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कहानी: मैं राँझा हो गया

Picture Credit: ‎Chaitanya Chapekar‎ / QGraphy

“ज़रा ठहरो, चले जाना… मुझे तुमसे कुछ कहना है। ज़्यादा वक्त नहीं लूंगा ज़रा सी बात करनी है; ना दुख अपने सुनाने हैं ना कोई फरियाद करनी है। ना यह मालूम करना है कि अब हालात कैसे हैं तुम्हारे। ना यह पूछना है की हमसफर थे जो तुम्हारे साथ कैसे हैं? ना यह मालूम करना है तुम्हारे दिन रात कैसे हैं? मुझे बस इतना कहना है – तुम्हारी याद आती है, बहुत ही याद आती है!”

वो काफी दिनों से उसका पीछा कर रहा था। आज भी उसने उसका रास्ता रोक लिया था। “नभ्य मेरी बात तो सुनो,” वह बेबसी से बोला।
“तुम क्यों बार-बार मेरे रास्ते में आ जाते हो? यह क्यों नहीं समझते कि यह दुनिया हम दोनों को कभी स्वीकार नहीं करेगी। तो फिर क्यों जाऊं मैं ऐसे रास्ते पर जिस पर चलने से पैरों में छाले पड़ जाएँ पर मंज़िल ना मिले?” वो झल्ला उठा।

“मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह दुनिया क्या सोचती है हमारे बारे में, और फिर तुम तो खुद अकेले ही हो। तुम्हारे सामने तो कोई एसी कंडीशन भी नहीं कि तुम्हें अपनी फैमिली को मनाना हो। ये सब तो मुझे करना है। सब को मनाना, सब की बेरुख़ी सहना… ये सारे काम तुम मेरे ऊपर छोड़ दो। बस तुम हाँ कर दो,” वो उसे समझा रहा था।
“चलो मान भी लूँ तो तुम ही बताओ कि तुम्हारी हवेली में मुझे कोई इज़्ज़त देगा? मैं वहाँ जाकर ज़िल्लत भरी जिंदगी नहीं जीना चाहता,” उसके आँसू छलके थे।

“ये आयुष्मान शेखावत का वादा है तुमसे कि तुम पर कभी कोई उँगली नहीं उठाएगा… बस तुम मान जाओ। नभ्य मैं तुम्हारे बिना जीने का सोच भी नही सकता। मर जाऊँगा तुम्हारे बिना,” आयुष्मान ने हाथ जोड़े। नभ्य ने उसके बंधे हाथों को खोलकर बिना कुछ कहे उसे गले से लगा लिया।

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ना जाने कितने क्लेश कोहराम के बाद आयुष्मान उसे अपने कमरे में ले आया था। आयुष्मान अपने माँ-बाप का इकलौता बेटा था इसलिए इतनी जंग के बाद उसके पापा ने उसकी बात मान ली, मगर एक-एक गहरी सोच के साथ।

