रूढ़ीवादीसोच को बदलने का एक सराहनीय मराठी नाट्याविष्कार
कालिदास की मशहूर कृति ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ को भले ही आपने न पढ़ा हो। हाल ही में मुबई में ‘गुलाबी थियेटरवाले’ ग्रुप ने रंगमंच पर इसे एक नए संदर्भ और ‘ट्विस्ट’ के साथ प्रस्तुत किया।
नाटक के अंतर्गत होनेवाले नाटक ‘दुष्यंतप्रिय’ से किसी कारणवश महिला अभिनेत्रियां चली जाती हैं और वापस नहीं आती। रिहर्सल जारी रखने के लिए अभिनेता रोहित शकुंतला की भूमिका निभाना शुरू करते हैं। दुष्यंत का किरदार निभाने वाले अभिनेता सुशील और शकुंतला की भूमिका निभानेवाले रोहित को वास्तव में प्यार हो जाता है। क्या दुष्यंत शकुंतला को अपनाने में सफल होते हैं? इसका जवाब (और कईं अन्य प्रश्न!) ‘दुष्यंतप्रिय’ में पाये जाते हैं।
नाटककार सारंग भाकरे समाज की रूढ़ीवादी सोच से होनेवाली कश्मकश को दर्शाते हैं, जहां दो परुषों में प्रेम सम्बन्ध को समाज के द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता। भले ही हमारा कानून आज दो वयस्कों के एकांत में बनाये गए सम्बन्धों को अपराधिक श्रेणी में रखता हो ना हो, समाज का बड़ा तबका आज भी समलेंगिकता को तिरस्कार की नज़रों से देखता है। ऐसे में ‘दुष्यंतप्रिय’ प्रतिगामी मानसिकता बदलनेका एक साहसी प्रयास है। मूल विषय पर बनी वी शांताराम की फिल्में “शाकुन्तल” (१९४३) और “स्त्री” (१९६१) लोकप्रिय भी हुईं।
हाल ही में राज्य स्तर पर, महाराष्ट्र सरकार से पुरस्कृत नाटक ‘दुष्यंतप्रिय’ से उम्मीद है कि ये नाटक महाराष्ट्र और मराठी तक सीमित न रहे और अन्य राज्यों और भाषाओँ में भी अभिनीत किया जाए!
– दुष्यन्तप्रिय का अगला प्रयोग सावरकर सभागृह, शिवाजी पार्क, दादर, मुम्बई में ११ जनवरी २०१४ को ३:३० बजे होगा।
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