‘संगिनी’ (श्रृंखलाबद्ध कहानी भाग ५/५)

कहानी की पिछली कड़ियाँ यहाँ पढ़ें: भाग १ | भाग २ | भाग ३ | भाग ४ | प्रस्तुत है कथा का पाँचवा और आखरी भाग: मनीषा को कौन सा इस बात का जवाब पता था लेकिन मनीषा की वकालत करने का वीणा डॉक्टर सीमा ने उठा रखा था। डॉक्टर सीमा ने श्याम और मनीषा को शांत कर बैठन... Read More...
“बुज़ुर्ग हैं, क्षीण नहीं” | छाया: राज पाण्डेय | सौजन्य: क्यूग्राफी |

“बुज़ुर्ग हैं, क्षीण नहीं” – “सीनेजर्स” वयस्क सम/उभय/अ लैंगिक पुरुषों का प्रेरणादायक संगठन

मुंबई के बांद्रा इलाके में थडोमल शहाणी अभियन्त्रिक महाविद्यालय में २१ जनवरी २०१८ को शाम ४ से ७ बजे तक एक अनोखा कार्यक्रम हुआ। “सीनेजर्स” (अंग्रेजी शब्द ‘टीनेजर्स’ से उपांतरित, ‘ज़माना देखे हुए लोग’; ईमेल: mumbai.seenagers@gmail.com, फेसबुक) संगठन २०१७... Read More...
Pottery making

‘संगिनी’ (श्रृंखलाबद्ध कहानी भाग ४/५)

कहानी की पिछली कड़ियाँ यहाँ पढ़ें: भाग १ | भाग २ | भाग ३ | डॉक्टर सीमा की बात सुन श्याम ने हैरत से मनीषा की तरफ देखा। उसे इस बात पर आश्चर्य हुआ। मनीषा ने शर्म से नजरें झुका लीं। श्याम ने मुडकर डॉक्टर सीमा की तरफ देखा और बैचेन हो बोला, ‘‘तो डॉक्टर सीमास... Read More...
'संगिनी' - एक कहानी (भाग ३/५) | छाया: श्रेयांस जाधव | सौजन्य: क्यूग्राफ़ी |

‘संगिनी’ (श्रृंखलाबद्ध कहानी भाग ३/५)

धर्मेन्द्र राजमंगल की कहानी ‘संगिनी’के पिछले २ भाग यहाँ पढ़ें: | भाग १ | भाग २ | प्रस्तुत है भाग ३: श्याम इस इशारे को समझ गया था। उसने बेड से उठते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं, मैं यहाँ सोफे पर सो जाऊँगा। तुम बेड पर आराम से सो जाओ।” इतना कह श्याम सोफे पर... Read More...
'संगिनी' - एक कहानी (भाग १/५) | छाया: पीनल देसाई| सौजन्य: क्यूग्राफ़ी |

‘संगिनी’ (श्रृंखलाबद्ध कहानी भाग २/५)

कहानी की पहली कड़ी यहाँ पढ़ें। सोचती थी कि भगवान ने उसका मन ऐसा क्यों बनाया जो लड़की होकर भी एक लड़की को चाहने का मन करता है। क्यों ऐसी भावनायें उसके अन्दर भर दीं जिससे उसका मन प्रकृति के खिलाफ हो उठा। सवाल पर सवाल और दुखी मन। मन की मरती इच्छा और समाज क... Read More...
'संगिनी' - एक कहानी (भाग १/५) | छाया: अविजित चक्रवर्ती | सौजन्य: क्यूग्राफ़ी |

‘संगिनी’ (श्रृंखलाबद्ध कहानी भाग १/५)

जब से मनीषा की शादी तय हुई तभी से उसकी बेचैनी सातवें आसमान पर थी। उसने सपने में भी शादी के बारे में नहीं सोचा था। वो तो शादी करना ही नहीं चाहती थी। उसने सीधे अपनी माँ से जाकर बात करने का मन बनाया। शर्म तो आती थी लेकिन शर्म करते रहने से उसकी जिंदगी खत... Read More...