वह थी हकीक़त या ख़्वाब
जो देखा था कल रात को
सुबह उठकर न भूली
मैं तो उस बीती बात को
सदियों से जैसे बिछड़े
वैसे हम दोनों मिले थे
और गुज़ारे चाँद लम्हें जैसे
वह आखरी मुलाक़ात हो
तड्पी मेरी रूह, मेरा जिस्म
बस तेरे अहसास को
तरसती है जैसे सूखी ज़मीं
पहली पहली बरसात को
तेरे साँसों की तेज़ रफ़्तार
जोश तेरी सख्त बाहों का
भूलने नहीं देता मुझे हाय!
कल के तेरे उस साथ को
(कविता संग्रह ‘अहसास’ में प्रथम प्रकाशित)
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