बहुत छा चुका है अंधेरा, अब एक दीपक जलाते हैं,
बहुत सो चुके हैं लोग, अब हम उनको जगाते हैं I
समलैंगिक संबंध और शादी ही नहीं, शिक्षा और रोज़गार का गीत गुनगुनाते हैं,
बहुत सो चुके हैं लोग, अब हम उनको जगाते हैं I
राजनेता, अभिनेता, लोकसेवा अधिकारी और न जाने कितने पदों की ओर अब हम कदम बढ़ाते हैं,
बहुत सो चुके हैं लोग, अब हम उनको जगाते हैं I
बहुत बिके, बहुत नुचे, अब हम सबको सम्मान से जीना सिखाते हैं,
बहुत सो चुके हैं लोग, अब हम उनको जगाते हैं I
गली – गली, चौराहे – चौराहे बहुत पसार लिए हाथ, अब चलो दो रोटी इज्जत की खाते हैं,
बहुत सो चुके हैं लोग, अब हम उनको जगाते हैं I
हमें इश्क़ न मिला कोई रश्क़ नहीं, अब उन्हें धोखे के दर्द का एहसास कराते हैं,
बहुत सो चुके हैं लोग, अब हम उनको जगाते हैं I
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