श्रुन्खलाबद्ध कहानी ‘आधा इश्क’ की पहली चार किश्तें यहाँ पढ़ें:
प्रस्तुत है इस कथा का पाँचवा भाग:
“नीरज, तुम बताओ तो क्या हुआ है? ऐसी क्या तकलीफ है, कि तुम अपने घरवालों से दूर रहते हो? हुआ क्या है, बताओगे तो दिल हल्का हो जाएगा।” पूनम नीरज को समझा ही रही थी, कि उसे गले लगते देख संदीप वहाँ भागते हुए आ गया।
“यह सब क्या हो रहा है यहाँ, हाँ? गुटर गू?” संदीप ने जान-बूझकर चिढाते हुए कहा। उसकी यह टिपण्णी सुनकर नीरज उठकर वहाँ से चला गया।
“सैंडी, पागल हो क्या? परिस्थिति कभी समझ में ही नहीं आती तुम्हारे। कभी कुछ, तो कभी कुछ बोल देते हो। बेकार कहीं के।” यह कहकर पूनम भी वहाँ से चली गई।
“अरे अब मुझे क्या पता था कि नीरज रो रहा था? हुआ क्या, बता तो?” संदीप पूनम के पीछे चिल्लाते हुए जा रहा था मगर पूनम उसकी एक बात सुन नहीं रही थी।
“नीरज, क्या हुआ था तुझे कल? तू क्यों रो रहा था? बता न, प्लीज़?” संदीप ने अगले दिन कॉलेज में आते ही नीरज से पूछा।
“कल? अरे कुछ नहीं, बस घर से दूर रहकर पक गया था, और कुछ नहीं।”
“सच में न? चलो ठीक है, और इसे देख! पता नहीं यह पागल पूनम मुझे क्या क्या बोल गई।”
“अरे हटो, जो मैंने कहा था वह सच्चाई ही थी। तू है ही निकम्मा, कुछ समझता ही नहीं”, पूनम गुस्सा करते हुए बोली।
“अच्छा, मैं कुछ नहीं समझता। क्या समझना चाहिए मुझे? बता तो?”, संदीप ने शरारती अंदाज़ में पूनम से पूछा।
“कुछ नहीं, अब तो समझने वाले को इशारा काफी होता है।” पूनम भी जवाब देने में कोई कसर नहीं छोड़ रही थी।
“मैं पानी भरकर आता हूँ”, कहकर नीरज वहाँ से निकल गया। संदीप और पूनम की बढती नज़दीकियाँ देखकर वह अन्दर ही अन्दर जल रहा था।
“पूनम को सैंडी के साथ देखकर मुझे इतना गुस्सा क्यों आता है? कहीं मुझे प्यार तो नहीं हुआ है न?” नीरज मन ही मन सोच रहा था। “हाँ, यहीं तो प्यार है। इसलिए इन दोनों को एक साथ देखकर मैं इतना तिलमिला जाता हूँ। तो बा मैं इन दोनों को एक साथ होने ही नहीं दूँगा।”
नीरज ने अब सोच लिया था कि वह संदीप और पूनम के बीच झगडे लगवाकर उन्हें अलग कर देगा, ताकि उसे सुकून मिले, और वह खुद अपनी किस्मत आज़मा सके। वह पूनम के करीब जाने लगा। उसकी तकलीफों की वजह से पूनम के दिल में उसके लिए चिंता तो थी ही। उसी बात का फायदा लेते हुए नीरज अब पूनम का करीबी दोस्त बन गया। देखते ही देखते, अब पूनम की सारी बातें नीरज को पता रहती थी। हर जगह दोनों एक साथ दिखते थे। मानो संदीप फ्रेम से ‘आउट’ और नीरज फ्रेम में ‘इन’।
दोनों की दोस्ती के चर्चे पूरी कक्षा में होने लगे। और उड़ते-उड़ते अफवाहें संदीप तक भी पहुँच गयीं। लेकिन संदीप को नीरज और पूनम पर भरोसा था। इसलिए उसने कभी दोनों पर शक नहीं किया। फिर भी, जहाँ-तहाँ इन्हीं बातों का ज़िक्र होने की वजह से अब उसके दिल में भी शक़ पैदा होने लगा था। इसी संदेह के सुलगते काठकोयले को नीरज ने एक दिन हवा दे दी और चिंगारी को आग में परिवर्तित कर दिया।
“काश इस बैग की जगह किसी का चहरा होता तो मैं चूम लेता। ऐसा कहा था न तुमने किसो को, अकेले में!” नीरज ने जान-बूझकर संदीप के सामने विषय खोला।
“यह बात तो मैंने पूनम से कही थी, तुझे कैसे पता?”
