मर्द किसे कहते है शायद इसकी परिभाषा को लोग अलग-अलग अंदाज़ में प्रस्तुत करेंगे। मर्द नाम सुनकर ही एक छवि उजागर हो जाती है, जिसमे कोई तगड़ा, लंबा, चौड़ा, भारी आवाज़ का समन्वय होगा, पर वास्तव में मर्द की परिभाषा शायद मुझे जब जवानी में आया तब समझ आयी।
यह कहानी है कुणाल की, बचपन से थोड़ा शर्मिला था, ज़्यादा दोस्त नहीं थे; जो थे वो मेरी पहचान से कोसो दूर थे। चुप चाप रहना हम लड़को के लिए एक अभिशाप बन जाता है, इसका अंदाज़ा मुझे देर में हुआ। बचपन से ही एक अलग सा चाव था खुद के लिए जीने का, जैसा चाहूँ जियूँ। स्कूल में लड़कियों से दोस्ती थी, लड़के बहुत दूर, कभी-कभी लड़कियों की तरह हरकत कर दिया करता था। फिर उसका फल या तो मुझे गंदी गलियों के रूप में मिलता या फिर पापा की मार खाकर। बहुत कोशिश करता था खुद को बदलने की, लड़को की तरह रहने की, चलने की, बात करने की पर हर बार मैं वही हरकत करता जो मुझे अछी लगती। इस वजह से स्कूल में हँसी का पात्र बन गया। आये दिन कोई न कोई गंदी भाषा का प्रयोग करता, कभी छक्का कहता तो कभी बीच का और कभी खुसरा। इन शब्दो के मतलब से अनजान मैं अपनी ज़िंदगी जी रहा था।
बड़ा हुआ, दसवीं कक्षा में आते-आते ताने भी बढ़ गए और रोज़ मार खाने की भी आदत सी हो गईं। खुद को मार देना चाहता था पर मुझे अपनी ज़िंदगी से बहुत प्यार था, खुलके जीना चाहता था। दसवीं में खुद को बदलने की सोची,चलो थोड़ा समाज के हिसाब से जिया जाए। नए दोस्त बनाये जो सिर्फ लड़के थे, उनके साथ घूमता, बैठता, बहुत समय बिताने लग गया। सोचा क्या पता इनके जैसा बन जाऊं, शायद तब सब ठीक हो जाए? लड़को के साथ रहता ज़रूर पर खुद को एक लड़का कहने में भी शर्म आती थी। हम लड़को के समूह में सिर्फ लड़कियों की बाते, उनको तरह-तरह के नामो से पुकारना, गालियाँ देके लड़की को प्रस्तुत करना दोस्तो के सामने। लड़की का मतलब मेरे दोस्तों की नज़र में बस एक ही था – शारीरिक ज़रुरत को पूरा करने वाली। खुद पर शर्म आती थी, की क्यों में दिखावे में ऐसे लोगों के साथ रहता हूँ जिन्हें किसी की इज़्ज़त करना नहीं आती । पर अगर उन सब से अलग होता तो वही सब नाम से मुझे पुकारा जाता । घर आकर खुद को खूब कोसता, पर अब मेरे घर वाले नए रूप को देखकर खुश होते थे, इसलिए सब ऐसे ही चलता रहता ।
ज़िन्दगी बढ़ती चली जा रही थी, अपनी ज़िन्दगी तो जैसे भूल ही गया था, दिखावे की ज़िन्दगी जी रहा था । सफर में फिर अचानक एक ऐसा मोड़ भी आया जहाँ मुझे लड़को के प्रति आकर्षण महसूस होने लगा। एक अजीब सी फीलिंग थी, किसी को बता नहीं सकता था, पर असमंझस में था । यह क्या हो रहा है? क्या मैं हिजड़ा…? उस समय गे शब्द चलन में नहीं था, लड़को के प्रति आकर्षण वाले को हिजड़ा ही कहा जाता।
