श्रुन्खलाबद्ध कहानी ‘आधा इश्क’ की पहली तीन किश्तें यहाँ पढ़ें:
प्रस्तुत है इस कथा का चौथा भाग:
“तुमने आजतक मुझे कुछ नहीं बताया। कुछ बताओ न अपने घरवालों के बारे में। कहाँ हैं, क्या करते हैं, वगैरह। संदीप नीरज के कमरे में बैठा था और दोनों बातें कर रहे थे।
“मेरे पापा का कारोबार है, पूना में। माँ समाजवाद में विशवास रखतीं हैं। एक भाई है छोटा, बारहवी में। पापा मुझे पसंद नहीं करते इसलिए उन्होंने मुझे घर से निकाल दिया है। कॉलेज की फीस उन्होंने भर दीं हैं और वे हर महीने पैसे भी भेजते हैं। मगर मुझे उनके पैसों पर नहीं जीना है। इसलिए मैं खुद पार्ट-टाइम जॉब करता हूँ। बस इतना ही।”
“पर वे तुझे पसंद क्यों नहीं करते? ऐसा क्या हो गया जो उन्होंने तुम्हें घर से निकाल दिया?” संदीप ने कुतूहल के साथ पूछा।
“यार वह सब छोडो। इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है। तुम बताओ, तुम पूनम से प्यार करते हो न?” पूनम का नाम सुनते ही संदीप के चहरे पर लालिमा फैली।
“हाँ यार, दो साल से। और तुम्हें पता है, वह भी मुझसे प्यार करती है। शायद अब मुझे कोई क़दम उठाना चाहिए। क्या कहते हो?
संदीप की बात से नीरज उदास-सा हो गया। उसने बस हाँ दर्शाते हुए गर्दन हिलाई और विषय ख़त्म कर दिया। दिन-ब-दिन बढ़ती जानेवाली संदीप और पूनम की नजदीकियां नीरज के लिए समस्या बनती जा रही थी। उसे गुस्सा आने लगा था। उसे जलन होने लगी थी। संदीप का पूनम की तरफ बढ़ता झुकाव और उसका कम ध्यान मिलने से नीरज स्वयं को गंदा महसूस कर रहा था।
नीराज हमेशा सोचता, ‘मुझे अन्दर से इतनी जलन क्यों हो रही है संदीप और पूनम को एक साथ देखकर?’ उसे अब यह अहसास होना लगा कि शायद वह संदीप से प्यार करने लगा था। एक दिन बहस चली कि बलात्कार के मामलों में ग़लती किसकी होती है।
संदीप: ये लडकियां छोटे छोटे कपडे पहनतीं हैं न, इसी वजह से रेप होता है। अपना शरीर किधाएंगी तो लड़के तो बहक ही जाएंगे न?
प्रीती: अच्छा, तो जो औरतों का रेप होता है वह? वे तो पूरी साड़ी पहनतीं हैं। और छोटे बच्चों का क्या? यह उनकी भी ग़लती है?
नीरज: सच है यार, गलत लड़की नहीं होती। गलत होती है लड़कों की सोच, उनकी नीयत, पर हमेशा ऐसा नहीं होता। जब हम हमारा समाज कितना गंदा है यह जानते हैं, तब देर रात की पार्टियों में वगैरह नहीं जाना चाहिए। गलती हालाकि लड़कों की है, उनकी सोच और उसमें दबी वासना की है, लेकिन अगर हम सुधार नहीं सकते तो कमसकम सतर्क तो रहना चाहिए!
