हम नहीं हैं अपराधी! तस्वीर: बृजेश सुकुमारन

Hindi

सम्पादकीय १ (जनवरी ०१, २०१४)

By Sachin Jain

January 01, 2014

नमस्कार! नए साल २०१४ के पहले दिन गैलेक्सी के हिंदी संस्करण – भारत के पहले लैंगिकता अल्पसंख्यकों के हिंदी मासिक का विमोचन करते हुए हमें बहुत ख़ुशी हो रही है।

भारत में समलैंगिक संबंधों के अपराधीकरण को क़ायम रखने की राय रखनेवाले अक्सर कहते हैं, कि समलैंगिकता पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव का नतीजा है। वित्तीय उदारीकरण, वैश्वीकरण और आधुनिकीकरण से इसका ताल्लुक है। कुछ लोगों ने तो सैटेलाईट टीवी और कुछ ने इन्टरनेट को ज़िम्मेदार ठहराया!

सच तो यह है कि सभ्यता के उषःकाल से एल-जी-बी-टी-आई (लेस्बियन-गे-बाइसेक्शुअल-ट्रांसजेंडर-इंटरसेक्स) समुदाय समाज का अभिन्न अंग रहा है। दुनिया भर में समलैंगिकों ने विज्ञान, कला, साहित्य, तत्त्वज्ञान और अनेक अन्य क्षेत्रों में कमाल का योगदान दिया है। लेकिन इतिहास इस बात का गवाह है कि उनपर सत्तारूढ़ ताकतों ने कई बार और कई तरीकों से ज़ुल्म किये हैं।

अंग्रेज़ शासन के दौरान १८६० में भारतीय दंड संहिता की धारा ३७७ द्वारा ‘अनैसर्गिक’ यौन संबंधों का अपराधीकरण हुआ था जो आज तक चल रहा है। परिणामतः भारत में समलैंगिक समाज डर, शर्म और गोपनीयता की वजह से लगभग अदृश्य रहा है। उसे तुच्छ और महत्त्वहीन समझा गया है। लेकिन पिछले २-३ दशकों में इस समाज ने अपनी आवाज़ उठाने की हिम्मत जुटाई और अपने बुनियादी मानव अधिकारों के लिए संघर्ष करना शुरू किया। अपराधीकरण के लगभग १५० साल बाद, २००९ में जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक ‘नाज़ जजमेंट’ पारित किया तो देश के एल-जी-बी-टी-आई समाज को ये महसूस हुआ के उनके अस्तित्व की मान्यता और पुष्टि इतने बड़े स्तर पर पहली बार हुई है। इसी मसले पर भारत के उच्चतम न्यायलय के निर्णय का इंतज़ार हो रहा था। एक आशा की किरण दिखाई दी थी – क्या इस अपराधीकरण की लम्बी रात का अंत होगा? क्या जल्द ही सूर्योदय होगा, जो गुनहगारी के अँधेरे को दूर भगाएगा? जो प्रतिष्ठा की नयी सुबह का अग्रदूत होगा? इस विचार से इस समाज में नई क्रांति का संचार हुआ था। मगर ११ दिसंबर २०१३ को इस समुदाय का पुनः अपराधीकरण हुआ, और पूरे देश में संघर्ष और उद्रेक की ज्वाला भड़क उठी।

इस पार्श्वभूमी के बावजूद लैंगिकता-अल्पसंख्यकों की आत्म-अभिव्यक्ति में स्वागतार्ह वृद्धि हुई। खासकर उच्चतम न्यायलय के निर्णय के बाद भारत की विभिन्न भाषाओँ में भी समलैंगिकता, समलैंगिक अधिकारों और समलैंगिक जीवन अनुभव के बारे में समृद्ध, वैविध्यतापूर्ण और गहरी बहस शुरू हुई है – चाहे वे अखबार के लेख, चर्चासत्र, फिल्में, टी.वी. पर कार्यक्रम, किताबें या इन्टरनेट पर सोशल मिडिया क्यों न हों। उसी अभिव्यक्ति को बढ़ावा देने के हेतु गैलेक्सी का हिंदी संस्करण एक छोटासा और विनम्र प्रयास है।

आज भारत की १२१ करोड़ लोकसंख्या में ४०% से ज़यादा लोगों की मातृभाषा हिंदी या उसकी बोलियाँ और उपभाषाएँ हैं। हम चाहते हैं कि गेलैक्सी का हिंदी संस्करण, इस विशाल समाज के लैंगिकता अल्पसंख्यकों और उनके सहयोगियों के लिए, अपने विचारों और अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए एक बेहतरीन मंच बनेगा। जहां हम हमारी विभिन्नता का उत्सव मनाएं, और साथ-साथ हमारे संघर्ष की एकजुटता और परस्पर निर्भरता को अधोरेखित करें।

गेलैक्सी हिंदी का उदघाटन करनेवाले इस अंक का विषय है ‘संघर्ष’। संघर्ष अपने अस्तित्व की गरिमा के लिए, अपने अधिकारों की लड़ाई को मानव अधिकारों की लड़ाई में विलीन करने के लिए। लेकिन संघर्ष को प्रकट करने के तरीक़े भी कितने अभिनव और परिवर्तनात्मक हो सकते हैं! आपकी राय और सुझावों को जानने के लिए हम उत्सुक हैं। धन्यवाद, और एक बार फिर, सुस्वागतम!

सचिन जैन

मुंबई, १ जनवरी, २०१४

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