लेकिन सबसे छुपकर एक अजीब सा आकर्षण महसूस कर रहा था, तभी हमारी क्लास में एक लड़का आया, देखने में स्टायलिश था पर था बिल्कुल गांव का, नाम भी बहुत प्यारा था – समर। जब भी उसको देखता अलग सी खुशी मिलती, उसके साथ बात करने का मन करता । चाहता था वो मुझसे बात करे,पर हिमत ही नहीं होती थी, बहुत आकर्षण था उसमें, दिन बीतते गए… कुछ दिन बाद हमारी बात हुई, सिर्फ हेलो, उसकी आवाज़ में एक जादू था जो दिन बर दिन मझे उसकी ओर खींचा चला जा रहा था। कुछ ही समय में उसने सबको अपना बना लिया – क्लास का पॉपुलर लड़का बन गया । सब उसके स्टाइल की तारीफ करते थे, ऐसे ही एक दिन हमारी परीक्षा चल रही थी,उसने मुझसे एक उत्तर का जवाब माँगा, उसके बोलने मात्र से मेरे पूरे शरीर में कंपन सी दौड़ गई । मैंने उसका जवाब दिया और अपनी परीक्षा देने लग गया । परीक्षा खत्म होते ही उसने मुझे शुक्रिया कहा, मैंने भी हल्की मुस्कुराहट देदी ।
कुछ समय बातचीत होते रहने से मैं ओर समर बहुत अछे दोस्त बन गए, इतने पक्के की पूरी क्लास में हम दोनों की दोस्ती के चर्चे होते । जहाँ भी कोई बात करता हम दोनों की दोस्ती की मिसाल देता, स्कूल के बाद भी हम मिलते और घुमा करते, मैं बहुत खुश था, अपनी ज़िन्दगी के इस पल को जी रहा था । अब स्कूल में भी कोई डर नहीं था, क्योंकि अब समर मेरा साथ देता, कोई कुछ गलत बोलता तो समर उसको संभालता । पता नहीं यह दोस्ती थी या फिर मुझे उससे प्यार होने लग रहा था? मन करता था उसके साथ ही बैठा रहूँ, बातें करता रहूँ, उसके दिल में मेरे लिए दोस्ती की इलावा कुछ था, यही सोच में डूबा रहता । फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिससे हमारी दोस्ती के मायने ही बदल गए, दोस्ती का रिश्ता नए सफर पर चल दिया था ।
समर ने मुझे फ़ोन करके घूमने के लिए बोला, मैंने झट से हाँ कर दी । मैं उसके घर गया, शाम का वक़्त था, वो घर के बाहर किसी से बात कर रहा था ओर उसको किस्स कर रहा था, जैसे दोस्तों को करते हैं । मुझे यह सब देखकर अच्छा नहीं लगा, मैं उसके पास गया और गुस्से से उसे देखने लगा। उसने शायद ध्यान नहीं दिया और हम घूमने चल दिए। हम पार्क में गए, उस समय इक्का-दुक्का लोग ही टहल रहे थे। वो इधर उधर की बाते करने लग गया, पर मैं उससे अभी भी गुस्सा था। उसने जब देखा तो पूछा- ‘क्या बात है, आज गुस्सा क्यों है जान?’ प्यार से हम दोनो एक दूसरे को जान कहकर बुलाते थे। मैं कुछ नहीं बोला, दूसरी तरफ मुँह करके बैठ गया। उसने फिर पूछा, इस बार उसने अपने हाथ मेरी जांघो पर रख दिये, मुझे पूरे शरीर में कंपकपी सी महसूस होने लगी । शायद यह बात समर ने नोटिस कर ली थी, पर कुछ बोला नहीं, फिर पूछा, “बता न जान क्या हुआ?” मैन बोला, “तूने उस लड़के को किस्स क्यों कि?” वो सोच में बैठ गया, “कौन से लड़के को?” मैंने बोला, “वही लड़का जो तेरे घर के पास था ।” वो इस बात पर ज़ोर से हँसने लग गया । मुझे फिर गुस्सा आया । “हँस क्यों रहा है? मैने कुछ पूछा है।” समर बोला- “यार वो मेरा बेस्ट दोस्त है, हम जब भी मिलते है एक दूसरे को किस्स करते है, दोस्त की तरह।” मैं झट से बोल पड़ा, “मुझे तो नहीं करता तू किस्स,क्या मैं तेरा दोस्त नहीं?” मेरे मुँह से यह बात सुनकर वो शांत हो गया, कुछ बोला नहीं और इधर-उधर देखने लग गया ।
