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Hindi

कविता : दद्दा

By Jeetesh Kumar

December 01, 2020

किसी तीसरे को किया गयाये सम्बोधनफँसा है तेरे-मेरे बीचजैसे दद्दा मेंदो द के बीचएक आधा दथा नशे में धुत उस रातकिया था जब फ़ोन पहली बारसब दूसरों के बीचजिनके बीच नशा, और मस्तीऔर रात भर की आवारागर्दीके बाद लौटता हूँ मैंकमरे परअकेलापन निकल आता है बाहररेंगता है दीवारों परबिछ जाता है फ़र्श परमैं ढूँढता रहता हूँ ख़ुद कोशराब की ख़ाली बोतलों मेंलुढ़के हुए गिलासोंजूठी तश्तरियों मेंसिगरेट से भर चुके कटोरे में

अनाप-शनापप्यार-प्यार प्यारअंत- शंट प्यारबकता गयाबेहोश हो जाने तकसुबह तेरा आया कॉल वापस जबतबचुप मैं रह गयाओढ़ लिया मैंने कोई नापाक खोलबोल-बोल क्या-क्या बोला मैंनेयाद रह गया है तुझे मेरा यह बकनाऔर वह सम्बोधन“…दद्दा…”जिसके मायने बदल दिए हैंतेरी आवाज़ के शब्दकोश नेबन गया है यह कोई प्रेम-वाक्यसंगीतजिस पर नाच जाते हैं मेरे कानजब तू कहता है“दद्दा”सुनता हूँ मैं तेरी साँसेंअपनी रूह से गुजरते हुएअपनी नसों में तैरते हुएदिल की धड़कन तेज होते हुएजब तू कहता है“दद्दा”चूम लेना चाहता हूँ मैं तेरे होंठतबयक़ीन है मुझेतेरी आँखों में दिखाई देगाशायद दुनिया का सबसे कामुकसम्बोधन जैसे कि“दद्दा….”