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“ये मत समझना कि तू यही रहेगा हमेशा आयुष्मान के साथ। मैं ऐसा कभी होने नहीं दूंगा।”
वो जो कोई भी था, उसे खूनी निगाहों से देख रहा था। आयुष्मान अभी कमरे में नहीं था। उसी वक़्त एक और लड़का कमरे में घुसा।
“ये पारस है और मैं समर हूँ। ये आयुष्मान से प्यार करता है।”
उसकी बात काटकर पारस आगे बोला, “तूने मेरे हक़ पर डाका डाला है। मेरे आयुष्मान को छीना है मुझसे, जिस बिस्तर पर आज तू बैठा है वहाँ मैं बैठना चाहता था। मगर ये सेज तो आज तेरे लिये सजी है मैं अपने जीते जी तुझे आयुष्मान के साथ…”
“पागल हो गया है पारस? अगर आयुष्मान को पता चला तो तुझे जान से मार डालेगा और कोहराम मचेगा सो अलग,” समर ने उसे रोकते हुए कहा।
नभ्य फटी आँखों से सब देख रहा था।
“जो होता है उसे होने दे… मैं नहीं डरता उससे… उसने मेरी परवाह की जो मैं उसकी करूँ?”
“मान जा ना यार! सो लेने दे आज इसे वैसे भी यह ज़्यादा दिन नहीं टिक पाएगा। यहाँ एक रात इसे दे दे और हजार रातें तू ले लेना,” वो कमीनी हँसी हँसा।
“नहीं चाहिये मुझे सैकेण्ड हैण्ड आयुष्मान। अरे कुछ दिन मेरे साथ रह लेता फिर चाहे कितनी भी सेज सजाता किसी के साथ मुझे क्या फर्क पड़ता? मगर उसने मेरे आगे इसे अहमियत दी। ऐसा क्या है इसमें जो मुझमें नहीं? मैं इसे ज़िंदा ही नहीं छोड़ूँगा,” अपनी बात पूरी करते ही उसने नभ्य के गाल पर थप्पड़ जड़ा।
इससे पहले कि नभ्य कुछ कहता आयुष्मान कमरे में आ गया। उसे आते देख समर नभ्य को बचाने की ऐक्टिंग करने लगा।
“ये सब क्या हो रहा है?” आयुष्मान की ज़ोरदार आवाज़ गूंजी। समर तो जल्दी से कमरे से बाहर चला गया।

“तुमने मुझे इसकी वजह से अनदेखा किया है ना? तो जाओ आयुष्मान तुम भी मेरी तरह खुशियों को तरसोगे,” वह फूँकारा।
उसकी इस बात पर आयुष्मान ने उसे थप्पड़ मारा।“तुम्हारा दिमाग तो ठीक है ना! मैंने कब तुम्हें सपने दिखाये जो मेरे पीछे पड़े हो बेगैरत इन्सान।” उसने हाथ पकड़ कर उसे कमरे से बाहर निकला, इतनी देर में सब लोग उसके कमरे के बाहर जमा हो चुके थे।

तस्वीर सौजन्य : राज पांडेय/ क्यूग्राफ़ी

“खबरदार! जो किसी भी घरवाले ने नभ्य के साथ बदतमीज़ी या बदसलूकी की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। मैं उसका तो बुरा हाल करूँगा ही, साथ ही घर छोड़कर भी चला जाऊँगा,” उसने धमकी दी, जिसका असर वाक़ई सब पर हुआ। आयुष्मान ने अन्दर जाके कमरे का दरवाज़ा ज़ोर से बन्द किया।

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“अब कैसी तबीयत है तुम्हारी?” नभ्य रात के झमेले के बाद सोया तो सीधा अब उठा था। “कल के लिये मैं तुमसे माफी माँगता हूँ। आगे से ऐसा कुछ भी नहीं होगा।” आयुष्मान उसकी कमर में हाथ डाले बहुत प्यार से बोल रहा था, “पता है नभ्य? मैं तुम्हारा दीवाना तभी बन गया था जब पहली बार तुम्हें देखा था। बस अब ये ज़िन्दगी तुम्हारी बाहों मे ही काटूँगा।” वो उसके गले लगे हुए बोल रहा था। “यार मैं ही बोल रहा हूँ तब से; अब तुम भी तो कुछ बोलो, कान तरस रहे हैं मेरे।” उसकी बात पर भी नभ्य कुछ नहीं बोला। रात जो हुआ वो उसे भुला नहीं पा रहा था।