समय ज़्यादा हो गया था इसलिए उसने बोला “चले क्या?” मैं गुस्सा तो था ही, मैंने भी हामी भर दी। जैसे ही मैं आगे बड़ा, उसने मुझे पकड़कर एक किस्स कर दिया, मै कुछ न बोल पाया। वो किस्स करके मुझे देखने लगा, ओर बोला, “अब खुश? तूँ मेरे लिए सबसे खास है, अब जब भी मिलूँगा तुझे किस्स करूँगा पक्का।” मै हकबकाया सा रह गया, इस तरह अचानक उसका किस्स करना मेरे दिल को अलग एहसास करा गया। उस दिन तो हम वहाँ से आ गए, लेकिन उसके बाद जब भी हम मिलते एक दूसरे को किस्स करते, ये किस्स शायद वो एक दोस्त के नाते करता था, पर मेरे लिए वो अब शायद दोस्त से कुछ आगे बढ़ चुका था ।
स्कूल में भी हर जगह मेरे साथ होता, उसको मैं जैसा था पसंद था, वो कुछ भी बदलाव नहीं चाहता था मुझमें, कभी कोई कुछ उल्टा बोल देता मेरे लिए तो वो लड़ने लग जाता, हर बार मेरी सपोर्ट करता, कभी भी मुझसे कुछ नहीं छुपाता, हर बात चाहे वो घर की हो या कोई लड़की की । समय बीतता गया और हमारी दोस्ती दिन ब दिन बढ़ती गई, मेरे लिए अब वो दोस्त न होकर प्यार बन गया था, एक बहुत ही खास इंसान जिसके साथ हर पल जीना चाहता था। पता नहीं उसके दिल में मेरे लिए कुछ था या नहीं, पर वो मेरी खुशी बनता जा रहा था । सोचा उसको प्यार का इज़हार कर दूँ,पर डरता था कहीं दोस्ती भी न टूट जाये, लेकिन मैं दिन ब दिन उसको बहुत चाहने लगा था । हिम्मत करके एक दिन मौका मिल ही गया । उसका जन्मदिन था, बहुत खुश था वो, पार्टी मेरी तरफ से थी, सिर्फ मैं ओर वो हम उस दिन बहुत घूमे, खाना खाया, उसको खुशी देनी चाही।
जब हम जन्मदिन सेलिब्रेट करके चलने लगे तभी मैंने उसका हाथ पकड़ लिया, अपने पास खींच लिया । वो कुछ नहीं बोला, मैंने उसे गाल पर किस्स की, धीरे से कान में बोल दिया “आई लव यू”। वो अचानक हुए वार से चौक गया, मैं बोलता रहा, “समर तूँ मेरे लिए यार मेरी खुशी है, प्यार है, तेरे साथ होता हूँ तो खुद को बहुत खुश पाता हूँ, हर दिन तुझे प्यार करने को, तेरे साथ रहने को दिल चाहता है।” मैं बोलता जा रहा था, ओर वो सिर्फ सुनता जा रहा था, तभी हमें महसूस हुआ कोई शायद हमें देख रहा है। फिर हम दोनों ने वहाँ से जाना ही सही समझा, और मैं उसको घर छोड़कर अपने घर आ गया।
रात को नींद नहीं आई, उसके हाँ का बेसब्री से इंतज़ार था। जैसे तैसे करके सुबह हुई, तो मैं स्कूल के लिए निकला। घर के बाहर समर खड़ा था। मैं मन ही मन काँपने लग गया। वो बोला, “चल चले?” मैंने हाँ में सिर हिला दिया। रास्ते में वो रुका ओर वही धीरे से पास आकर बोला “आई लव यू तू” ओर होंठो पर किस्स कर दिया। मैं बहुत खुश हुआ, उसको गले से लगा लिया ओर शुरू हो गई हमारी लव स्टोरी।