नक़ाब
चेहरों पर तुमने ओढ़े देखे होंगे नक़ाबउनके
पर सच मानो तो हक़ीक़त में
ये नक़ाबउन्हें तुम्हारी ही देन है।
वो ओढ़े रखना चाहते हैं ये नकाब
सिर्फ इसलिए कि समाज का वो क्रूर चेहरा न दिखे,
जो छीने बैठा है उनसे उनके हक़-हुक़ूक़।
ये नक़ाबउन्हें देन है समाज की ‘नैतिकता’ की !
पर नहीं, ये नक़ाबहर बार देखा नहीं मिलेगा तुम्हें,
फैंक देंगे उसे और
मिलाएंगे वो तुम्हारी आँखों से आँख और
मांगेंगे अपना हक़।
देंगे तुम्हें वो तर्क और तथ्य,
पूछेंगे सवाल, पर
उत्तर में मिलेगा उन्हें मौन।
लेकिन सुनो !
वो नक़ाबइसलिए पहने हैं अभी
ताकि तुम्हारी शर्म बची रहे।
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