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‘आधा इश्क़’ – एक कहानी (भाग ७/१०)

'आधा इश्क' (भाग ७/१०) | तस्वीर: कार्तिक शर्मा | सौजन्य: QGraphy

‘आधा इश्क’ (भाग ७/१०) | तस्वीर: कार्तिक शर्मा | सौजन्य: QGraphy

श्रुन्खलाबद्ध कहानी ‘आधा इश्क’ की पहली छः किश्तें यहाँ पढ़ें:

भाग १| भाग २ |भाग ३|भाग ४|भाग ५|भाग ६

प्रस्तुत है इस कथा का सातवां भाग:

नीरज दूर से यह सब देखकर हँसने लगा। उसकी आँखों में पानी, पर चहरे पर हँसी थी। वह उन दोनों को बधाई देने के लिए जाने ही वाला था, कि उसने अपने आप को रोक लिया। क्योंकि अब वह समझ गया था, कि उसकर किरदार इस कहानी में अब हमेशा के लिए ख़त्म हो गया है। वह हँसते हुए अपने घर चला गया।

‘खुलासा करने का पेच सफल होगा, क्योंकि वह मैंने अच्छी नीयत के साथ किया है। इसलिए सब दोस्त वैसे ही रहेंगे मेरे साथ, जैसे पहले थे।’ यह सोचकर नीरज दूसरे दिन कॉलेज गया। पर कॉलेज में जाकर उसने कुछ विपरीत ही अनुभव किया। हालात बहुत बदतर हो चुके थे। अब हर कोई उसे टालने की कोशिश में उससे दूर रह रहा था। कोई भी ढंग से पेश नहीं आ रहा था। नीरज को यह समझने में देर नहीं लगी, कि इस सूरतेहाल के पीछे संदीप का हाथ है, और उसीने सबको उसके साथ ऐसा बर्ताव करने के लिए उकसाया है।

क्लास में प्रवेश करके बैठने पर कोई भी उसकी बगल की सीट पर बैठने नहीं आया। फिर स्वयं नीरज एक दोस्त के पास बैठने ही वाला था, तब उसने टोका: “रुक बे, एक शर्त पर बैठने मिलेगा। मेरा ‘चोकोबार’ चूसना होगा!” यह कहकर दोस्त जोर-जोर से हँसने लगा। यह घिन्न पैदा करनेवाली बात सुनकर नीरज उठकर और कहीं बैठने के लिए यहाँ-वहाँ गया, तो कोई उसे अपनी बगल में बिठाने के लिए राजी नहीं था। बालाखिर वह क्लास की सबसे पीछे की पंक्ति में अकेले बैठ गया। उसकी नज़र ब्लैकबोर्ड की तरफ गई। वह सुन्न-सा रह गया। वहाँ चाक से बड़े अक्षरों में लिखा था: “१२३४५६७”, फोन करो, मैं चूसता हूँ।”

नीरज ने अपने आप पर काबू रखकर किसी तरह क्लास को ख़त्म किया और चला गया। अब उसके साथ ऎसी ही अभद्र हरकतें होने लगी। कोई उससे बात मात्र नहीं करता। आते-जाते समय गलती से भी वह किसी को छूता तो कोई न कोई उसे कुछ अश्लील बोलता था।

कैंटीन में एक बार नीरज अकेले बैठकर खाना खा रहा था। तो प्रीती उसके पास जाकर बैठ गई। “तुम्हें यहाँ नहीं बैठना चाहिए”, नीरज ने खिन्न होकर प्रीती से कहा। “मुझे गेज़ से कोई प्रॉब्लम नहीं है। कोई समलैंगिक अगर तेरे जैसा प्यारा हो तो मैं तो उनका सामान ही करूंगी”, प्रीती ने उसे दृढ़ता से उत्तर दिया।

“ओय प्रीती, तू भी लेस्बियन है क्या जो उस हिजड़े के पास जाकर बैठी है? मनोज ने नीरज को चिडाने के उद्देश्य से प्रीती की दिशा में चिल्लाकर कहा।

“प्रीती, तुम प्लीज़ यहाँ से जाओ। मेरी वजह से तुम्हें अनाप-शनाप बातें सुननी पड़ेंगी । तुझे बहुत सिरदर्द होगा। तुझे मेरी क़सम। यहाँ से चली जा।“, नीरज ने हताश होकर कहा। प्रीटी वहाँ से उठकर चली गई।

नीरज की ज़िंदगी अब फिर से पूर्ववत नीरस हो गई थी। अकेले शांत रहना, कोई दोस्त नहीं रहना। कॉलेज के बाद जॉब और पढ़ाई, बस। किन्तु संदीप और पूनम को एक साथ खुश देखकर वह यह सब भूल जाता था। अब वह सिर्फ इस इंतज़ार में था, कि कब कॉलेज ख़त्म हो जाए, ताकि यह सबकुछ हमेशा के लिए पीछे छूट जाए।

कैसे बदलेगी नीरज की ज़िन्दगी? पढ़े ‘आधा इश्क़’ की आठवीं किश्त में!

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