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कुदरती शनाख्त – एक तस्वीरी मज़मून (भाग ३)

By Nafis Ahmed Gazi

August 31, 2014

पहराव, पोशाख, और उसकी ताक़त। देखो मेरा रूप, निहारो अपनी हस्ती। हम चुंबक के ध्रुव विपरीत हैं, और उनका आपसी खिंचाव निर्विवाद। मुस्कुराओ, और निहारो यह छबि।

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पानी और आकाश दोनों में अपना निशाना ढूँढ रही रौशनी की बंदूकें। ध्यान आकर्षित वाली अनगिनत वस्तुओं में कभी-कभार कुछ ख़ास। चमक की मंडी में कांच ही कांच। और काँच के बीच, शायद जड़े कुछ हीरे?

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थम गया है समय। नहीं चल रही हवा भी, और पंखे ने भी अपनी बाज़ुओं को दे दी है सिमटने की इजाज़त। आखिर किसका कर रहे हैं हम इंतज़ार?

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अन्य तस्वीरें और छायाचित्रकार के मनोगत देखिए और पढ़िए, फोटो एसे की दूसरी कड़ी में अगले अंक में।नफ़ीस अहमद ग़ाज़ी की तस्वीरें आपइस फेसबुक पृष्ठपर देख सकते हैं।