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कविता: बधाई हो ! नवजात हुआ है….

बधाई हो !
नवजात हुआ है
खुशियों का अंबार लगा है
हाय ! ये क्या हुआ ?
तुम सबका चेहरा
अचानक मातम में क्यों बदल गया ?

हे भगवान ! ये तो किन्नर पैदा हो गया
अरे ! किसी को पता तक नहीं चलेगा
इस दो घंटे के बच्चे का
नामो – निशान तक नहीं दिखेगा
चुपचाप दफना दो इसे एकांत में
समय मत बर्बाद करो इसके अंत में

अरे ! कलंक है ये
अभिशाप है ये
चंदन पर लिपटा जहरीला सांप है ये
अच्छा ही होगा मर जाएगा ये
नहीं तो जीवन भर का कलंक बन जाएगा ये

अरे ! मार दो इसे
बड़ा होकर नाम बदनाम करेगा
तुम्हारी जिंदगी में आया काला नाग बनेगा

अरे ! रुको मत मार दो इसे
ये बीच वाला ताली बजाकर
इज्ज़त उछालेगा
तुम्हारी जिंदगी पर ग्रहण लगा देगा
जिंदगी छीन लो इसकी
इसे जीने का अधिकार नहीं
क्योंकि ये तीसरा !
हमारे समाज का नहीं ।

बधाई हो !
नवजात हुआ है…।

यह रचना किन्नर के जन्म पर मनाये जाने वाले शोक और हमारे समाज की घटिया सोच को उजागर करते हुए, किन्नरों के जन्म से ही उनके जीवन में आयी मुसीबतों की बाढ़ को दिखाती है। यह कविता किन्नर समुदाय के प्रति घृणित सोच रखने वालों की मानसिकता को हमारे सामने प्रस्तुत करती है ।

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