बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल की फोटो सोशल मिडिया पर प्रसारित हो रही है, जिसके कैप्शन में लोग उन्हें गे कपल के तौर पर बता रहे हैं। फोटो के नीचे आने वाले कमेंट में अंग्रेजी में ‘लोल’ ‘एल्माओ’ ‘रोफ्ल’ लिखा जा रहा है और ज्यादातर ‘स्माईली’ वाला इमोजी बनाया जा रहा है।
मेरा प्रश्न यह है कि आखिर हम मजाक जैसा इसमे क्या पा रहे हैं? प्रधानमंत्री या गे कपल? जाहिर है गे कपल होना। और सबसे बुरी बात तो यह है कि इन पोस्ट को फेमिनिस्ट क्वीयर एक्टिविस्ट और क्वीयर एक्टिविजम की दलीले देने वाली मैगजीन तक ने पोस्ट किया? प्रश्न यह भी है कि यदि इन्हीं फोटो में कोई महिला होती तो कुछ लोगों का खून खौलता। वे कहते कि महिलाओ पर जोक बनाना मिसोजिनी है, जी तो गे पर जोक बनना नही है? ‘ओह, वो हमारे प्रधानमंत्री हैं, गे कैसे हो सकते हैं?’ अच्छा उनकी कोई प्राइवेसी नहीं हो सकती? वो फेमिनाइन नहीं हो सकते? वो फेमिनिज्म नहीं जानते तो मजाक का केंद्र हो सकते हैं, भले उसके लिए हमें अपने ही एक्टिविजम का मजाक बनाना पड़े।
दरसल गलती आपकी नहीं, आपके दिमागो मे बैठे सिसजेंडर हैट्रोपैट्रिआरकी की है, हम अभीभी दो पुरुषों या दो महिलाओ के निजी संबंधों, अंतरंग रिश्तों, का सम्मान करना नहीं सीख पा रहे हैं । जो ये कहना चाह रहे कि ये एक प्रकार का रिक्लेमिंग रिप्रेश्टेसन है और आप यह तर्क दे कि इससे हमने प्रधानमंत्री के सिंगल होने के औरा (जो कि अक्सर भुनाया जाता है) उसके लिए पोस्ट किया जाना बहुत दूरगामी रूप से सही नही साबित किया जा सका क्योकि एक बड़ा जनसमूह अभी गे संबंधो को हेय व मजाक समझता है और ये ही स्टिगमेटाइज करना हैं।
ये आप जिस करन जौहर की फिल्मो मे गे, ट्रांस, क्रासडेसर के मिसरिप्रेशनटेशन का विरोध करते है ये ठीक वही है। क्या हो यदि कभी हमारा प्रधानमंत्री गे हो, क्या हम उसके लिए तैयार हैं? नहीं! क्या हम जिन निजी संबंधो के सम्मान की बात करते हैं, क्या हमने न्याय किया ? नहीं।
ट्रांस गे क्रासडेसर कब तक हमारे लिए मजाक रहेंगे नही पता? पर हरकत बहुत हल्की थी। आप कह सकते है कि एक हेट्रोसेक्सुअल जेंडर फ्लूयेड फिमेल के तौर पर मै दो समलिंगी पुरुषो के संबंधो को नही समझ सकती, जी बेशक नही समझ सकती; पर मै विरोध को समझती हूँ और उसको दर्ज करना भी।
- ‘गे संबंधो के लिए असहजता और मजाक क्यों?’ - April 20, 2017