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कविता : है दूर मगर

Picture Credit: Shrreyaansh Jadhav / QGraphy

अधिकार ढूँढ़ कर लाएँगे ।।
घुटन भरी इस जीवन को,
अब सहन नहीं कर पाएँगे ।।

जहाँ प्रेम नहीं, ना अपनापन,
वहाँ नहीं रह पाएँगे ।।
है हम अलग दुनिया से,
ताना नहीं सुन पाएँगे ।।

तेरे समाज के ज़ंजीरों से,
है बंधे हमारे पाँव ।।
घायल पड़ा यह दिल है,
तन पर लगे हैं घाव ।।

आत्मा में चली है आँधी,
दिलों में झंझावात है ।।
स्वतंत्रता का सूर्य, प्रकाश लाएगा,
छोटी यह काली रात है ।।

कर लिया सितम दुनिया ने,
पर प्यार को कहाँ हरा पाएँगे ।।
हर युग को जीता है हमने,
इस बार भी बाज़ी मार लाएँगे।।

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