बारिश… कुछ कहानियाँ हैं छुपी, कुछ बातें बुनी थी कब यादोंको टकराके ये गिर गयी, पता नहीं पर कुछ कह गयी, कुछ सुना गयी छोड़ गयी गीले कदमोंके निशान थोड़ी महक और दूर कहीं कौरे की लट आँगन में नाचेगी, सारी वादियाँ भर देंगी पत्तोंको छु कर दौड़ के बिखरेगी, ये बारिश कुछ कहेगी, तेरी उन्ही गलियोंसे गुज़रेगी, सुनाई देगी हँसी की आवाज, तो याद करना कुछ यादोंको, शायद आँखों में दो आँसूं झलकाएगी, और हो सके तो छुपा लेना मुट्ठी में दो बुँदे, क्या पता कल ये कही और बरसेगी… बारिश, कुछ कहेगी…