आखिर ये समर और पारस क्या लगते हैं आयुष्मान के? उस हवेली मे वो क्या मुँह लेकर निकले सबके सामने? कैसे सामना करे सबका? इन सवालों के जबाब नहीं थे उसके पास। वो कुछ समझ नही पा रहा था। “आयुष्मान! वो पारस?” उसके लब फड़फड़ाये।
“पारस समर का दोस्त है और समर मेरा कज़िन है। पारस खुद को मेरा लवर कहता है। मैंने उसे कई बार समझाया की मुझे भूल जाए। मुझे ना वह पसंद है ना उसकी गिरी हुई हरकतें। फिलहाल तुम्हें उससे डरने की कोई कोई ज़रूरत नहीं है।”
“मैं उससे नही डर रहा मगर मुझे बददुआओं से डर लगता है आयुष्मान। वो तुम्हें चाहता है, उसने भी तुम्हें लेके ख्वाब देखे होंगे।मगर वो मेरी वजह से अधूरे रह गये। मैं अपने आप को मुजरिम महसूस कर रहा हूँ।” वो शर्मिन्दा हो रहा था।
“तुम मत डरो यार। जब उसकी मोहब्बत सच्ची नहीं है तो उसकी बददुआओं में असर कहाँ से होगा? और वैसे भी जो किया है मैंने किया है, फिर तुम क्यों खुद को दोषी मानते हो? मैं तुम्हें यह सब इसलिए बता रहा हूँ ताकि तुम भी मुझसे उतना ही प्यार करो जितना मैं करता हूँ। तुम भी मेरे इश्क में राँझा हो जाओ।” उसने शेखी से कहते हुए उसे अपने घेरे में ले लिया और नभ्य खुद इस घेरे से निकलना नही चाहता था।

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आयुष्मान कहीं गया हुआ था जब उसके पापा हाथ मे खाने की ट्रे लिये हुए कमरे मे आये।“अंकल, आप क्यूँ लाये ये सब… मैं खुद आ जाता।” वो शर्मिन्दा होता हुआ बिस्तर से खड़ा हो गया।
“मुझे तो तुम ये नौटंकी ना ही दिखाओ। तुम आयुष्मान को इन अदाओं से फँसा सकते हो मगर पूरी हवेली को नहीं। और खाना तुम हम लोगों के साथ खाओ ये हक़ हमने तुम्हें दिया नहीं। और किसी और से इसलिए नहीं भेजा क्योंकि मैं तुमसे मिलना चाहता था।” उनके लहजे और बात से वो सहम गया।
“मैं यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करूँगा कि तुम यहाँ रहो मेरे घर में… मेरा घर कोई जिस्म का बाज़ार नहीं जहाँ तुम दोनों यह गंदे घटिया काम करते रहो। बेहतर है तुम इस घर से खुद चले जाओ वरना मुझे और भी तरीके आते हैं।”
वह दौड़ते हुए कमरे से बाहर चले गए। नभ्य अपना सर पकड़ कर वहीं बैठ गया और रोने लगा। तभी समर कमरे में आया।
“आप यहाँ बैठे रो क्यों रहे हो? आयुष्मान की कमी खल रही है क्या?” उसकी बात पर नभ्य ने उसे गुस्से से देखा। “वैसे आप चाहो तो मैं आयुष्मान की कमी दूर कर सकता हूँ… बल्कि रोज़ कर दिया करूँगा।”
उसकी बात पर नभ्य गुस्से से उठ खड़ा हुआ। “मेरे कमरे से निकलो तुम फ़ौरन।” उसे कमरे से बाहर करके उसने दरवाज़ा बन्द कर लिया। वह समझ नहीं पा रहा था कि वह आयुष्मान को यह सब बताये या ना। कितनी हिकारत थी आयुष्मान के पापा की नज़रों में और उससे भी ज़्यादा गंदगी थी समर की आँखों में। उसे डर था कि अगर आयुष्मान ने गुस्से में कुछ कर दिया या कर लिया तो उसका क्या होगा। इसी सोच में उसने उसे कुछ भी ना बताने का फैसला लिया और आँखें बन्द करके लेट गया।

