एक ऐसी दुनिया की कल्पना करो जहाँ लोग उगते सूरज से नफ़रत करते हैंजहाँ माना जाता है हर तरह के फूल को बर्बादी का परिचायकजहाँ सिर्फ़ दो ही रंगों का उतसव मनाया जाता है – स्लेटी और कालाजहाँ हँसने, मुस्कुराने और ख़ुश होने पर सुना दी जाती है सज़ाजहाँ के लोग गीली मिट्टी की ख़ुशबू सूँघकर, नाक भींच लेते हैंजहाँ सिर्फ़ कैदियों और दुश्मनों को पिलाई जाती है चायजहाँ ‘इंसानियत’ शब्द का इस्तेमाल होता है गाली की तरहउसी दुनिया में मेरे और तुम्हारे प्रेम को पाप माना जाता हैअरे रुको! मेरा और तुम्हारा प्रेम तो इस दुनिया में भी पाप हैजब तुम्हारे आलिंगन में लेटा मैं दुनिया के सबसे खूबसूरत भाव की अनुभूती कर रहा होता हूँतो मुझे ये बात याद आ जाती है और मैं ज़ोर से हँस देता हूँमुझे हँसी आती है इस बात पर कि कैसे कुछ लोग आज भी दो पुरुषों के प्रेम को पाप समझते हैंऔर उनके लिए सूरज का उगना, फूलों का खिलना, हँसना, मुस्कुराना पाप नहीं हैं।