भारत का सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय पहली बार ट्रांस समुदाय के लिए एक नीति बनाने वाला है। इस सिलसिले में ट्रांसजेंडर लोगों, खासकर ट्रांस पुरुष समुदाय ने मंत्रालय को सिफारिशें प्रदान की। ७४ ट्रांस मर्दाना व्यक्तियों ने, यह पत्र पेश करते हुए, प्रगतिशील नीतियाँ बनानेके लिए होने वाले परामर्श में सहभागी होने की इच्छा जताई। पेश है वह पत्र:
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प्रिय केंद्रीय समाजकल्याण मंत्रालय की ट्रांसजेंडर विषयों पर बनी विशेषज्ञ – समिति के सदस्य,
पहले हम समाजकल्याण मंत्रालय को धन्यवाद कहना चाहेंगे कि उन्होंने देश के ट्रांसजेंडर लोगों के मुद्दों को उठाया है। हम मिनिस्ट्री के द्वारा ट्रांस समुदायों के मसलों को सम्बोधित करने के हेतु लिए गए क़दमों की सराहना करते हैं। जैसे कि आप जानते हैं, भारत में जब ट्रांस समाज की बात करते हैं, इसमें सबके सामने प्रायः हिजड़ा यह शब्द आता है। यह सच है की हमारी ट्रांस बहनों की संख्या बड़ी है। उन्होंने बड़ी हिम्मत जुटाकर एकत्रित होकर एक दूसरे का सहयोग किया है, और अपने अधिकारों के लिए संघटित हुई हैं। लेकिन हम ट्रांस पुरुष भी मौजूद हैं। जब सरकार ट्रांस लोगों के लिए योजनाएँ और नीतियाँ बनाती है, तो इस वास्तविकता की उपेक्षा अक्सर होती हैं। उदाहरण के तौर पर तमिलनाड़ का अरवणी कल्याण बोर्ड जो सिर्फ अरवणियों को सेवाएँ उपलब्ध करता है, ट्रांस पुरुषों को नहीं।
यदि ट्रांस लोग देश में अल्पसंख्यक हैं जिन्हें कोई हक़ूक़ हासिल नहीं हैं, तो ट्रांस पुरुष अल्पसंख्यकों में एक अल्पसंख्यक समूह है। अतः हमें लगता है कि ये ज़रूरी है कि इस माइनॉरिटी ग्रूप का विशेष तौर पर विचार किया जाए और उसे अतिरिक्त समर्थन प्रदान किया जाए. माँ-बाप, डॉक्टर, सरकार और समाज की तरफ से हम पर ‘औरत’ की ग़लत पहचान थोपी जाती है। सालों तक हमें बंद दरवाज़ों के पीछे ‘सुरक्षित’ रखा जाता है। हमें खुले-आम आने-जाने की इजाज़त नहीं होती है और घर के बाहर जाना कठिन होता है। हमारी शादी ज़बरन करवाई जाती है। हमें स्कूलों, विश्वविद्यालयों में चिढ़ाया जाता है, हमारे लिए शैक्षणिक संस्थाओं में रहना नामुमकिन किया जाता है और हम पर शारीरिक और मानसिक हमले किये जाते हैं।
इनमें से बहुत सारी समस्याओं का सामना हमारी बहादुर हिजड़ा बहनों ने भी किया। लेकिन उनको गलती से ही सही, लड़कों की तरह देखा जाता, इसलिए कम से कम उन्हें बाहर घूमने का और अन्य ट्रांस लोगों से मिलने का अवसर तो मिलता। उनकी हिजड़ा माएँ उनके लिए जगह बनाती इसलिए वे अपने घरों को छोड़कर अपनी ट्रांस बहनों और माओं के साथ रह पाती। हमारे साथ ऐसे नहीं होता। किसी और ट्रांस पुरुष को मिलने से पहले हम सालों तक झूंझते हैं। नौकरी, अलग घर, स्वास्थ्य सुविधाएँ जिनमें सेक्स रीअसाइन्मेंट सर्जरी (एस.आर.एस) और सर्वसमावेशी ट्रांस और जनरल स्वास्थ्य शामिल हो, ये सब मिलने के लिए हम सालों तक संघर्ष करते हैं। कभी-कभी हमारे पास शब्द नहीं होते, ये व्यक्त करने के लिए कि ऐसे पितृसत्ता पर चल रहे समाज में, जिसमें ट्रांस लोगों के खिलाफ इतनी नफरत हो, महज़ जीवित रहना कितना मुश्किल है। हमारी ट्रांस बहनें भी इससे सहमत होंगी।
