न नर हैंन नारी हैं वोलोगों के कथनानुसार –किन्नर हैं वो !
कोई कहे उन्हें छक्कातो कोई कहे बीच वालाअरे ! तुम भी कोई नाम दे दोइससे भी नीच वाला
मत रुको तुम भी !तुम तो इनसे अलग होतुम भी कुछ दूषित कह दोजो इनसे संलग्न हो
इंसानों के होते हुए भीनाच – गा के है कमायामन न भी हो, तब भी !हाथ फैलाकर है खाया,
जन्म के बाद से ही तिरस्कार है मिलामृत्यु के पश्चात भी सत्कार न मिलाइससे अच्छा तो होता किइन्हें जन्म ही न मिला होता
इनके विषय में वर्षों सेये कैसी अवधारणा है पनपीजो तालियों तक में विभिन्नता आ धमकीइनकी ताली बीच वालीऔर हमारी ताली सम्मान वाली
न नर हैंन नारी हैं वोलोगों के कथनानुसार –किन्नर हैं वो !
यह रचना किन्नर समुदाय का अपमान करने वालों के प्रति एक व्यंग्यात्मक कविता है। यह कविता किन्नर समुदाय के विषय में वर्षों से फैले मिथ्या भ्रमों और उनके होते आए अपमान को उजागर करती है कि उन्हें कितने अपमानजनक और अभद्र नामों से पुकारा जाता है। यह कविता उस पूरे मनुष्य समुदाय के प्रति एक प्रकार का ताना है, जिसने वर्षों तक किन्नर समुदाय के अपमान में बढ़-चढ़कर भागीदारी निभाई है, जिससे वो आज भी हमारे समुदाय से पूरी तरह और सहसम्मान नहीं जुड़ पाए हैं ।