बात उस समय की है जब में नौ साल का था। जहाँ बचपन से ही हमेशा मेरे साथ के सारे दोस्त व भाई क्रिकेट व फुटबॉल खेलने के लिए हमेशा तैयार रहते थे वहीँ मेरा मन अपनी बहनों के साथ गुड़िया गुड्डो से खेलने का करता था।बस यही वह समय था जब मेरी दुविधा मेरे शरीर और मेरे मन को लेकर बढती जा रही थी तथा मैं अपनी पसंद और नापसंद को और लड़कों से अलग महसूस कर रहा था।
मुझे आज भी याद है। स्कूल में न सिर्फ मैं एक हँसी का पात्र था, बल्कि अपने ही दोस्तों और अन्य लड़कों द्वारा मुझे अलग अलग नाम से पहचान दी जाती थी, तथा कई तरीकों से मेरा मज़ाक बनाया जाता था। अपनी इस हँसी से बचने के लिए मुझे एक अभिनय का सहारा लेना पड़ता था, जिससे मैं अपने आपको ही एक कैदी सा महसूस करने लगा था, तथा अपनी खुद की ही पहचान को लेकर और दुविधा था।
फिर भी स्कूल जाना इसलिए पसंद था, क्योंकि मेरी ही क्लास में मेरा एक बहुत अच्छा दोस्त था, जिससे मिलकर मैं बहुत खुश होता था और उसकी तरफ एक अलग तरीके से आकर्षित हो रहा था। उस समय ये सब मेरा मन, मेरे विचार, मेरी समझ से परे थे, परन्तु यह खुशनुमा एहसास मेरी ज़िन्दगी में ज़्यादा समय के लिए साथ नहीं था। यहीं से मेरी ज़िन्दगी बदलने वाली थी।
जहाँ ख़ुशी ख़ुशी मैं स्कूल से घर लौटा, पता नहीं था की मेरे लिए एक भयानक दर्द मेरे ही घर के दरवाज़े पर दस्तक दे रहा था। हमेशा की तरह मेरी मम्मी पूजा घर में अपनी पूजा में व्यस्त थी और पापा अपने ऑफ़िस थे। तभी बाथरूम से मुझे पुकारने की आवाज़ आती है, जो की मेरे ही घर में किराये पर रहने वाले एक भैया की थी। मैं हर चीज़ से अनजान उनके बुलाने पर दौड़ता हुआ उनके पास बाथरूम में चला गया। जाने पर मुझे पता चला की उनके साथ उन्ही के दो साथी बाथरूम में पहले से ही अर्धनग्न अवस्था में मौजूद थे।
मैं अभी तक मेरे साथ होने वाली इस भयानक घटना को समझ नहीं पा रहा था, तभी सभी ने मिलकर मेरे कपड़े उतारना शुरू किया, और मेरे शरीर को छेड़ने और नोचने लगे। मैं दर्द से करहा रहा था पर सबने एक एक करके मुझे बेजान समझ कर मेरे शरीर और मेरी आत्मा को बुरी तरह से घायल कर दिया। मैं दर्द से सहम सा गया था, कई वर्षो तक ऐसा मेरे साथ कई बार चलता रहा, और हमेशा चुप रहने और किसी को न बताने के लिए डराया धमकाया जाता था।
इस घटना के बाद से ही मैं बहुत डरा और सहमा सा रहने लगा, ये वो घाव है जो मेरी ज़िन्दगी मे आज तक नहीं भर पाए….
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