बतौर ट्रांस मेन, हम इज़्ज़त करते हैं और दाद देते हैं हमारी ट्रांस बहनों की हिम्मत को, जिन्होंने एल.जी.बी.टी.आई अधिकारों के लिए मार्ग सुदृढ़ किया है। हम उनसे अपने आप को संगठित करना सीख रहे हैं। यह प्रक्रिया आज चल रही है। ट्रांस स्त्रियों में पहचानें हैं जैसे हिजड़ा, किन्नर, मंगलमुखी, अरवणी, कोती, जोगप्पा, शिव शक्ति इत्यादि, वैसे ही ट्रांस पुरुषी अभिव्यक्ति के दायरे का विस्तार बड़ा है। हम में से कुछ की सर्जरी हो चुकी है, कुछ की नहीं। हम में से कुछ ज़्यादा मैस्क्युलाइन हैं, दूसरे अपनी जेंडर अभिव्यक्ति में कुछ ज़्यादा तरल हैं। हम अपनी पहचान के लिए अनेक नाम इस्तेमाल करते हैं। जैसे भैय्या, तिरुनंबी, गंडबसका, बाबू, एफ़.टी.एम. इत्यादि. व्यापक तौर पर हम अपनी पहचान “ट्रांस मैस्क्युलाइन” इस शब्द को इस्तेमाल करना पसंद करते हैं, जो हमारे वैविध्य का प्रतीक है। हम नहीं मानते “पी.ए.जी.एफ़.बी” (‘पर्सन्स अस्साईंड जेंडर फीमेल एट बर्थ’) की व्याख्या को, जो यहां रिपोर्टों और मीटिंगों में हमारी पहचान का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल हो रही है। हम आपसे दृढ़ता से आग्रह करते है कि आप हमें उन पहचानों से सम्बोधित करें जो हम स्वयं धारण करते हैं, और न कि वे जो बिना लोकतान्त्रिक परामर्श या अनुमति के हम पर थोपी जाए।
हम चाहते हैं कि हमें शामिल किया जाए ट्रांस लोगों के लिए प्रगीतील नीतियों के गठन के लिए होनेवाले परामर्श सत्रों में। ट्रांस पुरुषों, इंटरसेक्स लोगों और जेंडर के डिब्बों में फिट नहीं होनेवालों को अपनी मांगें पेश करने का मौक़ा मिले। समस्याएं और पहचानें भिन्न हैं और उनका विस्तार व्यापक है, अतः हम समिति के समक्ष स्वयं निवेदन जमा करना चाहते हैं। हमने हमारी सिफारिशें लिखी हैं। हमारी मंत्रालय से प्रार्थना है कि वे हमें थोडा और वक़्त दें ट्रांस मस्कुलिन समुदाय में और बड़े पैमाने पर परामर्श करने के लिए, और ऐसी सिफारिशें पेश करने के लिए जो सचमुच समुदाय की ज़रूरतों का प्रतिबिम्ब हो। भवदीया, [- भारत भर से ७४ ट्रांस मैस्क्युलाइन आईडेंटीफाईड लोगों, जिनके नाम और पते उनकी हिफाज़त के लिए ज़ाहिर नहीं किये जा रहे हैं, द्वारा हस्ताक्षरित]
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केंद्रीय समाजकल्याण मंत्रालय को लिखे इस पत्र के हस्ताक्षर अभियान का समायोजन ‘सम्पूर्ण’ द्वारा किया गया, जो ट्रांस* भारतीयों का नेटवर्क है.