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“अकेले-अकेले क्या सोचा जा रहा है?” वो सोके उठा था जब आयुष्मान कमरे में आकर बोला।
“नहीं, कुछ भी तो नहीं।”
“नभ्य, मुझे लगता है कि तुम रोते रहे हो?”
“नहीं तो।” उसकी आँखों मे नमी चमकने लगी।
“साफ-साफ बताओ किसी ने कुछ कहा है?”
“नहीं किसी ने कुछ नहीं कहा… बस आज ये एहसास हो रहा की मैं अनाथ क्यों हूँ?”
“मतलब मैं तुम्हारे लिये कुछ भी नहीं?” उसने भौहें सिकोड़ते हुए पूछा।
“मैंने ऐसा कब कहा?”
“अच्छा छोड़ो… चलो कहीं घूमने चलते हैं,” उसने नभ्य को गुमसुम देख के ऑफ़र किया।
“अब?? इतनी रात को?”
“तो क्या हुआ? वैसे मैं ज़रा नहा लूँ,,, तुम ना यार मेरे कपड़े निकल दो। और तुम्हें मुझे परेशानी ना बतानी हुआ करे तो ना सही मगर उदास मत मिला करो। हमेशा हँसते मुस्कुराते रहा करो क्या पता कब इस ज़िन्दगी की शाम हो जाये?” उसने वाशरुम में घुसते हुए अपनी तरफ इशारा करते हुए कहा। जब वो वापस आया तो नभ्य रो रहा था।
“क्या हुआ यार?” वो उसकी तरफ लपका।
“आयुष्मान ऐसे मत बोला करो समझे,,, मुझे डर लगता है,” वो हल्की-हल्की आवाज़ मे बोला।

“ओके सॉरी बाबा! नहीं कहूँगा अब, मगर अब तो बताओ क्या बात है? क्यों परेशान हो तुम?”
“आयुष्मान इस घर में मेरी कोई इज़्ज़त नहीं है। कोई मुझसे प्यार से बात नहीं करता।” वो सिसक उठा, “मैंने तुम्हें इसलिए नहीं बताया कि तुम गुस्सा करोगे और लड़ने पहुँच जाओगे।”
“तो तुम क्या चाहते हो मैं खामोशी से बैठ जाऊँ? नो! नेवर! मैं तुम्हारी बेइज़्ज़ती नहीं सह सकता।” उसकी बातों से गुस्सा झलक रहा था।
“तुम बात क्यों नहीं समझते?”
“ये बताओ कि तुमने ये सब पहले क्यों नहीं बताया?”
“तुम्हारे गुस्से की वजह से।”
“अब इतना भी गुस्से वाला नहीं हूँ।“
“तुम हो… मेरी जान निकल जाती है तुम्हारे गुस्से से… मैं तो हमेशा अकेला जिया हूँ, शायद इसलिए भी मुझे ज़्यादा डर लगता है तुम्हारे गुस्से से।”
“ये तुम्हें भी समझना चाहिये ना मैंने तुम्हें पहले भी बोला है कि किसी की परवाह मत करो। मत खून जलाओ खुद का और ना रोते हुए मिलना मुझे कभी। मगर तुमने मेरी बात नही मानी। तुम दो दिन से हो मेरे साथ मगर ऐसा लग रहा है जैसे ज़िन्दगी भर से आँसू पोछते आ रहा हूँ तुम्हारे।”
वो उसे बिठा कर उसकी गोद में सर रखते हुए बोला, “आई एम सॉरी यार! मगर मैं भी क्या करूँ? एक तुम ही हो जिसके लिये मैं ज़िंदा हूँ। मगर घर वालों का रवैया मुझसे बर्दाश्त नहीं होता। सबको मैं ज़हर लगता हूँ… इवन ये भी बोला गया है मुझसे कि मैंने तुम्हें अपनी अदाओं के जाल में फँसा रखा है।”
आयुष्मान उसकी बात पर ज़ोर से हँसा। “ओह माय गॉड! तुमने अपनी अदाओं के जाल में फँसाया है मुझे! इमेजिन… मैंने तो आज तक एक अदा नहीं देखी तुम्हारी तो इन लोगों ने कहाँ से देख ली? वैसे तुम अगर मुझे अदायें दिखा दो ना तो मेरे तो सारे शिकवे ही मिट जाएँ।” उसने हँसते हुए कहा तो नभ्य भी मुस्करा दिया।

