कहानी ‘वह थोडा अलग था’ का पहला भाग यहाँ पढ़ें। प्रस्तुत है भाग २:
नौवीं की पढाई पूरी हुयी तो हम लोग दसवीं में आ गये। मोहन और मानसी अब भी मेरे साथ ही पढते थे। जुलाई अगस्त का महीना गर्मी और बरसात से मिला–जुला था। मैं अपने घर की छत पर सोता था। एक दिन मोहन ने मुझसे अचानक कहा, ‘‘यार मैं भी तेरे साथ तेरी छत पर सोऊँ तो कैसा रहे?”
मुझे ज्यादा आपत्ति तो नहीं थी लेकिन उसकी हरकतों को याद कर मैं उससे बोला, ‘‘एक ही शर्त पर तू मेरे साथ सो सकता है, अगर तू अपनी उल्टी–सीधी हरकतें न करे। जिस दिन तूने ऐसा किया उस दिन तुझे रात में ही यहाँ से भगा दूँगा।‘‘ मोहन खुशी से उछलता हुआ बोला, ‘‘ठीक है यार! नहीं करूंगा ऐसा कुछ।“
उसी दिन शाम के बाद मोहन मेरे घर आ धमका। गांव में ये सब आम बात होती है। अक्सर लोग एक-दूसरे की छत पर सो जाते हैं। पूरे गांव के बूढे लोंगो की बैठक एक ही जगह पर होती है। सारे गांव के क्वारे लडके एक-दूसरे की छतों पर सो जाते हैं। मेरे घर में भी किसी को इस बात पर कोई आश्चर्य न हुआ। मैं और मोहन छत पर जा लेट गये।
वो मेरे पास लेटते ही मुझसे चिपक गया। मुझे किसी से चिपक कर सोने की आदत नहीं थी। इसीलिये मैं घर में सबसे अलग सोता था। मैंने उसे खुद से अलग करते हुए कहा, ‘‘मोहन तुझे मेरे पास सोना है तो मुझसे चिपक कर मत सोया कर।” मोहन विवश हो मुझसे अलग हो गया और बोला, ‘‘यार तेरी हर बात में कोई न कोई शर्त होती है, ले अलग हो गया। बस खुश।”
मैं उसकी इस बात पर कुछ न बोला, लेकिन मुझे मोहन पर थोडा तरस आ रहा था। उसकी हरकतें एकदम बच्चों जैसी लगती थीं। कुछ देर बाद मुझे ये सब सोचते–सोचते नींद आ गयी। जब सुबह उठा तो देखा कि मोहन मुझसे ऐसा लिपटा पडा था मानो मैं उसे छोडकर कहीं भाग जाऊँगा। या जैसे वो मेरा प्रेमी हो और मैं उसकी प्रेमिका या फिर वो मेरा पति और में उसकी पत्नी।
मैंने उसे अपने से अलग किया तो वह उठकर बैठ गया और मेरी तरफ देखकर मुस्कुरा उठा। मैंने उससे बिना कुछ कहे छत से नीचे की ओर रूख किया। वो भी छत से उतर अपने घर की ओर चला गया। क्लास में फिर सब वही रूटीन था जो पहले से चला आ रहा था। अब रोज मोहन मेरे पास ही सोता था, और वही उसका कसकर लिपट कर सोना। लेकिन वो मुझसे तभी लिपटता था जब मैं सो जाता था।
लेकिन एक रात उसने हद ही पार कर दी। रात तो थी लेकिन सुबह से एकाध घण्टे पहले का वक्त था। मेरी नींद तब खुली जब मेरे शरीर पर किसी का हाथ मेरे अन्दर सिहरन पैदा कर रहा था। जब मैने आँख खोलकर खुद को देखा तो पता चला कि मोहन मुझे जकडे पडा है और उसका मुँह मुझे चूम रहा है जबकि उसका एक हाथ मेरे अन्डरवीयर में गति कर रहा है।
जैसे ही मुझे इस सब का एहसास हुआ तो मैं एक झटके के साथ उठकर बैठ गया। अधखुली नींद में मुझे कुछ सूझा तो नहीं लेकिन मेरा सारा शरीर काँप रहा था। मैं फटी आँखों से मोहन को मुस्कुराते हुये देख रहा था। मुझे जैसे–जैसे होश आया वैसे–वैसे मेरा पारा बढता गया। मुझे मोहन को देख कर घिन आ रही थी।
