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‘आधा इश्क़’ – एक कहानी (भाग ८/१०)

आधा इश्क (८/१०) | तस्वीर: राज पाण्डेय | सौजन्य: QGraphy

आधा इश्क (८/१०) | तस्वीर: राज पाण्डेय | सौजन्य: QGraphy

श्रुन्खलाबद्ध कहानी ‘आधा इश्क’ की पहली पाँच किश्तें यहाँ पढ़ें:

भाग १| भाग २ |भाग ३| भाग ४|भाग ५|भाग ६|भाग ७ |

प्रस्तुत है इस कथा का आठवां भाग:

आज आखरी पेपर था। परीक्षाएं ख़त्म हो गईं थीं और कॉलेज हमेशा के लिए बंद होने को था, यह सोचकर सारे छात्र मस्ती कर रहे थे। और यहाँ नीरज अपना सामन समेटकर निकल ही रहा था। तभी उसे किसीने पीछे से आवाज़ लगाई।

“प्रीती, तुम?”

“नीरज, कॉलेज ख़त्म हो गया। पर तुम भूल तो नहीं जाओगे न? आगे के लिए तुमने क्या सोचा है?”

“रिज़ल्ट आने तक वही, पीत्ज़ा डिलीवरी, फिर कोई अच्छी-सी नौकरी ढूँढकर मज़े से ज़िन्दगी बिताऊंगा।” नीरज को हँसता देख प्रीती की आँखों में पानी आ गया।

“मैं समझ सकतीं हूँ तुम पर कॉलेज में क्या बीती होगी। मुझे माफ़ करना, मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाई।”

“अरे कोई बात नहीं यार, देख मैं फिर रो दूँगा – ही ही ही!”

“हमेशा खुश रहना नीरज, मैं तुम्हारे लिए दुआ करूँगी।” प्रीती से बात करते-करते नीरज की नज़र संदीप पर गई। वह पूनम के साथ बात कर रहा था।

“प्रीती, दुआ करनी है न, तो बस एक दुआ करना, कि यह दिल संदीप के बिना रह पाए।”

यह सुनकर प्रीती ने नीरज को गले लगाया। “तुम कोंटेक्ट में तो रहोगे न?”

“नहीं… कभी नहीं।” यह कहकर नीरज वहाँ से चला गया।

प्रीती उसे देखते ही रह गई। तभी राकेश वहाँ पहुंचा। “ओये यहाँ क्या कर रही है झल्ली?”

“देख उसे राकेश। अपना सबकुछ लुटाकर, अपने सारे रिश्ते गंवाकर दुनिया का सबसे अमीर इंसान जा रहा है। आज हमारे पास सबकुछ होकर भी हम उसके सामने कितने गरीब लग रहे हैं।”

“तू पागल हो गई है। सुन। अगले हफ्ते गेट-टुगेदर प्लेन किया है, ओके?”

यहाँ नीरज अपने कमरे में पहुँच गया था। ताला खोलने लगा, तो पीछे रस्ते से आवाज़ आई, “बेटा, यहाँ कोई काम मिलेगा? घर का काम? कोई भी काम हो, चलेगा। तुम्हें खाना बनानेवाली चाहिए, या साफ़ सफाई वाली।”

अच्छे कपडे पहने हुए एक औरत खड़ी थी। चहरे से लग रहा था कि वह बहुत दुखी है। शायद रोने की वजह से ही उसकी आँखें सूझ गईं थीं।

“माँ जी आपको काम चाहिए? पर आप तो अच्छे घर की लगती हो।” नीरज ने पूछा।

“अरे क्या बताऊँ… अच्छे घर से हूँ मैं। घर पर खाने की कमी नहीं है। जब बेटे की शादी हुई, वह शहर दिखाने के बहाने यहाँ ले आया। और यहीं छोड़ दिया, हमेशा के लिए।” वह औरत ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी।

“माँ जी मैं आपको पैसे देता हूँ। आप अपने गाँव चले जाना।”

“नहीं, नहीं जाना मुझे वापस। अब मेरा वहाँ कोई नहीं। बस अब यहाँ कोई काम मिल जाए तो मैं रह लूंगी। या फिर कोई वृद्धाश्रम हो तो बता दो। अच्छे घर से हूँ न, भीख मांगने का भी मन नहीं करता। कुछ काम करूंगी, महनत का खाऊँगी तो चैन से सो पाउंगी।”

उनका दर्द देखकर नीरज की भी आँखों में पानी आ गया। “आप मेरे साथ रहेंगी? मैं अकेला रहता हूँ। मेरे पास माँ नहीं है। और अब आपके पास बेटा नहीं है… क्या आप मेरी माँ बनेंगी?”

नीरज की बातें सुनकर वह बूढी औरत उसकी तरफ देखती ही रह गई।

——–

गेट टुगेदर में आज हर कोई खुश था, मज़े ले रहा था। डी.जे., खाना, कपल्स, सबकुछ सही था।

“अरे आज वह अपना छोकरा नहीं आया? नीरज? पार्टी में ऐसे लोगों की ज़रूरत पड़ती है न, “बधाई देने” के लिए।” अविनाश ने जोक मारा और सब हँसने लगे।

“अरे नहीं, आज तो उसे कोई मिल गया होगा। दोनों डांडिया खेल रहे होंगे।” राकेश ने भी बोलने का मौक़ा नहीं गँवाया।

यह सुनकर प्रीती तिलमिला गई: “क्या बकवास कर रहे हो? बंद करो ये सब, बहुत हो गया अब!”