तस्वीर सौजन्य : मिहिर महेर/ क्यूग्राफ़ी

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आयुष्मान दो दिन के लिए बाहर गया हुआ था। नभ्य उसके बिना बहुत परेशान हो रहा था इसलिए उसने आयुष्मान को कॉल किया।“हाय स्वीटहार्ट!” उधर से प्यार भरी आवाज़ आई।“आयुष्मान! जब से तुम गए हो ना मुझे बहुत अकेला फील हो रहा है। प्लीज़ तुम जल्दी आ जाओ ना उसने परेशानी से कहा।
“कोई बात है क्या?” उसके लहजे से वह भी परेशान हो गया।
“हाँ, बात तो है लेकिन आने पर बताऊँगा, अभी फोन पर नहीं।“
“अभी बताओ ना”
“अभी नहीं बता सकता फोन पर। समझो ना प्लीज़।” अब कैसे बताता कि उसके जाने के बाद से समर दो बार उसके कमरे में घुस आया था। कैसी अजीब सी गंदगी थी उसकी आंखों में।
“ठीक है तुम परेशान ना हो मैं कल दोपहर तक आ जाऊँगा।”

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“समर हमारी बात सुनिए।“ आयुष्मान के पापा महेंद्र शेखावत ने उसे अपने कमरे में बुलाते हुए कहा।
“जी अंकल बतायें,” वो उनके सामने बहुत शरीफ बन रहा था।
“तुम्हें हमारा एक काम करना होगा बल्कि यूँ कहो कि करना ही है।”
“कौन सा काम?” वह चौंका।
उसके पूछने पर उन्होंने सारी बात उसे समझा दी। अनजाने में ही सही मगर उन्होंने चूहा समझ कर शेर को उसके शिकार तक पहुँचने का रास्ता दिखाया था।कुछ ही देर में समर ने वह प्लान पारस से भी शेयर कर लिया था।आने वाले वक्त में अपने पूरे होते हुए मंसूबों को देखकर वह दोनों बहुत खुश लग रहे थे।

