बहुत दिनों बाद, नहीं शायद सालों बाद, करीब पांच साल बाद आज विजय को देखा। गोद में एक बेहद प्यारी सी गुड़िया को लिए इंदौर के रेल्वे स्टेशन में किसी ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहे थे।
मैं उन्हें नहीं भूल सकता, आखिर मैंने अपनी सबसे अच्छी दोस्त उन्हें दी थी। भागता सा उनके करीब पहुँचा, विजय मुझे देखते ही खड़े होकर मेरे पैर छूने झुका, मैंने तुरन्त ही उसे गले लगा लिया। उसकी प्यारी सी गुड़िया को गोद में लेकर उसके ललाट पर चूमा, आँखे भर आईं उसे देखकर।
‘यहाँ कैसे विजय?’
‘अरे भाईसाहब उज्जैन आए थे दर्शन के लिए… अभी शाम की ट्रेन है, वापस नागपुर। आप कैसे हैं? मैं ना जाने कब से आपसे मिलने का प्रयत्न कर रहा हूँ, मेरा मोबाइल गुम हो गया और आपका नंबर भी, आपकी अमानत है मेरे पास बहुत सम्भाल कर रखी है, देखिए भोलेनाथ की कृपा से आप मिल ही गए।’
सुनकर चेहरे पर मुस्कान आ गई, वो भी हर बात में बस शिव शिव करती थी।
मीरा कहाँ है??? ये सवाल मेरे होंठो पर दबकर रह गया, अचानक एक सुन्दर सी लड़की पास आई, और विजय ने परिचय कराया, ‘अनु, ये श्री भाईसाहब,’ उसने हाथ जोड़े तो विजय ने कहा पैर छुओ, सर पर आँचल रखकर वो पैर छूने को झुकी। मैंने रोक दिया, होंठ बुदबुदाये, ‘खुश रहो ।’
‘तुम्हें याद है अनु मैं श्री भाईसाहब का ज़िक्र करता था?’
‘जी।’
‘यहि हैं वे…’
मेरा तो मानो खून जम गया था.. मुहँ से बोल नहीं निकल रहे थे।
‘भाईसाहब कहाँ खो गए आप?’
मैंने अचकचा कर कहा कहीं नहीं।
विजय ने घड़ी देखी शायद उनकी ट्रेन का समय हो रहा था, उन्होंने बैग खोला एक बड़ा सा लिफाफा निकाला और मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘जब भी इन्दौर आता हूँ इसे साथ ही रखता हूँ ताकि आप कभी मिलो और ये आप को दे सकूँ।’
इतने में एनाउंसमेंट हुई, शायद उन्हीं की ट्रेन का था। मैंने लिफाफा हाथ में लिया, दिल में तुफान सा लिए उनकी बातें सुनता रहा, इतने में ट्रेन आ गई, दोनों पैर छूने झुके, उन्हें आशीर्वाद दिया, विजय को गले लगाया, एक बार फिर गुड़िया को प्यार किया, जेब से बटुआ निकाला, पता नहीं कितने नोट हाथ में आए सारे गुड़िया को पकड़ाए।
विजय ने हाथ पकड़ लिए, ‘अरे भाईसाहब ये क्या कर रहे हैं?’
मैंने कहा, ‘ये हम दोनों की बीच की बात है, है न बिटिया रानी?’