मेरा गुस्सा ज्यादा तब बढा जब मेरी आखों से नींदपना गायब हुआ और मैंने मोहन की आँखों में देखा। उसकी आँखों में कुछ अजीब–सा था। वो मुस्कुराते हुए मुझे ऐसी मादक नज़रों से देख रहा था मानो मैं उसके लिये एक लडकी होऊँ। मुझसे वो मादक नज़रें ज्यादा देर न सही गयीं। मैंने उसके पास जा उसके गाल पर एक जोरदार थप्पड रशीद कर दिया।
थप्पड के पडते ही मानो वो नींद से जाग उठा। अपने गाल पर हाथ रखकर हक्का–बक्का हो मुझे देखने लगा। जैसे इतनी बडी हरकत करने के बाद भी उसे मुझसे ये उम्मीद नहीं थी। मैंने अपने गुस्से को काबू करते हुये मिसी हुई आवाज में मोहन से कहा, ‘‘आज के बाद तू मेरे पास सोने मत आ जाना, नहीं तो लातों से पीट–पीटकर भगाऊँगा तुझे। शर्म नही आती तुझे ऐसी हरकत करते हुये, बेशर्म कहीं का।”
इतना कहते हुए मैं छत से नीचे चला गया और कमरे में जाकर सो गया। काफी देर बाद मुझे मोहन के कदमों की आहट से उसके जाने का पता चला। उस दिन जब मैं कॉलेज के लिये निकला तो मोहन रास्ते पर मेरा इंतजार करते हुए मिला। उसके इस कदम से मुझे लगा जैसे उसने कुछ किया ही नही है। लेकिन मैं उससे बोला नही। उसने मुझसे कई बार बात करने की कोशिश की लेकिन मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
क्लास में भी मेरी यही स्थिति रही। मोहन बहुत बैचेन हो उठा था मेरे इस कदम से, बैचेनी तो इस कारण मुझे भी थी। ये पहली बार ऐसा था जब मेरे और मोहन के बीच में ऐसी स्थिति आ बनी थी। लंच के वक्त मैं कॉलेज के मैदान में पड़ी बैंच पर जा बैठा। मेरे पीछे–पीछे मोहन भी आ पहुँचा। उसने मेरे पास आते ही गिडगिडाते हुये कहा, ‘‘श्याम यार मुझे माफ कर दे न यार, मैं सच कहता हूँ आगे से ऐसी गलती नहीं होगी। भगवान कसम।”
मैं कुछ गुस्से से कहता उससे पहले ही मानसी वहाँ आ पहुँची। आते ही मुझसे बोली, ‘‘आज क्या कर दिया मोहन ने जो इतने गुस्से में बैठे हो, यार तुम बात–बात पर रूठ जाते हो। सच में इतना तो लडकियां भी नाराज नही होंती।” मैंने मानसी की ओर तीखी नजरों से देखते हुये कहा, ‘‘अगर मेरी जगह तुम होतीं तो इस बेशर्म से कभी बात ही न करतीं। तुम्हें पता है…।”
मैं बात पूरी कर पाता उससे पहले ही मोहन ने टोक दिया, ‘‘अरे छोड न उस बात को यार, मैं माफी मांग रहा हूँ न।” मोहन ने मुझे इसलिये टोका था जिससे उसकी रात वाली हरकत मानसी को न बता दूँ, लेकिन मैं तो वैसे भी वो बात उसे न बताता। मानसी मोहन को समझाते हुये बोली, ‘‘मोहन तुम क्यों ऐसी हरकतें करते हो, जबकि तुम्हें पता है कि श्याम को इन बातों से चिढ होती है। अब तुम थोडी देर के लिये यहाँ से जाओ, मैं श्याम को समझाती हूँ।”
मोहन विवश हो वहाँ से चल तो दिया लेकिन इशारों में मुझे माफी मांग कहता भी गया कि मैं उसे रात की बात न बताऊँ। उसके जाते ही मानसी ने मुझसे सवाल किया, ‘‘क्या किया मोहन ने जो बताने की मना कर रहा था।” मैं क्या बताता मानसी को? कभी ठीक से उसके सामने ‘आई लव यू’ तो बोल न सका था फिर इतनी छिछोरी बात कैसे बताता?
क्या श्याम मानसी को मोहन के बर्ताव का सच बताएगा? पढ़िए, “वो थोडा अलग था” कहानी की तीसरी और आखरी किश्त में!