“अरे, तुझे क्या हो गया अचानक से? वह गे है यार… मतलब, गे।” राकेश के चहरे पर भाव बदल गए और उसने एक कलाई ढीली करके गिराते हुए इशारा किया।

“हाँ, गे है तो?”

“तो…देख न… उसे लड़के पसाद हैं… छी!”

“तुझे पता है गे क्या होता है? उसे लड़के क्यों पसंद हैं? इंसान जनम से ही गे होता है या बाद में बनता है?”

“नहीं, मुझे यह सब नहीं पता”, राकेश ने शांत होकर कहा।

“तो जिस चीज़ के बारे में पता नहीं है, उसपर तुम लोग कमेन्ट कैसे कर सकते हो?”

प्रीती की बात को काटते हुए संदीप बोला: “प्रीती, तुम उस लड़के की तरफदारी क्यों करती रहती हो हमेशा?”

“वह भी, जब तुझे मालूम है कि उसने अपने संदीप के साथ क्या किया?” राकेश ने भी संदीप को समर्थन दिया।

“हाँ जानती हूँ, उसने संदीप के साथ क्या किया। इसलिए बोल रहीं, हूँ, वह निर्दोष है। नीरज अगर चाहता, तो आराम से अपनी पहचान छुपा सकता था। उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। पर कभी तुमने यह सोचा है, कि उसने ऐसा क्यों नहीं किया? सिर्फ तुम्हारे लिए, संदीप। तुम्हारी खुशी के लिए उसने खुद के लिए नरक चुना है।” सारे दोस्त शांत होकर सुनने लगे।

“कितने दोस्त हुआ करते थे उसके। आज एक भी नहीं है। क्यों? तुम्हारी वजह से। वह चाहता तो सारी ग़लतफ़हमियाँ वैसी ही रहनी दे सकता था। वैसे भी, कॉलेज ख़त्म होने को आया था। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया संदीप। क्योंकि वह तुम्हारा वाकई सबसे अच्छा दोस्त था। अपने सपने तोड़कर, उसने तुम्हें तुम्हारी खुशियाँ लौटाई हैं। उसने सच्ची दोस्ती निभाई है। काश तुम इस बात को समझ पाते।”

“और रही बात उसकी ग़लतफ़हमियाँ पैदा करने की, उसे तो प्यार हुआ था। तुमसे! इसलिए उसने जो किया सो किया। मगर जब उसे उसकी गलती समझ में आई तो उसने सुधार भी तो दी, है न? और संदीप, २ साल से तुम पूनम के चक्कर लगा रहे हो, उसे प्रोपोज करने वाले हो। लेकिन कभी तुम्हारी हिम्मत नहीं हुई। फिर पूरे कॉलेज के सामने एकदम से प्रोपोज कर दिया। इसकी वजह भी तो कहीं न कहीं नीरज ही था। श्रेय उसी को जाता है।”

“दोस्ती तो उसने निभाई है। सच्ची दोस्ती, सच्चा प्यार। हमने तो सिर्फ दुश्मनी निभाई है उसके साथ। जीना मुश्किल कर दिया था उसका कॉलेज में। उसने अपनी दोस्ती, अपने प्यार को ज्यादा महत्त्व दिया, अपनी पहचान से भी। और हमने उसकी आइडेंटिटी को उसकी दोस्ती से ज़्यादा अहमियत दी। उसका स्वभाव, उसकी मित्रता हमारे लिए छोटी पड़ गई, उसके गे होने की तुलना में।”

“कैसे यार, कैसे? क्या फायदा फिर आज के ज़माने में, सन २०१६ में रहने का? ये बड़ी-बड़ी डिग्रियां हासिल करने का? अगर मुझे कोई दोस्त चुनने को बोले, तो मैं १० स्ट्रेट लोगों को ठुकरा दूँ, उस एक नीरज के लिए।” प्रीती अत्यंत भावुक हो गई थी।

पूनम प्रीती को देखे जा रही थी। और संदीप अब कुछ गंभीरता से सोचने लगा था।

“शायद मुझे नीरज को फोन करना चाहिए।” संदीप ने जैसे ही यह कहा, प्रीती के चहरे पर मुस्कान आ गई। पुनम को अभी भी यकीन नहीं हुआ था।

“नीरज, कहाँ है तू? आज आया क्यों नहीं? मुझे तुमसे कुछ ज़रुरी बात करनी है।” संदीप ने लगे हाथ नीरज को फोन लगाया।

“मैं फिलहाल बाहर-गांव हूँ। मैं रिज़ल्ट वाले दिन आ रहा हूँ, तभी मिलते हैं।” यह कहकर फोन काट दिया नीरज ने। अब संदीप को इंतज़ार था रिज़ल्ट्स का।

क्या होगा नीरज की वापसी पर? क्या प्रीती के शब्द संदीप में सच्चा परिवर्तन लाएंगे? पढ़ें, “आधा इश्क” की किश्त नंबर ९ में!

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