बड़ी मुद्दत हुई तेरी महफिल से रुसवा हुएज़ख्म पर ये आज सा लगता हैवैसे तो तनहा पहले भी हुए मगरपर अब ये सुनापन आग सा लगता है।यादों की तर्कश में कांटे थे कभीपर इस बार जज़्बा ये खास लगता हैउनकी आहट रोज़ सूनते थे कभीपर अब ये खमोशी के आगाज़ सा लगता है।उलफत के सफर में ठोकर लगीं है मगरसहारा वो अपना अभी भी पास सा लगता हैवफ़ा की कसौटी पे हार गये हमऐसा अब एहसास सा लगता है।मंझर वो भी था कभी दिलफेंक साअब तो राग ये बिना साज का लगता हैइम्तेहान हैं ये इश्क़ के हद्द कीके आलम ये दिल का अब आप सा लगता है।।