बरबस जोर से उसे भींच लिया, आँखे नम हो गईं। विजय ने अपना कार्ड देते हुए कहा, ‘भाई साहब फोन ज़रूर करियेगा’, दोनों ने नमस्ते की और अपनी बोगी में बैठ गए।
ट्रेन ने हॉर्न दिया, विजय ने हाथ हिला कर बाय किया, ट्रेन के ओझल होते तक मैं वहीं खड़ा रहा। ऐसा लग रहा था जैसे पैरों में जान नहीं, कुछ देर बैठा रहा, काफी वक़्त बाद याद आया कि अब चलना चाहिए और यन्त्रचलित सा बाहर आया अपनी कार में बैठा और घर आ गया।
मुझे याद नहीं कि मैं स्टेशन क्यों गया था। ताला खोलकर बेड पर लगभग गिर सा गया, लेटे लेटे लिफाफा निकाला, कांपते हाथों से उस काग़ज़ को खोला… इस लिखावट को मैं कभी नहीं भूल सकता था।
आदरणीय श्री सादर चरण स्पर्श…शायद आप हमें कभी माफ़ नहीं करेंगे.. क्योँ की आपकी बात और आपके आदेश का पालन हम नहीं कर सके। वैसे भी हम ने आपकी बहुत सी बातेँ नहीं मानी थी, पर वो उतनी ज़रूरी नहीं रहीं.. इसलिए आपने भी उतना ध्यान नहीं दिया। पर आपकी ये बात तो मानना हमारी जिद बन चुका था क्योंकि आपकी बातेँ हमारे दिल पर चोट कर रहीं थीं। हो सकता है… हो सकता नहीं बल्कि यकीनन यही सही है जो आपने कहा एक सच्चा दोस्त यहि कहता है और यही चाहता भी है।
पर हम क्या करते श्री? हमने तो आपको अपना भगवान मान लिया था और भगवान कभी बदले नहीं जाते न… काश ये बात हम आपको समझा पाते ! आपके लिए हमारी चाहत सिर्फ चाहत नहीं बल्कि पूजा थी… और हमारे भगवान से तो हमें वो सब मिल चुका था जो एक भक्त को चाहिए था। तो भला हम कैसे अपना भगवान बदल लेते? आपने हमें ज़िन्दगी दी थी और हम हमारी ज़िन्दगी आपके नाम कर चुके थे.. आप हमारी ज़िन्दगी में खुशियां चाहते थे।
हमे आज भी वो शब्द याद हैं… एक बेहतरीन दोस्त की सलाह थी। वैसे तो आप बहुत बार वैसी बातें कर चुके थे पर उस दिन की बातेँ शायद आपने दिल से कहीं थीं। या ये चाहते थे कि इस तरह कहेंगे तो शायद हम मान लेंगे… याद तो होगा आपको? अच्छी हँसी मज़ाक की बातें हो रहीं थीं हम दोनों के बीच और फिर आपका गम्भीर लहजा- ‘मीरा एक अच्छे दोस्त की तरह मैं भी चाहता हूँ कि तुम अपने जीवन में अब आगे बढ़ो.. मैं आखिर क्या दे सकता हूँ तुम्हें? तुम जानती हो मेरी मजबूरी.. इस तरह तो ज़िन्दगी नहीं गुजरती… मुझसे जुड़कर तुम्हें बस दर्द मिलेगा।’
आप जब भी ऐसी बातें करते हम चुप रहते थे.. क्योँ की इस बारे में हम कुछ कहना ही नहीं चाहते थे… फिर आप आगे बढ़े,‘मीरा एक बार ठंडे दिमाग से सोचकर देखो मेरी बातों को.. तुम्हें एक साथी की ज़रुरत है जो हर पल तुम्हारे साथ रहे। इस तरह तो हम बस टाइमपास ही कर रहे हैं…’
उफ्फ ! कितनी सहजता से आपने इस रूहानी रिश्ते को टाइमपास कह दिया था। आप और आगे बढ़े, ‘तुम चाहो तो मैं तुम्हारे लिए कोई साथी देखूँ?’
