इस अंक की थीम है सहिष्णुता।
सहिष्णुता के अनेक पहलू हैं। पहला है क्षमाशीलता और सहानुभूति। भारत के समलैंगिक इतिहास पर अनेक अभ्यासपूर्ण किताबों की लेखिका और अनुवादक रुथ वनिताजी का लेख ‘श्री श्री रवि शंकर’ बनाम ‘बाबा रामदेव’ पढ़ें। एक तरफ समलैंगिकता को शारीरिक और मानसिक रूप से बीमारी मानकर बाबा रामदेव ने समलैंगिक को दंडनीय गुह्गार माना है। तो दूसरी तरफ हिन्दू दर्शन में तृतीय प्रकृति के अस्तित्व पर मपनी श्री श्री रवि शंकर की राय में इस प्रेम की दिव्यता को स्वीकृत किया गया है। ‘एक ज़हनी सवाल’ में ‘ज़हन’ और ‘लेबिया’ इन नारीवादी संस्थाओं के मुंबई के ट्रेन स्टेशनों पर ३७७ के मुद्दे पर लोगों को जानकारी देने के एक अभिनव प्रयास के बारे में जानें। भोपाल में विभिन्न संस्थाओं ने एकजुट होकर ‘भोपाल विरुद्ध ३७७’ कार्यक्रम का आयोजन किया, और भारतीय संविधान का उल्लंघन करनेवाली ताक़तों के खिलाफ नारा देकर, अन्य उत्पीड़ित गुटों के प्रति सहानुभूति जताई। इसके बारे में मध्य प्रदेश महिला मंच की माहीन मिर्ज़ा और रिनचिन से मुलाक़ात पढ़ें।
सहिष्णुता का दूसरा पहलू है बर्दाश्त करने की क्षमता। २८ जनवरी २०१४ को भारतीय उच्चतम न्यायलय ने केंद्र सरकार और कुछ संस्थाओं द्वारा पेश रिव्यु याचिका को महज़ ४ वाक्यों में खारिज किया। करोड़ों लैंगिकता अल्पसंख्यकों की आशाएँ इस याचिका पर टिकी थीं। वह आशा की छोटी-सी किरण भी अब आँखों से ओझल हो गयी है। इतना सबकुछ होने के बाद भी एल.जी.बी.टी.आई. समाज ने विनीत भाव से अपना रास्ता आगे की तरफ तय किया है। निराशा है, उद्रेक भी, लेकिन लोगों के आत्म-विश्वास में कोई कमी नहीं आयी। “सत्यमेव जयते” इस भारतीय नीति-वाक्य पर अगर किसी समुदाय ने अपनी सोच, अपने वचन और अपने आचरण के ज़रिए मिसाल दी है, तो वह भारत की क्वीयर कम्युनिटी होगी। शालीन राकेश अपनी कविता “हैलो ३७७” में धारा ३७७ से बातचीत करते हैं, और उसे अचरज जताते हैं, कि १५० साल से चली आ रही उसकी नफरत भी प्यार को क़ाबू करने में कम पड़ गयी।
तीसरा पहलू है दृढ़ता। बिंदुमाधव खिरे का लेख “यौन विज्ञान शिक्षा और यौनिकता” उल्लेखनीय है। ‘ओपनली गे’ समपथिक ट्रस्ट के संचालक बिंदुमाधव को यह अहसास हुआ, कि अगर हमें ‘एल-जी-बी-टी-आई’ विषयों पर समग्र दृष्टिकोण रखने वाले वयस्क चाहिए, तो हमें किशोरों को यौन विज्ञान शिक्षा प्रदान करना अनिवार्य है, ताकि उन्हें अज्ञान और गलतफहमियों से बचाया जा सके। हाल में रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘डेढ़ इश्क़िया’ में भी मुनीरा और बेगम पारो की दृढ़ता नज़र आयी। पितृसत्ता के दायरों को तोड़कर अपने प्यार की नई दुनिया रचाने की, और हम ‘डेढ़ इश्क़िया’ के रिव्यू में इस फ़िल्म के २ स्त्रियों के बीच के प्यार को पेश करने के अनूठे तरीक़े का विश्लेषण करते हैं। इन आलेखों के अलावा पढ़िए हमारी शृंखलाबद्ध कहानी ‘आदित्य’ की अगली कड़ी।
आखिर में मैं इस लेख के साथ प्रस्तुत तस्वीर को चुनने की वजह बताना चाहूँगा। यह तस्वीर मेरे लिए सहिष्णुता की भावना का प्रतीक है। मुंबई के क्वियर आज़ादी प्राइड परेड २०१४ में ५००० लोगों ने शिद्दत के साथ अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई। भारत के पश्चिमी कोने के ताक़तवर मुम्बइं में प्राइड बड़े पैमाने पर २० इवेंट्स के साथ १ महीने से ज़यादा समय के लिए मनाया गया। लेकिन भारत के पूर्वी छोर पर गौहाटी में प्राईड अभी वहाँ के कार्यकर्ताओं की आँखों में एक सपना है। लौ से लौ जलाने से ही रौशनी होगी, और हम अँधेरा दूर भगा पाएँगे। यही सहिष्णुता की भावना इस संघर्ष की खूबसूरती है।
सचिन जैन
०१ फरवरी २०१४, मुंबई
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