“पूनम ने ही बताया था मुझे। तुझे पता है न, हम बेस्ट फ्रेंड्स हैं? वह मुझे सब कुछ बताती है।”
“पागल है क्या वह? हमारी पर्सनल बातें तुझे बताती है?”
“हाँ! तुम दोनों क्या-क्या बातें करते हो, कहाँ-कहाँ मिलते हो, मुझे सब पता होता है। वह बता देती है, उसने कहा था कि तू बहुत पकाता है। इस बात की पुष्ठी करने के हेतु उसने मुझे सारी कहानी बताई… ही ही ही!”
“क्या? मैं पकाता हूँ?! वह खुद कॉल करती है मुझे। और मेरे बारे में ऐसा बोलती है?”
“अरे देख तो! मैंने उसे बोला, कि यार तुम दोनों इतने अच्छे दोस्त हो। फिर भी ऐसे कैसे? तो मुझे कहती है, ‘वह मेरे लिए इतना अहम नहीं है’।”
“वाह क्या बात है। बड़ी ही कमीनी निकली। उसे बताता हूँ मैं अब।”
“अरे देख यार, प्लीज़ मेरा नाम मत लेना। मैंने तुझे बता दिया क्योंकि मैं यह नहीं एख सकता कि तू ऎसी लड़की के पीछे भागे जो तुझे भाव नहीं देती। आखिर तू मेरा सबसे अच्छा दोस्त है यार।”
“अरे नहीं पागल, मैं तेरा नाम क्यों आने दूँगा बीच में? तूने तो मेरी मदद की है। पर फिर भी मुझे यकीन नहीं हो रहा… एक बार मुझे उससे बात करनी पड़ेगी।”
“साबुत दिखाऊं? यह टेडी याद है न? यह मुझे पूनम ने तोहफे में दिया था।”
“ओह-एम्-जी, यह टेडी तो मैंने उसे उसके जन्मदिन पर भेंट में दिया था। संदीप का गुस्सा बढ़ते देख नीरज खुश हो रहा था।
फिर नीरज गया पूनम के पास।
“पूनम, यार, देख। कल रक्षाबंधन है तो तुम मुझे कल कॉलेज में राखी बाँध देना”।
“राखी? अचानक क्यों? अब तू मेरा भाई बनना चाहता है क्या?”
“मैं तो हमेशा की तरह तुम्हारा बेस्ट फ्रेंड ही बनकर रहना चाहता हूँ। लेकिन कॉलेज में हर कोई फुसफुसाता है इन दोनों का कुछ चल रहा है। और अब तो…”
“अब तो क्या?” पूनम ध्यान देकर सुन रही थी।
“अब तो संदीप को भी लगता ही, कि हम दोनों के बीच कुछ चल रहा है। पर मैं, मेरी वजह से तुम दोनों के बीच कोई मसला खडा नहीं करना चाहता। इसलिए।”
“सैंडी भी ऐसा सोचता है?उसे भी भरोसा नहीं?और प्लीज़ हाँ, मतलब उसका शक दूर करने के लिए हम दोनों ज़बरदस्ती भाई-बहन बन जाएँ? मैं नहीं करूंगी ऐसा। और फिर मुझे ऐसा बॉयफ्रेंड नहीं चाहिए जो मुझपर विशवास न करे।”
पूनम की बातें सुनकर नीरज खुश हुआ और इंतज़ार करने लगा कल का… राखी के त्यौहार का!
क्या नीरज की लगाईं आग संदीप और पूनम के रिश्ते को जला देगी? पढ़िए श्रुन्खलाबद्ध कहानी ‘आधा इश्क’ की छटवी किश्त में!