प्रस्तुत है, अंकुश द्वारा रचित कहानी “आधा इश्क” की पहली कड़ी:
“ये क्या है यार, कबसे फोन लगा रही हूं। कितना सोएगा? उठ जा, आज शुक्रवार है, शनिवार नहीं। दफ्तर नहीं जाना क्या?”
सुबह के ८ बजे थे और संदीप अभी तक सो रहा था। पूनम संदीप को कॉल करके उठाने की कोशिश कर रही थी।
“हाँ बाबू, उठ गया हूँ। अभी फ्रेश होने जा रहा हूँ। चल तू भी तैयार हो जा। बाय, लव यू।”
“लव यू टू।”
संदीप और पूनम के हर दिन की शुरुआत ऐसे ही होती थी। दोनों एम्एनसी। में नौकरी करते थे। कुछ ही महीनों में यह प्यार शादी में तब्दील होने वाला था। उनकी प्रेम कहानी सरल थी। कॉलेज में मिले, प्यार हुआ, फिर इकरार और फिर ‘हैपी एंडिंग’।
“देखो यह रिपोर्ट आज ही पूरी करना है, फिर चाहे कितना भी वक़्त लगे।”
“ठीक है सर, मैं कर दूंगा।” संदीप अपनी कुर्सी पर जाकर बैठा और तभी उसे कॉल आ गया।
“ओय सैंडी, आज शाम को बरिस्ता में मिल। कुछ ख़ास बात करनी है। और हाँ, पूनम को भी लेकर आइयो।”
“अरे राकेश यार, आज बहुत काम है। आज नहीं आ सकता मैं। कल मिलते हैं न। कल ऑफ है।”
“मैंने बोला न, आज ही मिलना है। और साले, बरिस्ता तेरे दफ्तर के सामने ही तो है। सो मुझे कुछ नहीं पता। आज शाम को साधे सात बजे आना है मतलब आना है। ओके बाय मुझे बॉस बुला रहा है।”
राकेश ने फोन रख दिया और यहाँ संदीप ने भी परेशान होकर फोन रख दिया।
“साला कितने दिनों से काम ही काम चल रहा है। अब मुझे ब्रेक की ज़रूरत है यार…”
“हेलो पूनम, आज पूरी गैंग इकठ्ठा हो रही है बरिस्ता में और तुझे आना है ओके?”
बरिस्ता में :
“हेलो एवरीवन!”
“अबे अकेले आया है क्या, पूनम कहाँ है?”
“अरे वह आ रही है, वाशरूम गई है। कैसे हो सब, कमीनों? कितने दिनों बाद मिले हो।”
राकेश, संदीप, अरमान, मनोज, पूनम और प्रीती एक साथ कॉलेज में पढ़ते थे। काफी महीनों के बाद आज सारे इकठ्ठा हुए थे।
“हे गाइस, मैंने तुम सबको यहाँ आज इसलिए बुलाया है, क्योंकि मैं एक छोटी सा गेट-टुगेदर आयोजित कर रहा था। पूरे कॉलेज का नहीं, सिर्फ अपने क्लास का। तीन साल बाद हम सब फिरसे मिलेंगे। पुरानी बातें ताज़ा होंगी। कितना मज़ा आएगा… क्या कहते हो?” – प्रीती ने सारा प्लेन बनाया था। वह कॉलेज के समय से ही ‘टॉम बॉय’ किस्म की लड़की थी।
“वाह, यह बढ़िया आयडिया है। हम सबसे फिरसे मिलेंगे। पुरानी यादें ताज़ा होंगी कॉलेज की। हाय, मैं तो अभी से सेंटी हो रहा हूँ!”, अरमान बोलने लगा।
“ओय चुप कर रोताडू…”, राकेश ने अरमान की बात काटते हुए कहा।
“यारों, देखो मेरा नया आई-पोड। कैसा है? मनोज को पहले से ही आई-पोड फ़ोनों का बड़ा शौक़ था।
“हे यार, औसम है, कितने का लिया?“ राकेश ने पूछा।
“यार गिफ्ट में मिला था। गर्ल फ्रेंड ने दिया था, हमारी कमिटमेंट वाली पहली सालगिरह पर”, मनोज रोमैंटिक होकर बोल रहा था।
संदीप ने आई-पोड देखा और उसका चेहरा अचानक से उतर गया। मानो उसे कुछ बात याद आ गयी हो। कोई ऐसी बात, जिसने उसका मूड अचानक से बदल दिया।
यहाँ इनकी मीटिंग ख़त्म हुई और सब लोग वापस जाने लगे। पूनम और संदीप ने तय किया कि बाहर से ही खाकर जाएंगे।
होटल में बैठने के बाद संदीप का उखडा हुआ चेहरा देखकर पूनम ने आखिर पूछ ही लिया, “बाबू क्या हो गया है तुम्हें? अचानक से ऐसे उदास क्यों हो गए हो? थोड़ी देर पहले तक तो एकदम सही थे।”
“अरे कुछ नहीं, बस ऐसे ही, तुम बताओ क्या खाओगी?”
“देखो झूठ न बोलो। कोई तो बात ज़रूर है जो तुम्हें खाए जा रही है। चलो बताओ जल्दी।”
“पूनम, आज मनोज का आई-पोड देखा, और बाहर गेंदे के फूल देखे तो नीरज की याद आई। तुम्हें याद है नीरज?”
“हाँ, याद है न। नीरज, तुम्हारा कथित बेस्ट फ्रेंड। पर आज तुम्हे अचानक उसकी याद कैसे आ गई?”
“यार तुम्हें नहीं लगता मैंने उसके साथ बुरा किया? कहाँ होगा वह इस वक़्त? क्या कर रहा होगा? वह ठीक तो होगा न? उसने मुझसे मिलने का वादा किया था। फिर क्यों नहीं आया वह?”
“अरे संदीप इतने सारे सवाल? वह वापस नहीं आया, क्योंकि उसका वापस न आना ही सबके लिए अच्छा था। भूल गए तुम, उसने हमारे साथ क्या किया था? मुझे तो आगे चलकर कभी उसकी शक्ल भी नहीं देखनी।”
“पूनम, क्या तुम सच में भूल गई, उसने हमारे लिए क्या किया था? वह वाकई हमारा सबसे अच्छा दोस्त था यार, तुम मानो या न मानो। मुझे बस उससे एक बार मिलकर कुछ सवाल करने हैं।”
नीरज की बात निकलते ही दोनों में सन्नाटा-सा छा गया। दोनों ने चुपचाप खाना खाया और संदीप पूनम को घर छोड़कर वापस अपने घर लौटा। घर पहुँचते ही उसने अपना लाकर खोला। उसमें से एक पुराना आई-पोड निकाला और देखने लगा। देखते ही देखते उसकी आँखों में पानी आ गया। उस पानी में उसे अपनी कॉलेज की ज़िंदगी साफ़ दिखाई देने लगी।