इस अंक की थीम है सीमाएँ।
मुझे बेहद ख़ुशी है गेलेक्सी हिंदी के इस अंक में पहली बार पाकिस्तान से लेख प्रकाशित होने की! लाहौर निवासी हादी हुसैन की श्रृंखलाबद्ध कहानी, “ज़ीरो लाईन – एक पाक-भारत प्रेम कथा” का आग़ाज़ हम इस अंक से करते हैं। यह कहानी ५ भागों में जून से अक्टूबर तक पेश की जायेगी। आपके दिलो दिमाग में हमारी जनवरी से मई तक चली ५ कड़ियों की श्रृंखलाबद्ध कथा “आदित्य” की याद ताज़ा ही होगी। हादी से कहानी लिखवाने की कहानी अपने आप में बड़ी रोचक है। जब हमने यह कथा करने की ठानी, तो हिंदी और उर्दू के मसले का अभिनव उपाय ढूँढा। मुझे उर्दू लिखनी और पढ़नी आती है, लेकिन मैं हादी को उर्दू में टाइप करने की ज़हमत नहीं होने देना चाहता था। अतः मेरे कहने पर पहले हादी ने रोमन लिपि में मुझे कथा का पहला हिस्सा भेजा। फिर मैंने उसे पढ़कर हादी को वॉट्स ऍप पर ऑडियो फाइलो के रूप में भेजा। मेरे उर्दू शब्दों के उच्चारण पर बेचारे हादी हँस-हँस के बेहाल हो गए! फिर उन्होनें कथा का पुनर्लेखन करके वॉट्स ऍप के ज़रिये मुझे ऑडियो फाईलें भेजी और आखिरकार मैंने उसे सुनकर, रोमन लिपि में लिखी उर्दू पढ़कर उसे देवनागरी लिपि में उतारा। मैंने उनका एक भी लफ्ज़ नहीं बदला – सबकुछ ज्यूँ का त्यूँ है।
सीमाओं का भान श्रीनगर के करीम नानवुर की कविता “हिज्र” में भी होता है। तक़सीम का दर्द, जैसे चाँद का बँटवारा। मिलन, अखंडता की खोई जा रही आस, चंद शब्दों में आधे चाँद के रूपक के ज़रिये करीम ने बहुत ताक़तवर जज़्बे से हमें परिचित कराया और सोचने पर मजबूर किया है।
ऋषिकेश कुलकर्णी का विश्लेषणात्मक लेख “राजनैतिक समर्थन, समलैंगिकता और राष्ट्रप्रेम” उस दुविधा को रोचक शैली में प्रतिबिंबित करता है, जो समुदाय के अनेक सदस्यों ने चुनाव अभियान के दौरान और नतीजों के बाद महसूस किया। ऋषिकेश ने इन तीन संकल्पनाओं द्वारा मौजूदा सूरतेहाल में परस्पर-निर्भरता की अनिवार्यता को अधोरेखित किया है। क्या विचारधाराओं की सीमाओं को लाँघना महज़ व्यवहारवाद (प्रैग्मैटिज़म) है? सिद्धांतों के साथ विश्वासघात? या फिर प्रासंगिक, उपयोगी बनने और विकसित होने की चाह?
उसी प्रकार, मुझे बड़ा आनंद हो रहा है, गेलेक्सी हिंदी के पहले तस्वीरी मज़मून (फोटो एसे) को पेश करने में। बांग्लादेशी छायाचित्रकार नफ़ीस अहमद ग़ाज़ी के चित्रों में भी सीमाएँ अहम किरदार निभाती हैं। क्योंकि उनकी तस्वीरें वह प्यार दर्शाती हैं, उस तर्ज़-ए-ज़िन्दगी का तफ़सील करती हैं जो समाज निर्देशित दायरों और सरहदों से बाहर है। उनके छायाचित्र हम पेश करेंगे ४ कड़ियों के फोटो ऐसे (तस्वीरी मज़मून) “कुदरती शनाख्त (भाग १)” में, जून से सितम्बर के अंक तक।
“जीने की राह, जीना की” में अक्षत शर्मा हमें जीना रोसेरो नामक ट्रांसजेंडर की प्रेरणादायी कहानी बताते हैं। यश के शिखर पर, सब के सामने जीना ने अपना छुपे हुए और दिल दहलानेवाले सच का सामना किया। १७ मई २०१४ को मनाए गए ‘आइडाहॉट’ (होमोफोबिया और ट्रांस्फोबिया के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय दिवस) के उपलक्ष्य में दुनिया के १२० देशों में हुए कार्यक्रमों के साथ हम समैक्य महसूस करते हैं।
इसके बाद रुख करते हैं २ विडियोज पर, जो पिछले महीने रिलीज़ हुईं।“संयुक्त राष्ट्र की स्वागतार्ह पहल” में ‘द वेलकम’ इस बॉलीवुड शैली के समलैंगिक संबंधों की स्वीकृति का सन्देश दिया गया है। किन किन मुद्दों पर इसकी प्रशंसा और आलोचना हुई है, यह जानना दिलचस्प है, और एल.जी.बी.टी.आई.क्यू. समुदाय को अपने निरूपण से क्या अपेक्षित है, और क्या किसी निर्देशक को विभिन्न रायों मद्देनज़र रखकर निर्णय लेने चाहिए, यह सोचने की बात है। दूसरा लेख “कुर्सी की पेटी, बाँध लो बेटी” में ‘सीटबेल्ट क्रू’ नामक हिजड़ों का समूह, लाल सिग्नल पर ठहरे वाहन चालकों को सीटबेल्ट पहनने का अविस्मरणीय सबक देते हैं. हवाई केबिन कर्मचारियों के गणवेश में वे उसी जगह आते हैं, जहाँ अन्य लोगों को उन्हें पैसे मांगते हुए देखने की आदत है. साधारणतः सौदा होता है दुआओं और पैसों का – लेकिन आज सौदा होगा सुरक्षा और दुआओं का. कितनी सुन्दर संकल्पना है, और कितना सहज उसका कार्यान्वयन!
आशा है आपको यह अंक पसंद आएगा। आपके लेखों, आपकी राय और कविताओं का हमें इंतज़ार रहेगा, editor.hindi@gaylaxymag.com इस पते पर। लिखना न भूलें!
आपका नम्र,
सचिन जैन
सम्पादक, गेलैक्सी हिंदी
- “Those Left Behind Things” – an ode to queer refugees - February 1, 2019
- Twilight, The Day Before - September 5, 2018
- “बुज़ुर्ग हैं, क्षीण नहीं” – “सीनेजर्स” वयस्क सम/उभय/अ लैंगिक पुरुषों का प्रेरणादायक संगठन - January 22, 2018