वह दोपहर का सूर्यप्रकाश, पल-छिन में होगा सागर में विलीन। —————————————–
पल दो पल का अस्तित्व, बेहतर है करना सच का सामना। —————————————–
इंतज़ार ही नसीब में हो अगर, तो क्यों न ट्रेन और पटरी दोनों से दोस्ती बनाई जाए? —————————————– अन्य तस्वीरें और छायाचित्रकार के मनोगत देखिए और पढ़िए, फोटो एसे की दूसरी कड़ी में अगले अंक में। नफ़ीस अहमद ग़ाज़ी की तस्वीरें आप इस फेसबुक पृष्ठ पर देख सकते हैं।