लडकियां हमेशा बोलती हैं की उन्हें आजादी चाहिए। हम घर में नहीं बैठेंगी। स्वतंत्रता का मतलब उनकी नज़र में होता है छोटे स्कर्ट छोटे टॉप पहनना। पर क्या कभी आपने देखा है लड़के को निक्कर में घूमते हुए? वे तो जींस ही पहनेंगे। कहीं पास जाना हो तो केप्री पहनेंगे। तो कभी ताली एक हाथ से नहीं बजती। लड़कियों को भी अपना दायरा समझना चाहिए।
राकेश: धन्य हो प्रभू। आपने तो प्रवचन ही सूना दिया।
सब हँसे लगे, पर पूनम नीरज की बात से इम्प्रेस हुई।
पूनम: तुम बहुत सोच समझकर बातें करते हो नीरज। अच्छा है। वरना इस कमीने सैंडी को देखो कैसा है।
यह कहकर पूनम वहां से चली गई। तो संदीप उसके पीछे-पीछे उसे मनाने गया। दोनों में खट्टी मीठी तकरार हो रही थी, जो कि प्यार की निशानी है। यह देख नीरज को गुस्सा आने लगा।
वह उनके पास जानेवाला ही था कि प्रीती बीच में आ गई। “हे नीरज , तेरी माँ आई है वहां ग्लास डोर के पास खडी है। जा जा जल्दी से।
“मेरी माँ?” नीरज हैरान हुआ। वह भागते हुए कांच के दरवाजों के पास गया। वहां यकीनन माँ को खडा देख उसने अपनी भौहें उठाईं।
“माँ तुम यहाँ?” नीरज की आँखें नम हुई।
“कैसा है तू? और देख तो कितना पतला हो गया है। कुछ खाता पीता नहीं क्या? ये आँखें आईसी क्यों रूखीं लग रहीं हैं, रात भर जागता है क्या? ज्यादा नाईट आउट मत किया कर दोस्तों के साथ। तबीयत खराब हो जाएगी। और हाँ, पढता भी है कि नहीं? यहाँ तेरे दोस्त भी बन गए होंगे। अरे कुछ बोल, चुप क्यों खडा है बैल की तरह।”
“माँ, तुम कुछ बोलने दोगी तो बोलूँगा न, एक साथ इतने सारे सवाल…”
“क्या करूं बेटा, तेरी बहुत याद आती है।”
“पर मैं तुम्हें बिलकुल मिस नहीं करता, नहीं करता मैं मिस तुम्हें। बिलकुल नहीं” । ना बोलते बोलते नीरज ने माँ को गले लगाया और दोनों की आँखें नम हुईं।
“पर तुम यहाँ अचानक कैसे? सब ठीक तो है? पापा?”
“तेरे डैड के साथ आई थी, उनका यहाँ बिजनेस का काम था। सोचा तबतक मैं जाकर तुमसे मिल लूं। ये ले, तेरे लिए गुजिया लाया हैं, खा ले।”
“वाह मावा का गुजिया! लेकिन माँ, पापा नहीं आए मुझसे मिलने?”
“वे गेट के बाहर गाडी में हैं।”
“उन्हें मुझसे नहीं मिलना?” नीरज ने माँ की आँखों में देखा। माँ से रहा नहीं गया। वह नीरज से आँखें नहीं मिला पा रहीं थीं।
“चलो मैं चलती हूँ, तेरे पापा फोन कर रहे हैं। वरना गुस्सा हो जाएंगे। अपने ख़याल रखना। आई लव यू, मेरे बेटे।”
“लव यू टू माँ।”
माँ वहां से चली गई। पर माँ को इतने दिनों के बाद देखकर नीरज ख़ुश भी था और उदास भी। नीरज वहीँ बैठ गया और गुजिया को देखने लगा।
“हे, माँ चली गई क्या नीरज?” पूनम वहां आई।
“हाँ बस अभी गई है, ये गुजिया देकर गई है।”
नीरज को उदास देख पूनम ने विषय बदलने की कोशिश करी: “वह गुजिया तो बहुत मजेदार दिख रहे हैं, मैं तो खाऊँगी, तुम भी लो।”
“नहीं, तुम खा लो, मैं बाद में खाऊंगा।”
“अरे ऐसे कैसे? सबसे पहले तुम खाओ। ये लो चलो मैं तुम्हें खिलाती हूँ।” यह कहकर पूनम ने एक निवाला लेकर नीरज की तरफ हाथ बढाया। यह देखकर नीरज के सब्र का बाँध टूट गया और वह पूनम को गले लगा जोर-जोर से रोने लगा।
क्यों रोया नीरज? पढ़िए कहानी ‘आधा इश्क’ की पांचवी कड़ी में!
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