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“हैल्लौ जी,” वो अपने बाल बना रहा था जब समर की आवाज़ उसके कानों से टकराई।
“तुम्हारी हिम्मत भी कैसे भी मेरे कमरे में आने की?” वो फुंकारा,मगर उसकी बात अनसुनी करके समर आगे बढ़ कर उसे अपनी बाहों में ले चुका था और उसके मुँह को अपने हाथ से दबा लिया था। नभ्य खुद को छुड़ाने की पूरी कोशिश कर रहा था।
“नभ्य तुम्हारा जादू मुझ पर चल गया है। ऐसा लगता है मुझे तुमसे प्यार हो गया है। मुझे भी अपने प्यार के समंदर में गोते लगवा दो। तुम्हें पाने के लिए मैं आयुष्मान से भी लड़ जाऊँगा।” वह उसे चूमने ही वाला था कि आयुष्मान आ गया।
“अच्छा हुआ आयुष्मान जो तुम आ गये। ये मेरे साथ ज़बरदस्ती कर रहा था, तुम ना आते तो मैं मर्डर कर देता आज इसका,” वो भाग के आयुष्मान से चिपक गया।
“तुम यहाँ क्या कर रहे हो?” उसने आग बरसाती आँखों से समर से पूछा।
“ई ई इसने मुझे बुलाया था,” उसने नभ्य की तरफ इशारा करके कहा।
“नहीं आयुष्मान ये झूट बोल रहा है।”
“झूट मैं नहीं तुम बोल रहे हो।”
“मेरा विश्वास करो आयुष्मान। तुम जब से गये हो तब से ही ये मुझे परेशान कर रहा है और इसीलिये कल फोन पर मैंने तुम्हें जल्दी आने को बोला था।“
उसकी बात सुनकर आयुष्मान के कानों में उसकी आवाज़ गूंजी। (“अभी नहीं बता सकता फोन पर। समझो ना प्लीज़।) नभ्य की बात याद आते ही उसने समर का गिरेबान पकड़ लिया।
“देखो आयुष्मान अगर तुम्हें किसी का खून करना है ना तो इसका करो जो तुम्हारे पीछे मुझे बुलाता है और आज भी इसी ने मुझे बुलाया था,” समर ने गुस्से से कहा।
“मुँह बन्द कर अपना।”
आयुष्मान समर के गंदे अतीत से अच्छी तरह वाक़िफ़ था, इसलिए वो उसका यकीन तो कभी नही कर सकता था।वो एकदम लात घूसों से समर पर शुरु हो गया और मारते-मारते उसे अधमरा कर दिया था। आयुष्मान की पकड़ जैसे ही कमज़ोर हुई समर सीधा बाहर भागा। आयुष्मान भी अलमारी से रिवाल्वर निकालता उसके पीछे हो लिया। चंद लम्हों मे समर भी रिवाल्वर निकाल लाया था। वो दोनों ही एक दुसरे पर बन्दूक ताने खड़े थे। गोली की आवाज़ के साथ ही सब वहाँ जमा हो गये।
“ये क्या किया तुने?” आयुष्मान की माँ ने चीख कर आयुष्मान से पूछा। समर ने ज़ख़्मी होने के बावजूद आयुष्मान को निशाना बनाया मगर जब पारस उसे रोकने बढ़ा तो वो गोली उसे ढेर कर गयी। चीखें बढ़ती जा रही थी मगर समर ने हिम्मत ना हारी। उसने आयुष्मान के सीने पर गोली दागी थी। अयुष्मान ज़मीन पर लड़खड़ा कर गिरा तो नभ्य लपक के उसके पास आ गया।

उसे मुस्कुराते देख नभ्य को थोड़ी हिम्मत मिली मगर दुसरे ही पल वो दम तोड़ गया। नभ्य उसे झिंझोड़ रहा था मगर जाने वाला जा चुका था। महेंद्र शेखावत अपने बेटे की खून मे लथपथ लाश देख कर उसकी मौत का ज़िम्मेदार खुद को मान रहे थे। उन्होंने पास पड़ी रिवाल्वर से खुद को गोली मार ली।पति और जवान बेटे की मौत आयुष्मान की माँ सह ना सकीं और वो भी उनके साथ हो लीं। नभ्य रोते रोते बेहोश हो चुका था। हँसी से गूंजने वाली हवेली पल भर मे वीरान हो चुकी थी।

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3 साल गुज़र चुके थे। शेखावतों की हवेली खामोशी का अंधा कुआँ हो चुकी थी। पाँच मौतें एक साथ हुई थीं। हवेली तो हवेली सारे शहर में कोहराम मच गया था। नभ्य को आयुष्मान की मौत से गहरा सदमा लगा था। वो बस अपने कमरे में पड़ा रहता था। नफ़रतों की आग में सब कुछ जल चुका था।

नभ्य ने खामोशी से रहना सीख लिया था। बात करता तो भी किससे? उसे हसाने वाला, उसे प्यार करने वाला, उसके लिये मरने मारने वाला, उसके हक़ के लिये आवाज़ उठाने वाला उसकी ख़ातिर अपनी जिंदगी हार चुका था। वो अभागा हो चुका था। वो काले रंग के कपड़े पहने इधर उधर चकराता फिरता था। वो उसे जितना याद करता वो उसे उससे ज़्यादा याद आने लगता था। वो घण्टों एक ही जगह बैठा उसका नाम पुकारता रहता। आयुष्मान की कही बात सच हो गयी थी। वो राँझा राँझा करता खुद ही राँझा हो गया था।

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