एक दिन में ये दो झटके थे हमारे लिए… हम चुप रहे… आपकी भलमनसाहत हमे दर्द दे रही थी… अब हमारे सामने दो रास्ते थे।
दुख और कुछ गुस्से के मिले जुले रूप में हमने आपको कह दिया कि तलाश करिए कोई मिले तो… आप खुश थे… क्योँ थे ये हम नहीं समझ सके.. युद्ध स्तर पर आपने तलाश जारी की और विजय आपको हमारे लिए सही लगे.. आपकी पसन्द पर मीन-मेख निकालने का प्रश्न ही नहीं था.. आप चाहते थे कि आपके सामने हम रिश्ते में बंधे, पर कुछ बातों का वास्ता देकर हमने आपसे परमीशन ले ली और विजय के साथ उनके शहर नागपुर आ गए। हम आपसे दूर हुए थे बस शरीर से, हमारे प्राण आपके पास छोड़ आए थे।
अब हमे हमारी सच्चाई विजय को बतानी थी, और हमने उन्हें बता दिया जो भी हम आपके लिए महसूस करते थे। आप हमारे लिए क्या हैं ये उन्हें समझाने में हमे ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी, उनसे शादी करके उन्हें धोखा देना हमे कतई मंज़ूर नहीं था।
उन्होंने कहा कि आपको बता दें कि हम शादी नहीं कर रहे हैं। हमने कहा नहीं, उनकी बातों को मानकर हमने उनका मान रखा है, वैसे भी हम उनकी ज़िन्दगी से निकल चुके हैं… अब आप कोई अच्छी सी लड़की देखकर अपना घर बसा सकते हैं। जब तक आपका घर नहीं बस जाता हम इसी शहर में रहेंगे। और हमने वहीं एक स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली। एक साल के अंदर विजय को एक अच्छी लड़की मिल गई, उन्होंने हम से मिलवाया – अनु नाम है। बड़ी प्यारी लड़की है.. आपसे संपर्क के सारे रास्ते हमने बंद कर लिए और इत्तफाक से विजय के पास से भी आपका नंबर गुम हो गया। अब हम सारे बंधनों से मुक्त हो गए थे।
आपके नाम ये खत लिखा.. क्योँ लिखा नहीं जानते.. विजय से कहा पता नहीं आप कभी मिलो भी के नहीं पर यदि मिलो तो हमारा ये खत आपको दे दें। विजय आपकी तलाश थी श्री तो जाहिर है खूबियां उनमे भी थीं, और हम जानते थे ये खत वो आप तक कभी न कभी पहुँचाएँगे ज़रूर। पर कब ये नहीं पता।
श्री आप अपनी जगह सही थे और हम अपनी जगह। पर हमे हमारे प्यार की परिणिति पता थी, उसके बावजूद हमने आपको चाहा और बेइंतहा चाहा, और वो हमारे लिए टाइमपास बिल्कुल नहीं था। श्री हमारे लिए आप हमारे रब जी थे और हमेशा रहेंगे, नाम से नहीं हम कर्म से भी मीरा थे.. और मीरा ही रहेंगे। हमने हमारी ज़िन्दगी आपके नाम कर दी है, हम ने हमारी राह चुन ली है… आपसे दूर और आपकी यादों के बेहद करीब। आप सभी से दूर बहुत दूर जा रहे हैं अरे ये मत सोचिए कि ज़िन्दगी त्याग रहे हैं। ऐसा तो बिल्कुल नहीं करेंगे, क्योंकि ये आपने दी ज़िन्दगी है। पर हाँ अब हम मीरा ही रहेंगे।अगला जन्म किसने देखा है? हमे तो इसी जन्म आपका होकर रहना है… और हम बस आपके होकर रहेंगे जब तक है जान। श्री हमने आपको पूजा है, टाइमपास नहीं किया है।
आपकी अपनीमीरा
मेरी आँखों से आंसुओं की धार बह निकली, शायद काफी देर से बह रही थी पर मेरा अभी ध्यान गया। जानता था कि मीरा पागल है, पर वो तो दीवानी निकली। इस तरह भी प्यार निभाया जाता है ये मीरा से जाना।
विजय से उसके बारे में पूछकर उसकी खूबसूरत सी जिंदगी में खलल डालना सही नहीं था, इसलिए उस कार्ड को फाड़कर फेंक दिया। जानता था मीरा जिद्दी है अब विजय से नहीं मिलेगी, पर दिल के किसी कोने में एक आस सी जगी है कि वो शायद एक बार मुझे मिलेगी। अब ये आस कितनी सही साबित होगी ये वक़्त बताएगा। मीरा ने कहा था एक बार की अधूरापन भी कभी-कभी सुकून दे जाता है। आज मुझे लगा कि मैं भी कहीं अधूरा हूँ.. और तुम्हारा अन्तहीन इंतजार मुझे सुकून देगा। तुम आओगी न?
पूरा तो कोई नहीं होता कभी.. एक अधूरी दास्तान जो कभी पूरी नहीं होगी….