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Hindi

समलैंगिक पीड़

By जीतू बगर्ती

November 29, 2021

चल नहीं पाता पैरो में ज़ंजीर लेके,हुआ भी जन्म मेरा तो कैसी तक़दीर लेके।

ख़्वाब, ख़्यालात और हालात सब एक दूसरे से परे है, सब एक ही दिशा में हों मेरी किस्मत नहीं आयी ऐसा भागिर लेके।दुखता है ये बेबसी का घावकिसे सुनाऊँ दर्द समलैंगिकता का?मैं कहाँ जाऊँ यें पीड़ाओं की समलैंगिक पीड़ लेके?

टूट रहा हूँ बिखरा सा तिनका तिनका हर दिन हर रात,तन्हा हूँ अकेला हूँ मैं नहीं आया साथ अपने अपना नजीर लेके।

दौलत से खरीद लूँ और चुप करा दूँ मेरी समलैंगिकता पे उठते सवाल,दुनिया में आया नहीं मैं इतनी बड़ी जागीर लेके।

जहाँ मेरी भी सुनवाई हो, मुझे भी समझा जाये,अपनों से अपनापन मिले कौनसी अदालत जाऊँ अपनी तहरीर लेके?

साँसे थकी, मेरा होना गुनाह है, सज़ा में खत्म हो जाऊँगा,एक दिन रोयेगा कोई हाथो में मेरी तस्वीर लेके।

क्या क्या लिखूँ हक़ में अपने बेइंतहा बेहक़ हूँ मैं,किस दर पे जाऊँ अपनी बेरंग तस्वीर लेके?

बेस्वाद लगती है ज़िन्दगी न कोई अपनापन, न कोई अपना,मीठा कहते है लोग परआता नहीं कोई प्रेम की मीठी खीर लेके।

मैं तो वहीँ रहा प्रेम, परिवार दुनिया संसार सबमे, मेरी समलैंगिकता पता चलते ही सब बदल गये मौसम सी तासिर लेके।

चुभता बहुत ये दर्द समलैंगिता का आराम नहीं मिलता, कहाँ जाऊँ पीड़ाओं की समलैंगिक पीड़ लेके।